Friday, November 21, 2014

यह दुनिया एक ख्वाबों की



यह दुनिया एक ख्वाबों की ज़मीं है
यहाँ सब कुछ है और कुछ भी नहीं है

तेरे छूने से पहले वाहमा था
मुझे अब अपने होने का यकीं है

जो सोचो तो सुलग उठती हैं साँसें
तेरा एहसास कितना आतिशीं है

मोहाजिर बन गए हैं मेरे आंसू
न आँचल है न कोई आस्तीं है

जगह दूँ कैसे तुझको अपने दिल में
यहाँ तो तेरा गम मसनद-नशीं है

मेरे चेहरे पे कोई झुक रहा है
यह लम्हा तो खुदा जैसा हसीं है

~ ज़फर 'सहबाई'

   Dec 3, 2013

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