
ज़रा पाने की चाहत में,
बहुत कुछ छूट जाता है,
न जाने सब्र का धागा,
कहाँ पर टूट जाता है।
किसे हमराह कहते हो,
यहाँ तो अपना साया भी,
कहीं पर साथ चलता है,
कहीं पर छूट जाता है।
अजब शै हैं ये रिश्ते भी,
बहुत मज़बूत लगते हैं,
ज़रा-सी भूल से लेकिन,
भरोसा टूट जाता है।
~ आलोक श्रीवास्तव
Mar 09, 2015 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
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