Sunday, June 8, 2014

कहो क्या खयाल है



धडकनों की ताल बाजे, साँसों का एक तारा
आँगन में सजाये बैठें सूरज चंदा तारा
चलो बाँट लें हम ज़िन्दगी
ज़रा आज यूँ कर लें
कहो क्या खयाल है

इक जहाँ छोटा सा अपना, इक जहाँ तुम्हारा
मुस्कान चाहे मीठी हो, या आंसूं एक खारा
चलो बाँट लें ग़म और ख़ुशी
थोड़ी गुफ्तगू कर लें
कहो क्या खयाल है

आप से दो बातें करने
यादों को जेबों में भरने
आये हैं हम कुछ दिनों के बाद
यारों की सोहबत में आके
धीरे से कुछ गुनगुना के
यूँ हीं कट जाते हैं दिन और रात

मुठी में तुम भींच लाना सावन हरा
एक धनक तुम भी तोड़ लाना फ़लक से ज़रा
मुट्ठी मुट्ठी बाँट लेंगे किरणों का कतरा
ऐक सिक्का धूप हमसे लेना गर कम लगा
बेतुक ही बेमतलब हँस ले हम
क्यूँ ना इस लम्हें में, हाँ, जी लें हम

चलो बाँट लें हम ज़िन्दगी
ज़रा आज यूँ कर लें
कहो क्या खयाल है

~ स्वानन्द किरकिरे 

   June 8, 2014 | e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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