Monday, June 22, 2020

कलियों का तबस्सुम हो


कलियों का तबस्सुम हो, कि तुम हो कि सबा हो
इस रात के सन्नाटे में, कोई तो सदा हो
*तबस्सुम=मुस्कुराहट; सबा=हवा; सदा=आवाज़

यूँ जिस्म महकता है हवा-ए-गुल-ए-तर से!
जैसे कोई पहलू से अभी उठ के गया हो
*हवा-ए-गुल-ए-तर=फूलों की ख़ुशबू से सराबोर

दुनिया हमा-तन-गोश है, आहिस्ता से बोलो
कुछ और क़रीब आओ, कोई सुन न रहा हो
*हमा-तन-गोश=कान लगाए

ये रंग, ये अंदाज़-ए-नवाज़िश तो वही है
शायद कि कहीं पहले भी तू मुझ से मिला हो
*अंदाज़-ए-नवाज़िश=अहसान करने का तरीका

यूँ रात को होता है गुमाँ दिल की सदा पर
जैसे कोई दीवार से सर फोड़ रहा हो

दुनिया को ख़बर क्या है मिरे ज़ौक़-ए-नज़र की
तुम मेरे लिए रंग हो, ख़ुशबू हो, ज़िया हो
*ज़ौक़-ए-नज़र=पारखी नज़र; ज़िया=उजाला

यूँ तेरी निगाहों में असर ढूँड रहा हूँ
जैसे कि तुझे दल के धड़कने का पता हो

इस दर्जा मोहब्बत में तग़ाफ़ुल नहीं अच्छा
हम भी जो कभी तुम से गुरेज़ाँ हों तो क्या हो
*तग़ाफ़ुल=अनदेखा करना; गुरेज़ाँ=भागता हुआ (लम्हा)

हम ख़ाक के ज़र्रों में हैं 'अख़्तर' भी, गुहर भी
तुम बाम-ए-फ़लक से, कभी उतरो तो पता हो
*ख़ाक=धूल; ज़र्रों=कण; गुहर=मोती; बाम-ए-फ़लक=आकाश की छत

~ हरी चंद अख़्तर

Jun 22, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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