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Saturday, August 31, 2019

फूल की ख़ुशबू


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फूल की ख़ुशबू हँसती आई
मेरे बसेरे को महकाने
मैं ख़ुशबू में ख़ुशबू मुझ में
उस को मैं जानूँ मुझ को वो जाने
मुझ से छू कर मुझ में बस कर
इस की बहारें उस के ज़माने
लाखों फूलों की महकारें
रखते हैं गुलशन वीराने
मुझ से अलग हैं मुझ से जुदा हैं
मैं बेगाना वो बेगाने

उन को बिखेरा उन को उड़ाया
दस्त-ए-ख़िज़ाँ ने मौज-ए-सबा ने
भूला-भटका नादाँ क़तरा
आँखों की पुतली को सजाने
आँसू बन कर दौड़ा आया
मेरी पलकें उस के ठिकाने
उस का थिरकना, उस का तड़पना
मेरे क़िस्से मेरे फ़साने
उस की हस्ती मेरी हस्ती
उस के मोती मेरे ख़ज़ाने
बाक़ी सारे गौहर-पारे
ख़ाक के ज़र्रे रेत के दाने

पर्बत की ऊँची चोटी से
दामन फैलाया जो घटा ने
ठंडी हवा के ठंडे झोंके
बे-ख़ुद आवारा मस्ताने
अपनी ठंडक ले कर आए
मेरी आग में घुल-मिल जाने
उन की हस्ती का पैराहन
मेरी साँस के ताने-बाने
उन के झकोले मेरी उमंगें
उन की नवाएँ मेरे तराने
बाक़ी सारे तूफ़ानों को
जज़्ब किया पहना-ए-फ़ज़ा ने

फ़ितरत की ये गूनागूनी
गुलशन बिन वादी वीराने
काँटे कलियाँ नूर अंधेरा
अंजुमनें शमएँ परवाने
लाखों शातिर लाखों मोहरे
फैले हैं शतरंज के ख़ाने
जानता हूँ मैं ये सब क्या हैं
सहबा से ख़ाली पैमाने
भूकी मिट्टी को सौंपे हैं
दुनिया ने अपने नज़राने
जिस ने मेरा दामन थामा
आया जो मुझ में बस जाने
मेरे तूफ़ानों में बहने
मेरी मौजों में लहराने

मेरे सोज़-ए-दिल की लौ से
अपने मन की जोत जगाने
ज़ीस्त की पहनाई में फैले
मौत की गीराई को न जाने
उस का बरबत मेरे नग़्मे
उस के गेसू मेरे शाने
मेरी नज़रें उस की दुनिया
मेरी साँसें उस के ज़माने

~ मजीद अमजद

 Feb 15, 2020 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Friday, August 30, 2019

कौन सोचे



कौन सोचे कि
सूरज के हाथों में क्या है
हवाओं की तहरीर पढ़ने की
फ़ुर्सत किसी को नहीं
कौन ढूँडे
फ़ज़ाओं में तहलील रस्ता
कौन गुज़रे
सोच के साहिलों से
ख़्वाहिशों की सुलगती हुई रेत को
कौन हाथों में ले
कौन उतरे
समुंदर की गहराइयों में
चाँदनी की जवाँ उँगलियों में
उँगलियाँ कौन डाले
कौन समझे
मिरे फ़लसफ़े को
जल्द ही ये सफ़र ख़त्म होने को है
किसी बेनाम-ओ-निशाँ लम्हे में दिल चाहता है

दूरियाँ बस मिरी मुट्ठी में सिमट कर रह जाएँ
डोरियाँ ख़ेमा-ए-तन्हाई की कट कर रह जाएँ 

*बेनाम-ओ-निशाँ=पहचान रहित;  ख़ेमा-ए-तन्हाई= अकेलेपन का डेरा


~ असअ'द बदायुनी


 Aug 30, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Saturday, August 24, 2019

किस ओर मैं, किस ओर मैं

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किस ओर मैं, किस ओर मैं!

