मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
कभी नहीं जो तज सकते हैं अपना न्यायोचित अधिकार,
कभी नहीं जो सह सकते हैं शीश नवा कर अत्याचार,
एक अकेले हों या उनके साथ खड़ी हो भारी भीड़
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
निर्भय होकर घोषित करते जो अपने उद्गार विचार
जिनके जिव्हा पर होता है उनके अंतर का अंगार
नही जिन्हें चुप कर सकती है आतताइयों की शमशीर
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
नही झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता
ऊँचे से ऊँचे सपनो को देते रहते जो न्योता
दूर देखती जिनकी पैनी आँख भविष्यत का तम चीर
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
जो अपने कंधो से पर्वत से बढ़ टक्कर लेते हैं
पथ की बाधाओं को जिनके पाँव चुनौती देते हैं
जिनको बाँध नही सकती है लोहे की बेड़ी ज़ंजीर
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
जो चलते है अपने छप्पर के ऊपर लूका धर कर
हार जीत का सौदा करते जो प्राणो की बाज़ी पर
कूद उदधि में नहीं पलट कर जो फिर ताका करते तीर
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
जिनको यह अवकाश नहीं है देखें कब तारे अनुकूल,
जिनको यह परवाह नहीं है कब तक भद्रा, कब दिक्शूल,
जिनके हाथों की चाबुक से चलती है उनकी तक़दीर,
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
तुम हो कौन कहो जो मुझसे सही ग़लत पथ लो तो जान
सोच सोच कर पूछ पूछ कर बोलो कब चलता तूफान
सत्पथ वो है जिसपर अपनी छाती ताने जाते वीर
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़
~ हरिवंशराय बच्चन
Nov 11, 2014
No comments:
Post a Comment