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Friday, November 21, 2014

आज मेरे आँसुओं में,


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आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुस्कराई?

शिशिर ऋतु की धूप-सा सखि, खिल न पाया मिट गया सुख,
और फिर काली घटा-सा, छा गया मन-प्राण पर दुख,
फिर न आशा भूलकर भी, उस अमा में मुसकराई!
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुस्कराई?

हाँ कभी जीवन-गगन में, थे खिले दो-चार तारे,
टिमटिमाकर, बादलों में, मिट चुके पर आज सारे,
और धुँधियाली गहन गम्भीर चारों ओर छाई!
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुस्कराई?

पर किसी परिचित पथिक के, थरथराते गान का स्वर,
उन अपरिचित-से पथों में, गूँजता रहता निरन्तर,
सुधि जहाँ जाकर हजारों बार असफल लौट आई!
आज मेरे आँसुओं में, याद किस की मुस्कराई?

~ उपेन्द्रनाथ 'अश्क'

   Dec 10, 2013

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