है एक ओर असित निशा,
है एक ओर अरुण दिशा,
पर आज स्‍वप्‍नों में फँसा, यह भी नहीं मैं जानता
किस ओर मैं, किस ओर मैं!

है एक ओर अगम्‍य जल,
है एक ओर सुरम्‍य थल,
पर आज लहरों से ग्रसा, यह भी नहीं मैं जानता
किस ओर मैं, किस ओर मैं!

है हार ऐक तरफ पड़ी,
है जीत ऐक तरफ खड़ी,
संघर्ष-जीवन में धँसा, यह भी नहीं मैं जानता।
किस ओर मैं, किस ओर मैं!

~ हरिवंशराय बच्चन

 Aug 24, 2019 | e-kavya.blogspot.com
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Friday, August 23, 2019

आजु दिन कान्ह आगमन




आजु दिन कान्ह आगमन के बधाए सुनि ,
छाए मग फूलन सुहाए थल थल के।
कहैँ पदमाकर त्योँ आरती उतारिबे को ,
थारन मे दीप हीरा हारन के छलके।
कंचन के कलस भराए भूरि पन्नन के ,
ताने तुँग तोरन तहाँई झलाझल के।
पौर के दुवारे तैँ लगाय केलि मँदिर लौ,
पदमिनि पांवडे पसारे मखमल के।

~ पद्माकर

 Aug 23, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Sunday, August 18, 2019

मेरा वतन हिन्दोस्ताँ

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मेरा वतन हिन्दोस्ताँ 
हर राह जिस की कहकशाँ
कोह-ए-गिराँ से कम नहीं जिस के जियाले नौजवाँ
ये वीर-ओ-गौतम की ज़मीं अमन-ओ-अहिंसा का चमन
अकबर के ख़्वाबों का जहाँ चिश्ती-ओ-नानक का वतन
शमएँ हज़ारों हैं मगर है एकता की अंजुमन
तहज़ीब का गहवारा हैं गंग-ओ-जमन की वादियाँ
मेरा वतन हिन्दोस्ताँ

तारीख़ की अज़्मत है ये जम्हूरियत की शान है
रूहानियत की रूह है सब मज़हबों की जान है
ये अपना हिन्दोस्तान है ये अपना हिन्दोस्तान है
हासिल यहाँ इंसान को हर तरह की आज़ादियाँ
मेरा वतन हिन्दोस्ताँ

जब दिल से दिल मिलते गए मिटते गए सब फ़ासले
ये आज का नग़्मा नहीं सदियों के हैं ये सिलसिले
सदियों से मिल कर ही बढ़े सब अहल-ए-दिल के क़ाफ़िले
इक साथ उठती है यहाँ आवाज़-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ
मेरा वतन हिन्दोस्ताँ

तारीख़ के इस मोड़ पर हम फ़र्ज़ से ग़ाफ़िल नहीं
क़ाबू न जिस पर पा सकें ऐसी कोई मुश्किल नहीं
जिस को न हम सर कर सकें ऐसी कोई मंज़िल नहीं
हाँ बाँकपन की शान से है कारवाँ अपना रवाँ
मेरा वतन हिन्दोस्ताँ

~ रिफ़अत सरोश

 Aug 18, 2019 | e-kavya.blogspot.com
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Saturday, August 17, 2019

ज़िंदगी घबरा गई है

 
जिस्म का जस, रूप का रस, काम का कस
ज़िंदगी की ये सुहानी धूप बहलाती रही है मेरे मन को
ख़ूब गरमाती रही है, आरज़ूओं की पवन को
और चमकाती रही है अपने-पन को

*जस=उत्कृष्टता; रस=मर्म, तत्व; कस=दुराग्रह, सख़्त पकड़

दे के इक नश्शा नयन को
लज्जतों में डूब कर भी
मैं उभरता ही रहा हूँ
सोच की बे-ताब लहरें ज़ेहन में रक़्साँ रही हैं

