आज कांटें हैं अगर तेरे मुकद्दर में तो क्या,
कल तेरा भर जाएगा फूलों से दामन गम न कर।
तू नजर आता है जिस ज़ंजीरे-आहन में असीर
टूट जाने को है वो ज़ंजीरे-आहन गम न कर
*आहन=लोहा; असीर=बंदी, क़ैदी
देखता है आज जिस गुलशन को वक्के-खिजां
ताज़ा कैसा ताज़ातर होगा वो गुलशन गम न कर
*खिजां=पतझड़ की ऋतु
गुल अगर एक शमा होती है हवाऐ-दहर से
सैकड़ों उसकी जगह होती हैं रोशन ग़म न कर
*दहर=सन्सार
~ 'निहाल' सेहरारवी
July 3, 2014
No comments:
Post a Comment