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Thursday, November 20, 2014

आज कांटें हैं अगर तेरे मुकद्दर में


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आज कांटें हैं अगर तेरे मुकद्दर में तो क्या,
कल तेरा भर जाएगा फूलों से दामन गम न कर।

तू नजर आता है जिस ज़ंजीरे-आहन में असीर
टूट जाने को है वो ज़ंजीरे-आहन गम न कर
*आहन=लोहा; असीर=बंदी, क़ैदी

देखता है आज जिस गुलशन को वक्के-खिजां
ताज़ा कैसा ताज़ातर होगा वो गुलशन गम न कर
*खिजां=पतझड़ की ऋतु

गुल अगर एक शमा होती है हवाऐ-दहर से
सैकड़ों उसकी जगह होती हैं रोशन ग़म न कर
*दहर=सन्सार

~ 'निहाल' सेहरारवी

   July 3, 2014

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