Thursday, June 2, 2016

कहीं से लौट के हम लड़खडाए हैं






कहीं से लौट के हम लड़खडाए हैं क्या क्या
सितारे ज़ेर-ए-क़दम रात आए हैं क्या क्या ।
*ज़ेर-ए-क़दम=क़दमों के तले

नसीब-ए-हस्ती से अफ़सोस हम उभर न सके,
फ़राज़-ए-दार से पैग़ाम आए हैं क्या क्या।
*नसीब-ए-हस्ती=जीवन की तक़दीर; फ़राज़-ए-दार=ऊँचा, ऊपर से

जब उस ने हार के खंजर ज़मीं पे फ़ेंक दिया,
तमाम ज़ख्म-ए-जिगर मुस्कुराए हैं क्या क्या।

छटा जहाँ से उस आवाज़ का घना बादल,
वहीं से धूप ने तलवे जलाये हैं क्या क्या।

उठा के सर मुझे इतना तो देख लेने दे,
के क़त्ल गाह में दीवाने आए हैं क्या क्या।

कहीं अंधेरे से मानूस हो न जाए अदब ,
चराग तेज़ हवा ने बुझाये हैं क्या क्या।
*मानूस=घनिष्ठ

~
क़ैफी आज़मी
May 17, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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