
यह दुनिया एक ख्वाबों की ज़मीं है
यहाँ सब कुछ है और कुछ भी नहीं है
तेरे छूने से पहले वाहमा था
मुझे अब अपने होने का यकीं है
जो सोचो तो सुलग उठती हैं साँसें
तेरा एहसास कितना आतिशीं है
मोहाजिर बन गए हैं मेरे आंसू
न आँचल है न कोई आस्तीं है
जगह दूँ कैसे तुझको अपने दिल में
यहाँ तो तेरा गम मसनद-नशीं है
मेरे चेहरे पे कोई झुक रहा है
यह लम्हा तो खुदा जैसा हसीं है
~ ज़फर 'सहबाई'
Dec 3, 2013
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