Saturday, July 9, 2016

कुछ चीखती उदास सी शामों को



कुछ चीखती उदास सी शामों को छोड़ कर
वो चल दिया कहीं सभी रिश्तों को तोड़ कर

सब कुछ बिखर गया मेरा उसके फ़िराक में
वो जो चला गया मुझे रखता था जोड़ कर

मिल भी गया तो देखिये चेहरा घुमा लिया
इक वक़्त था कि वो मुझे मिलता था दौड़ कर

आँखों में कोई अश्क न मुझमें लहू बचा
रक्खा है तेरे दर्द ने ऐसा निचोड़ कर

ले दे के उसका ख़्वाब ही मेरा था पर 'सहाब'
दुनिया ने क्यूँ जगा दिया मुझको झिंझोड़ कर

~ अजय पाण्डेय 'सहाब'


Jun 18, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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