Tuesday, September 13, 2022

हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया


हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया

रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया 

 

कैसे जीते हैं ये किस तरह जिए जाते हैं

अहल-ए-दिल की बसर-औक़ात पे रोना आया 

 

जी नहीं आप से क्या मुझ को शिकायत होगी

हाँ मुझे तल्ख़ी-ए-हालात पे रोना आया 

 

हुस्न-ए-मग़रूर का ये रंग भी देखा आख़िर

आख़िर उन को भी किसी बात पे रोना आया 

 

कैसे मर मर के गुज़ारी है तुम्हें क्या मालूम

रात भर तारों भरी रात पे रोना आया 

 

कितने बेताब थे रिम-झिम में पिएँगे लेकिन

आई बरसात तो बरसात पे रोना आया 

 

हुस्न ने अपनी जफ़ाओं पे बहाए आँसू

इश्क़ को अपनी शिकायात पे रोना आया 

 

कितने अंजान हैं क्या सादगी से पूछते हैं

कहिए क्या मेरी किसी बात पे रोना आया 

 

अव्वल अव्वल तो बस एक आह निकल जाती थी

आख़िर आख़िर तो मुलाक़ात पे रोना आया 

 

'सैफ़' ये दिन तो क़यामत की तरह गुज़रा है

जाने क्या बात थी हर बात पे रोना आया

सैफ़ुद्दीन सैफ़

Nov 13, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh