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Thursday, March 19, 2015

बुल्ला की जाणां मैं कौन?



बुल्ला की जाणां मैं कौन?

ना मैं मोमन विच मसीतां
न मैं विच कुफ़्र दियां रीताँ
न मैं पाक विच पलीताँ,
न मैं अंदर वेद किताबाँ,
न विच भंगा न शराबाँ,
न रिंदा विच मस्त खराबाँ,
न मैं शादी न ग़मनाकी,
न मैं विच पलीती पाकी
न मैं आबी न मैं खाकी,
न मैं आतिश न मैं पौण
बुल्ला की जाणां मैं कौन?

न मेरी मस्जिद में आस्था है, न व्यर्थ की पूजा की रीतियों में। न मैं शुद्ध और न ही अशुद्ध। मैं
धर्मग्रंथों को पढ़ने की इच्छा नहीं रखता। न मुझे भंग, शराब की लत है और न ही पीने के बाद
नशे जैसा मतवालापन। न मैं स्वच्छ, न ही अस्वच्छ। न जल न थल न अग्नि और न ही वायु। मेरा जन्म या अस्तित्व
इस सबसे परे है और एक अनजाने रहस्य से लिपटा हुआ है।

न मैं अरबी न लाहौरी,
न मैं हिंदी शहर नगौरी
न हिंदू न तुर्क पेशावरी,
न मैं भेद मजहब दा पाया,
न मैं आदम हव्वा जाया
न मैं अपणा नाम कराया,
अव्वल आखर आप नू जाणां,
न कोई दूजा होर पहचाणां
मैंथों होर न कोई सियाणा,
बुल्ला शौह खड़ा है कौण
बुल्ला की जाणां मैं कौन?

मैं देश और सरहद की सीमा से परे हूँ, न ही अरबी या लाहौरी, न नगौर मेरा शहर है या हिन्दी मेरी भाषा।
न मैं हिन्दू हूँ या पेशावरी या फिर तुर्क। न मुझे धर्मों का तत्व ज्ञान है या इस बात का दावा करता हूँ कि मैं आदम
और हव्वा की संतान हूँ। मैं अपने नाम के साथ इस दुनिया में नहीं आया था। मैं ही पहला था और मैं
ही आखिरी हूँ। न मैंने किसी और को जाना है न मुझे ये जानने की ज़रूरत है। अगर मैं अपने होने का सत्य
समझ लूँ, तो मुझ सा बुद्धिमान और कोई नहीं  होगा।

न मैं मूसा न फरओन
न मैं जागन न विच सौण
न मैं आतिश न मैं पौण
न मैं रहंदा विच नादौण
न मैं बैठाँ न विच भौण
बुलला शाह खड़ा है कौण
बुल्ला की जाणां मैं कौन?

न तो मैं मूसा हूँ और न ही फराओ। न तो मैं हवा से पैदा हुआ न ही अग्नि से। मुझे तो ख़ुद भी ये भी पता नहीं है
कि मैं जागृत अवस्था में हूँ या नींद में रुका हुआ।  न जाने कब से बस चलता जा रहा हूँ। सच यही है कि
बुल्ले शाह आज तक अपने अक्स की तलाश में भटक रहा है।

~ सूफी कवि बुल्ले शाह
   March 18, 2015  | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

बुल्ला की जाणां मैं कौन..?
https://www.youtube.com/watch?v=xt67VwgH014

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