
आज मुझसे दूर दुनिया !
भावनाओं से विनिर्मित,
कल्पनाओं से सुसज्जित,
कर चुकी मेरे हृदय का स्वप्न चकनाचूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !
‘बात पिछली भूल जाओ,
दूसरी नगरी बसाओ’ -
प्रेमियों के प्रति रही है, हाय! कितनी क्रूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !
वह समझ मुझको न पाती,
और मेरा दिल जलाती,
है चिता की राख कर में मांगती सिन्दूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !
~ हरिवंशराय बच्चन
March 20, 2015 | e-kavya.blogspot.comदूसरी नगरी बसाओ’ -
प्रेमियों के प्रति रही है, हाय! कितनी क्रूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !
वह समझ मुझको न पाती,
और मेरा दिल जलाती,
है चिता की राख कर में मांगती सिन्दूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !
~ हरिवंशराय बच्चन
Ashok Singh
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