Friday, February 13, 2015

निकल आते हैं आंसू हँसते

निकल आते हैं आंसू हँसते - हँसते
ये किस ग़म की कसक है, हर ख़ुशी में
गुज़र जाती है यूँ ही उम्र सारी
किसी को ढूंढते हैं हम, किसी में
सुलगती रेत में पानी कहाँ था
कोई बादल छुपा था, तिश्नगी में
बहुत मुश्किल है बंजारा मिज़ाजी
सलीका चाहिए, आवारगी में

~ निदा फ़ाज़ली
   Feb 9, 2015 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

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