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Monday, April 16, 2018

उन के लहजे में वो कुछ लोच

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उन के लहजे में वो कुछ लोच वो झंकार वो रस
एक बे-क़स्द तरन्नुम के सिवा कुछ भी न था
*बे-क़स्द=प्रयाह-हीन; तरन्नुम=गीत जैसा

काँपते होंटों में उलझे हुए मुबहम फ़िक़रे
वो भी अंदाज़-ए-तकल्लुम के सिवा कुछ भी न था
*मुबहम=अस्पष्ट; फिक़रे=वाक्य; अंदाज़-ए-तकल्लुम=बात करने का तरीका

सैकड़ों टीसें नज़र आती थीं जिस में मुझ को
वो भी इक सादा तबस्सुम के सिवा कुछ भी न था
*तबस्सुम=मुस्कुराहट

सर्द ओ ताबिंदा सी पेशानी वो मचले हुए अश्क
दिन में नूर-ए-माह-ओ-अंजुम के सिवा कुछ भी न था
*सर्द=निर्जीव; ताबिंदा=चमकते हुए; नूर-ए-माह-ओ-अंजुम=चाँद और सितारों की रौशनी

तुंद आहों के दबाने में वो सीने का उभार
एक यूँ ही से तलातुम के सिवा कुछ भी न था
*तुंद=तेज; तलातुम=लहर

मैं ने जो देखा था, जो सोचा था, जो समझा था
हाए 'जज़्बी' वो तवहहुम के सिवा कुछ भी न था
*तवह्हुम=अंध-विश्वास

~ मुईन अहसन जज़्बी


  Apr 14, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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