*लज्जत=स्वादिष्ट पन; रक़्साँ=नृत्य करती

लेकिन अब तो इक उदासी छा गई है
सोच की शाम आ गई है
ज़िंदगी घबरा गई है

~ कृष्ण मोहन

 Aug 17, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Friday, August 16, 2019

ख़्वाब के म'अनी

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ख़्वाबों से तही (खाली) बे-नूर आँखें
हर शाम नए मंज़र चाहें
बेचैन बदन प्यासी रूहें
हर आन नए पैकर (शरीर) चाहें

बेबाक लहू
अन-देखे सपनों की ख़ातिर
जाने अनजाने रस्तों पर
कुछ नक़्श (निशान) बनाना चाहता है
बंजर पामाल (रौंदी) ज़मीनों में
कुछ फूल खिलाना चाहता है

यूँ नक़्श कहाँ बन पाते हैं
यूँ फूल कहाँ खिलने वाले
इन बदन-दरीदा (फटे हाल बदन) रूहों के
यूँ चाक (फटे हुए) कहाँ सिलने वाले

बेबाक लहू को हुर्मत (इज़्ज़त) के आदाब सिखाने पड़ते हैं
तब मिट्टी मौज में आती है
तब ख़्वाब के म'अनी बनते हैं
तब ख़ुशबू रंग दिखाती है

~  इफ़्तेख़ारआरिफ़


 Aug 16, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Thursday, August 15, 2019

आज़ादी

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आज हम सब शाद हैं अपना वतन आज़ाद है
हम हैं बुलबुल जिस चमन के वो चमन आज़ाद है
आज आज़ादी का दिन है आओ हम ख़ुशियाँ मनाएँ
नाच आज़ादी का नाचें गीत आज़ादी के गाएँ
थी घटा छाई हुई अंधेर की वो छट गई
तेग़-ए-आज़ादी से ज़ंजीर-ए-ग़ुलामी कट गई
*शाद=प्रसन्न; तेग़=तलवार

आज वो दिन है हुई थी देश की जनता की जीत
आज ही के दिन चली थी इस में आज़ादी की रीत
आज वो दिन है तराने ऐश के इशरत के गाएँ
आज वो दिन है कि तानें मिल के ख़ुशियों की उड़ाएँ
क़ौम जो आज़ाद है दुनिया में इज़्ज़त उस की है
आन उस की शान उस की और अज़्मत उस की है
* इशरत=ख़ुशी; अज़्मत=प्रतिष्ठा

देश के बच्चे भी ख़ुश हैं क्यों न हो इन की ख़ुशी
खिल गई है फूल बन कर आज हर दिल की कली
दिल लगी है चहल है और हर तरफ़ हैं क़हक़हे
हैं ये बुलबुल इस चमन के कर रहे हैं चहचहे
दिल में जज़्बा है जवाँ हो कर सभी आगे बढ़ें
अज़्म है ये जान-ओ-दिल से देस की ख़िदमत करें
*अज़्म=दृढ़ निश्चय

अम्न-ओ-आज़ादी का हम पैग़ाम दुनिया को सुनाएँ
देस की अपने बड़ाई अपने कामों से दिखाएँ
फ़र्ज़ अपना हम करें दिल से अदा और जान से
हो वफ़ादारी हमारी अपने हिन्दोस्तान से
एक इक बच्चा गई हो इल्म का चर्चा बढ़े
एक इक बच्चा धनी हो देस की सेवा करे
*अम्न=शांति

एक इक बच्चा रहे बढ़ चढ़ के गुन और ज्ञान में
इक से इक बढ़ कर दिखाए आप को विज्ञान में
आओ 'नय्यर' देस के बच्चों की झुरमुट में तुम आओ
आओ आओ नज़्म आज़ादी की बच्चों को सुनाओ
आओ सब ना'रा लगाएँ ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान
आओ हम सब मिल के गाएँ ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान
ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान

~ मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर


 Aug 15, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, August 14, 2019

ख़राबी

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ख़राबी का आग़ाज़
कब और कहाँ से हुआ
ये बताना है मुश्किल
कहाँ ज़ख़्म खाए
कहाँ से हुए वार
ये भी दिखाना है मुश्किल
कहाँ ज़ब्त की धूप में हम बिखरते गए
और कहाँ तक कोई सब्र हम ने समेटा
सुनाना है मुश्किल

ख़राबी बहुत सख़्त-जाँ है
हमें लग रहा था ये हम से उलझ कर
कहीं मर चुकी है
मगर अब जो देखा तो ये शहर में
शहर के हर मोहल्ले में हर हर गली में
धुएँ की तरह भर चुकी है

ख़राबी रूएँ में
ख़्वाबों में, ख़्वाहिश में
रिश्तों में घिर चुकी है
ख़राबी तो लगता है
ख़ूँ में असर कर चुकी है

ख़राबी का आग़ाज़
जब भी जहाँ से हुआ हो
ख़राबी के अंजाम से ग़ालिबन
जाँ छुड़ाना है मुश्किल

~ अज़्म बहज़ाद


 Aug 14, 2019 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, August 11, 2019

नया आने वाला ज़माना हमारा

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है रौशन हक़ीक़त फ़साना हमारा
नई ज़िंदगी बन के बिखरेगा हर सू
नई रौशनी का तराना हमारा
नया आने वाला ज़माना हमारा

पुराने चराग़ों के मद्धम उजालो
हमारे ही हाथों सजेगी ये महफ़िल
हमें सिर्फ़ बच्चा समझ कर न टालो
नया आने वाला ज़माना हमारा

तुम्हारी बुज़ुर्गी का है पास हम को
मगर इस नए दौर की रौशनी में
है अपने फ़राएज़ का एहसास हम को
नया आने वाला ज़माना हमारा
*पास=लिहाज़; फ़राएज़=फ़र्ज़(बहुवचन)

ये दौर-ए-शबाब बहार-ए-ज़मीं है
तुम्हारा ज़माना तो जैसा रहा हो
नया आने वाला ज़माना हसीं है
नया आने वाला ज़माना हमारा

~ सलाम मछलीशहरी


 Aug 11, 2019 | e-kavya.blogspot.com
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Saturday, August 10, 2019

तुम्हें ख़्वाहिश को छूने की तमन्ना है



तुम्हें ख़्वाहिश को छूने की तमन्ना है

ख़्वाहिशें तो उड़ती-फिरती तितलियाँ हैं
डाक की नाकारा टिकटें तो नहीं हैं
जिन्हें एल्बम में रख कर तुम ये समझो
कि ये नायाब चीज़ें अब तुम्हारी दस्तरस (पहुँच) में हैं

तुम्हें सपने पकड़ने की तमन्ना है
नहीं ये ग़ैर-मुमकिन है
कि सपने अन-छुए लम्हों के नाज़ुक अक्स (प्रतिबिम्ब) हैं
आराइशी (सजी हुई) बेलें नहीं
जो कमरे की किसी दीवार पर सज कर
तुम्हारी दीद (नज़र) का एहसाँ उठाएँ

तुम्हें कोहरे के भीगे फूल चुनने की तमन्ना है
ये कोहरा तो चराग़-ए-मौसम-ए-गुल का धुआँ है
कोई दीवार-ए-बर्लिन पर खिंची तहरीर (लिखावट) या नक़्शा नहीं
जिसे जिस वक़्त जो चाहे बदल दे
या मिटा दे
सब्ज़-रू (हरित) कोहरा पकड़ना इस क़दर आसाँ नहीं

सुनो, दीवानगी छोड़ो
चलो वापस हक़ीक़त में चलें

~ हामिद यज़दानी


 Aug 10, 2019 | e-kavya.blogspot.com
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Friday, August 9, 2019

मेरी इक छोटी सी कोशिश

 
मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझ को पाने के लिए
बन गई है मसअला सारे ज़माने के लिए

