Tuesday, March 31, 2015

मोहब्बत को गले का हार भी



मोहब्बत को गले का हार भी करते नहीं बनता
कुछ ऐसी बात है इनकार भी करते नहीं बनता

ख़ुलूसे-नाज़ की तौहीन भी देखी नहीं जाती
शऊरे-हुस्न को बेदार भी करते नहीं बनता
*ख़ुलूस=निष्कपट, शऊर=तमीज़, बेदार=सचेत

तुझे अब क्या कहे ऐ मेहरबा अपना ही रोना है
कि सारी जिंदगी ईसार भी करते नहीं बनता
*ईसार=त्याग, (self-denial)

भंवर से जी भी घबराता है लेकिन क्या किया जाए
तवाफे-मौजे-कमरफ़्तार भी करते नहीं बनता
*तवाफे-मौजे-कमरफ़्तार=धीमी रफ्तार से लहर (भँवर) के चक्कर लगाना

इसी दिल को भरी दुनिया के झगडे झेलने ठहरे
यही दिल जिसको दुनियादार भी करते नहीं बनता

जलाती है दिलो को सर्द-महरी भी ज़माने की
सवाले-गर्मी-ए-बाज़ार भी करते नहीं बनता
*सर्द-महरी=कठोरता, सवाले-गर्मी-ए-बाज़ार=सवालो से बाज़ार गर्म करना

उनकी तवज्जो ऐसी मुमकिन नहीं लेकिन
ज़रा सी बात पर इसरार भी करते नहीं बनता
*तवज्जो=ध्यान देना, इसरार=आग्रह, जिद

~ महबूब खिंजा


   Dec 20, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

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