Sunday, October 29, 2017

तुम जिस को ढूँडते हो



तुम जिस को ढूँडते हो ये महफ़िल नहीं है वो
लोगों के इस हुजूम में शामिल नहीं है वो

रस्तों के पेच-ओ-ख़म ने कहीं और ला दिया
जाना हमें जहाँ था ये मंज़िल नहीं है वो
*पेच-ओ-ख़म=घुमावदार

दरिया के रुख़ को मोड़ के आए तो ये खुला
साहिल के रंग और हैं साहिल नहीं है वो
साहिल= किनारा

दुनिया में भाग-दौड़ का हासिल यही तो है
हासिल हर एक चीज़ है हासिल नहीं है वो
*हासिल=नफ़ा, प्राप्त होना

'आलम' दिल-ए-असीर को समझाऊँ किस तरह
कम-बख़्त ए'तिबार के क़ाबिल नहीं है वो
*दिल-ए-असीर=प्रेम में डूबा दिल

‍~ आलम ख़ुर्शीद


  Oct 29, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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