Saturday, February 27, 2016

जलने वाले तो जल बुझे आख़िर

आख़िरी टीस आज़माने को
जी तो चाहा था मुस्कुराने को

जलने वाले तो जल बुझे आख़िर
कौन देता ख़बर ज़माने को

कितने मजबूर हो गये होंगे
अनकही बात मुँह पे लाने को

खुल के हँसना तो सब को आता है
लोग तरसते रहे इक बहाने को

रेज़ा रेज़ा बिखर गया इन्साँ
दिल की वीरानियाँ जताने को

हाथ काँटों से कर लिये ज़ख़्मी
फूल बालों में इक सजाने को

~ अदा ज़ाफ़री


  Feb 17, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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