Saturday, August 5, 2017

ज़ुल्फ़ घटा बन कर रह जाए

Image may contain: 1 person

ज़ुल्फ़ घटा बन कर रह जाए आँख कँवल हो जाए
शायद उन को पल भर सोचें और ग़ज़ल हो जाए

जिस दीपक को हाथ लगा दो जलें हज़ारों साल
जिस कुटिया में रात बिता दो ताज-महल हो जाए

कितनी यादें आ जाती हैं दस्तक दिए बग़ैर
अब ऐसी भी क्या वीरानी घर जंगल हो जाए

तुम आओ तो पँख लगा कर उड़ जाए ये शाम
मीलों लम्बी रात सिमट कर पल दो पल हो जाए

~ क़ैसर-उल जाफ़री


  Aug 4 , 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment