Wednesday, November 19, 2014

जाने किस चाह के, किस प्यार के गुन गाते हो

जाने किस चाह के, किस प्यार के गुन गाते हो
रात दिन कौन से दिलदार के गुन गाते हो

ये तो देखो कि तुम्हें लूट लिया है उस ने
इक तबस्सुम पे, ख़रीदार के गुन गाते हो
*तबस्सुम=मुस्कान

अपनी तनहाई पे नाजाँ हो मिरे सादा-मिज़ाज
अपने सूने दर ओ दीवार के गुन गाते हो
*नाजाँ=गर्वित; सादा-मिज़ाज=सरल, सीधा पन

अपने ही ज़ेहन की तख़्लीक़ पे इतने सरशार
अपने अफ़्सानवी किरदार के गुन गाते हो
*तख़्लीक़=सृजन; सरशार=भावातिरेक; अफ़्सानवी=गढ़ा हुआ

और लोगों के भी घर होते हैं, घर वाले भी
सिर्फ़ अपने दर ओ दीवार के गुन गाते हो

~ ऐतबार साजिद

   Nov 8, 2014

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