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Saturday, March 21, 2015

आज मुझसे दूर दुनिया !



आज मुझसे दूर दुनिया !
भावनाओं से विनिर्मित,
कल्पनाओं से सुसज्जित,
कर चुकी मेरे हृदय का स्वप्न चकनाचूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !


‘बात पिछली भूल जाओ,
दूसरी नगरी बसाओ’ -
प्रेमियों के प्रति रही है, हाय! कितनी क्रूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !

वह समझ मुझको न पाती,
और मेरा दिल जलाती,
है चिता की राख कर में मांगती सिन्दूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !

~ हरिवंशराय बच्चन
   March 20, 2015 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

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