Sunday, March 8, 2015

मैं सुलगते हुए राज़ों को अयाँ

मैं सुलगते हुए राज़ों को अयाँ तो कर दूं,
लेकिन इन राज़ों की तशहीर से जी डरता हैं।
रात के ख़्वाब उजाले में बयाँ तो कर दूं,
इन हसीं ख़्वाबों की ताबीर से जी डरता हैं।

*अयाँ=ज़ाहिर; तशहीर=किसी की कमियों का खुलासा करना; ताबीर=परिणाम

~ साहिर लुधियानवी
   Mar 06, 2015 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

No comments:

Post a Comment