रेत मेरी उम्र मैं बच्चा निराले मेरे खेल
मैं ने दीवारें उठाई हैं गिराने के लिए

वक़्त होंटों से मिरे वो भी खुरच कर ले गया
इक तबस्सुम जो था दुनिया को दिखाने के लिए

आसमाँ ऐसा भी क्या ख़तरा था दिल की आग से
इतनी बारिश एक शोले को बुझाने के लिए

छत टपकती थी अगरचे फिर भी आ जाती थी नींद
मैं नए घर में बहुत रोया पुराने के लिए

देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपना
तजरबे आए थे संजीदा बनाने के लिए

मैं 'ज़फ़र' ता-ज़िंदगी बिकता रहा परदेस में
अपनी घर-वाली को इक कंगन दिलाने के लिए

~ ज़फ़र गोरखपुरी


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Sunday, August 4, 2019

हसरत कहूँ तो किस से कहूँ

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भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
सुने है कौन मुसीबत कहूँ तो किस से कहूँ

जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ
तिरे है दिल में कुदूरत कहूँ तो किस से कहूँ
*कुदूरत=मैल

न कोहकन है न मजनूँ कि थे मिरे हमदर्द
मैं अपना दर्द-ए-मोहब्बत कहूँ तो किस से कहूँ
*कोहकन= फ़रहाद, जिसने शीरीं के लिए पहाड़ काटा था

दिल उस को आप दिया आप ही पशेमाँ हूँ
कि सच है अपनी नदामत कहूँ तो किस से कहूँ
*पशेमाँ=शर्मिंदा; नदामत=लज्जा

कहूँ मैं जिस से उसे होवे सुनते ही वहशत
फिर अपना क़िस्सा-ए-वहशत कहूँ तो किस से कहूँ

रहा है तू ही तो ग़म-ख़्वार ऐ दिल-ए-ग़म-गीं
तिरे सिवा ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहूँ तो किस से कहूँ
*ग़म-ख़्वार=सांत्वना देने वाला; दिल-ए-ग़म-गीं=दुखी मन; ग़म-ए-फ़ुर्क़त=अलग होने का दुख

जो दोस्त हो तो कहूँ तुझ से दोस्ती की बात
तुझे तो मुझ से अदावत कहूँ तो किस से कहूँ
*अदावत=दुश्मनी

न मुझ को कहने की ताक़त कहूँ तो क्या अहवाल
न उस को सुनने की फ़ुर्सत कहूँ तो किस से कहूँ

किसी को देखता इतना नहीं हक़ीक़त में
'ज़फ़र' मैं अपनी हक़ीक़त कहूँ तो किस से कहूँ

~ बहादुर शाह ज़फ़र

 Aug 4, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Friday, August 2, 2019

ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति

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ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति, मान घटे पर गेह के जाये,
पाप घटे कछु पुन्य किये, अरु रोग घटे कछु औषध खाये।
प्रीति घटे कछु माँगन तें, अरु नीर घटे रितु ग्रीषम आये,
नारि प्रसंग ते जोर घटे, जम त्रास घटे हरि के गुन गाये।।

~ अज्ञात

भावार्थ:

धूर्त र्और धोखेबाज़ लोगों के साथ रहने से ज्ञान कम होता है, और दूसरे के घर बार बार जाने से सम्मान। परंतु इस दुनिया में पुण्य के काम करने से पाप कम होते हैं, और औषधि यानि कि दवा खाने से रोग नियंत्रण में होता है। कुछ माँगने से प्रेम में कमी आती है, जैसे कि गर्मी की ऋतु आने पर ताल तलैयों में पानी की कमी हो जाती है। इसी तरह सदा स्त्रियों के बारे में सोचने और चर्चा करते रहने से शरीर में दुर्बलता और मन के नियंत्रण में कमज़ोरी आती है लेकिन हरि के गुण गाने से डर, भय और तकलीफ़ में जम कर कमी आती है।


 Aug 2, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh