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Tuesday, March 31, 2015

नींद के पाँव पे पत्थर बन के




नींद के पाँव पे पत्थर बन के आते है ख्वाब
जख्म देते है उन्हें और टूटते जाते है ख्वाब

आप चाहे तो हमारी पुतलियो से पूछ लों
हमने यादो की रुई से रात भर काते है ख्वाब

नर्म चेहरे और उन पर सख्त चोटों के निशान
सोचिए इनके सिवा अब और क्या पाते है ख्वाब

बंद सीपी में छुपे अनमोल मोती की तरह
अपने अन्दर की चमक खुद ढूंढ़ कर लाते है ख्वाब

नींद में चलने का इनको रोग है लेकिन कुवर
नींद के बाहर भी अक्सर मुझसे टकराते है ख्वाब


~ कुँअर बेचैन 

  Dec 10, 2012 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh
 


गैरों से तो फुर्सत तुम्हें


गैरों से तो फुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है,
और मेरे लिए वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं है।

~ माधवराम जौहर 

  Mar 31, 2015 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

सुनसान है ये राहगुज़र



कोई धड़कन
न कोई चाप
न संचल (हलचल?)
न कोई मौज
न हलचल
न किसी साँस की गर्मी
न बदन
ऐसे सन्नाटे में इक आध तो पत्ता खड़के
कोई पिघला हुआ मोती
कोई आँसू
कोई दिल
कुछ भी नहीं
कितनी सुनसान है ये राहगुज़र
कोई रुखसार तो चमके, कोई बिजली तो गिरे । 


~ मख़्दूम मोहिउद्दीन
   Mar 30, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

अच्छा जो खफा हम से हो तुम



अच्छा जो खफा हम से हो तुम ए सनम अच्छा
लों हम भी न बोलेंगे खुदा की कसम अच्छा

गमी ने कुछ आग और ही सीने में लगा दी
हर तौर गरज आप आप से मिलना है कम अच्छा

अगयार से करते हो मिरे सामने बाते
मुझ पर ये लगे करने तुम सितम अच्छा
*अगयार=गैरो

कह कर गए, आता हू कोई दम में, मै तुम पास
फिर दे चले कल की सी तरह मुझ को दम अच्छा

इस हस्ती-ए-मौहूम से मै तंग हू इंशा
वल्लाह कि इस से बमरातिब अदम अच्छा
*हस्ती-ए-मौहूम=बेमतलब जीवन, बमरातिब=तुलना या मुकाबले में,
अदम=अपेक्षा, आसरा, प्रतीक्षा

~ इंशा अल्लाह खाँ इंशा


   Dec 14, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

फूल की मनुहार



 फूल की मनुहार

बिन छेड़े जी खोल सुगन्धों को जग में बिखरा दूँगा
उषा-राग पर दे पराग की भेंट रागिनी गा दूँगा
छेड़ोगे तो पत्ती-पत्ती चरणों पर बिखरा दूँगा
संचित जीवन साध कलंकित न हो कि उसे लुटा दूँगा

किन्तु मसल कर सखे! क्रूरता--
की कटुता तू मत जतला
मेरे पन को दफना कर
अपनापन तू मुझ पर मत ला।

~ माखनलाल चतुर्वेदी


   Dec 15, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

तेरी खुशबु में जलना चाहता हू



तेरी खुशबु में जलना चाहता हू
मै पत्थर हू, पिघलना चाहता हू

उजालो ने दिए है जख्म ऐसे
कि जिस्मो-जा बदलना चाहता हू

मै अपनी प्यास का सहरा हू लेकिन
समंदर बन के चलना चाहता हू
सहरा=रेगिस्तान

मेरे चेहरे पे खालों-खंद है किस के
मै आईना बदलना चाहता हू
खालो-खंद=नयन-शिख

शिकस्ता आयनों का अक्स हू मै
चट्टानों को कुचलना चाहता हू
शिकस्ता=टूटे हुए

खयालो-ख्वाब के सब घर जला कर
बदन की सम्त चलना चाहता हू
सम्त=तरफ

अगर सूरज नही हू मै, तो फिर क्यों
अंधेरो से निकलना चाहता हू मै

~ जाज़िब कुरैशी


   Dec 16, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

ग़मों ने घेर लिया है मुझे तो क्या



ग़मों ने घेर लिया है मुझे तो क्या ग़म है
मैं मुस्कुरा के जियूँगा तेरी ख़ुशी के लिये
कभी कभी तू मुझे याद कर तो लेती है
सुकून इतना सा काफ़ी है ज़िन्दगी के लिये

ये वक़्त जिस ने पलट कर कभी नहीं देखा
ये वक़्त अब भी मुरादों के फल लाता है
वो मोड़ जिस ने हमें अजनबी बना डाला
उस एक मोड़ पे दिल अब भी गुनगुनाता है

फ़िज़ायें रुकती हैं राहों पर जिन से हम गुज़रे
घटायें आज भी झुक कर सलाम करती हैं
हर एक शब ये सुना है फ़लक से कुछ् परियाँ
वफ़ा का चाँद हमारे ही नाम करती हैं

ये मत कहो कि मुहब्बत से कुछ नहीं पाया
ये मेरे गीत मेरे ज़ख़्म-ए-दिल की रुलाई
जिन्हें तरसती रही अन्जुमन की रंगीनी
मुझ मिली है मुक़द्दर से ऐसी तन्हाई

~ सरदार अंजुम


   Dec 17, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

आरज़ू भी है, हसरत भी

आरज़ू भी है, हसरत भी, दर्द भी, मसर्रत भी
सैंकड़ों हैं हंगामें, ज़िंदगी मगर तन्हा ।

aarzoo bhi hai, hasrat bhi, dard bhi, masarrat bhi
saikdo.n hain hungamein, zindagi magar tanhaa

हसरत= इच्छा, मसर्रत=खुशी

~ 'इकबाल' सफीपुरी


   Dec 17, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

वो ख़ूबसूरत लड़कियाँ



वो ख़ूबसूरत लड़कियाँ
दश्त-ए-वफ़ा की हिरनियाँ
शहर-ए-शब-ए-महताब की
बेचैन जादूगरनियाँ

जो बादलों में खो गई
नज़रों से ओझल हो गई
अब सर्द काली रात को
आँखों में गहरा ग़म लिये
अश्कों की बहती नहर में
गुल्नार चेहरे नम किये

हस्ती की सरहद से परे
ख़्वाबों की सन्गीं ओट से
कहती हैं मुझ को बेवफ़ा
हम से बिछड़कर क्या तुझे
सुख का ख़ज़ाना मिल गया

~ मुनीर नियाज़ी


   Dec 18, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

हम तुम मिले न थे तो

और एक सदाबहार शेर:

हम तुम मिले न थे तो जुदाई का था मलाल
अब ये मलाल है कि तमन्ना निकल गई
 
~ जलील मानिकपुरी

   Dec 18, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

ये जिद कि वो इंसान न होंगे



नकी ये जिद कि वो इंसान न होंगे, हरगिज़
मुझको ये फ़िक्र, कहीं मैं न फ़रिश्ता हो जाऊं

भूल बैठा हूँ तेरी याद में रफ़्तार अपनी
मुझको छू दे कि मैं बहता हुआ झरना हो जाऊं

बंद कमरे में तेरी याद की खुशबू लेकर
एक झोंका भी जो आ जाय तो ताज़ा हो जाऊं

~ सत्य प्रकाश शर्मा


   Dec 19, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

मोहब्बत को गले का हार भी



मोहब्बत को गले का हार भी करते नहीं बनता
कुछ ऐसी बात है इनकार भी करते नहीं बनता

ख़ुलूसे-नाज़ की तौहीन भी देखी नहीं जाती
शऊरे-हुस्न को बेदार भी करते नहीं बनता
*ख़ुलूस=निष्कपट, शऊर=तमीज़, बेदार=सचेत

तुझे अब क्या कहे ऐ मेहरबा अपना ही रोना है
कि सारी जिंदगी ईसार भी करते नहीं बनता
*ईसार=त्याग, (self-denial)

भंवर से जी भी घबराता है लेकिन क्या किया जाए
तवाफे-मौजे-कमरफ़्तार भी करते नहीं बनता
*तवाफे-मौजे-कमरफ़्तार=धीमी रफ्तार से लहर (भँवर) के चक्कर लगाना

इसी दिल को भरी दुनिया के झगडे झेलने ठहरे
यही दिल जिसको दुनियादार भी करते नहीं बनता

जलाती है दिलो को सर्द-महरी भी ज़माने की
सवाले-गर्मी-ए-बाज़ार भी करते नहीं बनता
*सर्द-महरी=कठोरता, सवाले-गर्मी-ए-बाज़ार=सवालो से बाज़ार गर्म करना

उनकी तवज्जो ऐसी मुमकिन नहीं लेकिन
ज़रा सी बात पर इसरार भी करते नहीं बनता
*तवज्जो=ध्यान देना, इसरार=आग्रह, जिद

~ महबूब खिंजा


   Dec 20, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

न चन्दन फूल की वेला



पर्व ज्वाला का, नहीं वरदान की वेला !
न चन्दन फूल की वेला !

चमत्कृत हो न चमकीला
किसी का रूप निरखेगा,
निठुर होकर उसे अंगार पर
सौ बार परखेगा
खरे की खोज है इसको, नहीं यह क्षार से खेला !

किरण ने तिमिर से माँगा
उतरने का सहारा कब ?
अकेले दीप ने जलते समय
किसको पुकारा कब ?
किसी भी अग्निपंथी को न भाता शब्द का मेला !

किसी लौ का कभी सन्देश
या आहूवान आता है ?
शलभ को दूर रहना ज्योति से
पल-भर न भाता है !
चुनौती का करेगा क्या, न जिसने ताप को झेला !

खरे इस तत्व से लौ का
कभी टूटा नहीं नाता
अबोला, मौन भाषाहीन
जलकर एक हो जाता !
मिलन-बिछुड़न कहाँ इसमें, न यह प्रतिदान की वेला !

सभी का देवता है एक
जिसके भक्त हैं अनगिन,
मगर इस अग्नि-प्रतिमा में
सभी अंगार जाते बन !
इसी में हर उपासक को मिला अद्वैत अलबेला !

न यह वरदान की वेला
न चन्दन फूल का मेला !
पर्व ज्वाला का, न यह वरदान की वेला।

~ महादेवी वर्मा ('अग्निरेखा' संकलन से)


   Dec 21, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

तुम्हारा प्यार



तमाम विवशताओं से बंधा
तुम्हारा प्यार,
मेरे लिए सिर्फ एक झीनी सी चादर
जिसे ओढ़ कर न तो मैं अपनी लाज
पूर्णतः ढकने में समर्थ हूँ,
और न ही पूर्णतया निर्लज्ज हो
उसे त्यागने में ही सफल !

~ 'प्रमिला' ('कहाँ हूँ मैं'' संकलन से)


   Dec 22, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

सितारों से आगे जहां और भी हैं

सितारों से आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

sitaro.n se aage jahaa.n aur bhi hai.n
abhi ishq ke imtihaa.n aur bhi hai.n

~ 'इक़बाल'

   Dec 22, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

लायी हयात, आये, क़ज़ा ले चली, चले



लायी हयात, आये, क़ज़ा ले चली, चले
अपनी ख़ुशी न आये, न अपनी ख़ुशी चले
हयात=ज़िन्दगी, क़ज़ा=मौत

बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले

कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बद-क़िमार
जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले
बिसात=(जुए की) बाजी, बद-क़िमार=कच्चे जुआरी

हो उम्रे-ख़िज़्र तो भी कहेंगे ब-वक़्ते-मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आये अभी चले
उम्रे-ख़िज़्र=कभी न मरने वाला, ब-वक़्ते-मर्ग=मरते समय

दुनिया ने किसका राहे-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो युँ ही जब तक चली चले

नाज़ाँ न हो ख़िरद पे जो होना है वो ही हो
दानिश तेरी न कुछ मेरी दानिशवरी चले
नाज़ाँ=अभिमानी,घमंडी, ख़िरद=अक्ल,बुद्धि दानिश=समझदार

जा कि हवा-ए-शौक़ में हैं इस चमन से 'ज़ौक़'
अपनी बला से बादे-सबा अब कहीं चले
हवा-ए-शौक़=प्रेम की हवा, बादे-सबा= सुबह की ठंधी पवन

~ मोहम्मद इब्राहिम 'ज़ौक़'


   Dec 23, 2012| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

पुलक पुलक उर, सिहर सिहर तन



पुलक पुलक उर, सिहर सिहर तन,
आज नयन आते क्यों भर-भर।

सकुच सलज खिलती शेफाली;
अलस मौलश्री डाली डाली;
बुनते नव प्रवाल कुजों में,
रजत श्याम तारों से जाली;
शिथिल मधु-पवन गिन-गिन मधु-कण,
हरसिंगार झरते हैं झर झर।
आज नयन आते क्यों भर भर ?

पिक की मधुमय वंशी बोली,
नाच उठी सुन अलिनी भोली;
अरुण सजग पाटल बरसाता,
तम पर मृदु पराग की रोली;
मृदुल अंक धर, दर्पण सा सर,
आज रही निशि दृग-इन्दीवर !
आज नयन आते क्यों भर भर ?

आँसू बन बन तारक आते,
सुमन हृदय में सेज बिछाते;
कम्पित वानीरों के बन भी,
रह रह करुण विहाग सुनाते,
निद्रा उन्मन, कर कर विचरण,
लौट रही सपने संचित कर !
आज नयन आते क्यों भर भर ?

जीवन-जल-कण से निर्मित सा,
चाह-इन्द्रधनु से चित्रित सा,
सजल मेघ सा धूमिल है जग,
चिर नूतन सकरुण पुलकित सा;
तुम विद्युत् बन, आओ पाहुन !
मेरी पलकों में पग धर धर !
आज नयन आते क्यों भर भर ?

~ महादेवी वर्मा (नीरजा)


  Dec 24, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

मोह मछलियों का अब छोड़



सभी पाठकों को '2012 क्रिसमस' की शुभ कामनाएँ ।

प्रस्तुत है हरिवंश राय बच्चन जी की कविता। इस श्रंखला की कविताएं 1960-70 के दशक में लिखी थीं। लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच कर जीवन की वास्तविकता के संबंध में उनके मन में अनेक भाव उठे। 

बच्चनजी के शब्दों में, "मेरी कविता मोह से प्रारंभ हुई थी और मोह-भंग पर समाप्त हो गयी।"

जाल-समेटा करने में भी
समय लगा करता है, माँझी,
मोह मछलियों का अब छोड़।

सिमट गई किरणें सूरज की,
सिमटीं पंखुड़ियाँ पंकज की,
दिवस चला छिति से मुँह मोड़।

तिमिर उतरता है अम्बर से,
एक पुकार उठी है घर से,
खींच रहा कोई बे-डोर।

जो दुनिया जगती, वह सोती;
उस दिन की सन्ध्या भी होती,
जिस दिन का होता है भोर।

नींद अचानक भी आती है,
सुध-बुध सब हर ले जाती है,
गठरी में लगता है चोर।

अभी क्षितिज पर कुछ-कुछ लाली,
जब तक रात न घिरती काली,
उठ अपना सामान बटोर।

जाल-समेटा करने में भी,
वक़्त लगा करता है, माँझी,
मोह मछलियों का अब छोड़

~ हरिवंशराय बच्चन


  Dec 25, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

दुनिया मेरी नज़र से तुझे देखती रही



दुनिया मेरी नज़र से तुझे देखती रही
फिर मेरे देखने में बता क्या कमी रही

क्या ग़म अगर क़रार ओ सुकूँ की कमी रही
ख़ुश हूँ कि कामयाब मेरी ज़िन्दगी रही

इक दर्द था जिगर में जो उठता रहा मुदाम
इक आग थी कि दिल में बराबर लगी रही
मुदाम=हमेशा

दामन दरीदा लब पे फुगाँ आँख खूँचकाँ
गिरकर तेरी नज़र से मेरी बेकसी रही
दामन= आंचल, दरीदा=हिस्सों में बटा हुआ, लब पे फुगाँ=होठों पर दर्द की पुकार, खूँचकाँ=जिससे खून टपक रहा हो, बेकसी=मजबूरी

आई बहार जाम चले मय लुटी मगर
जो तिशनगी थी मुझको वही तिशनगी रही
तिशनगी=प्यास

खोई हुई थी तेरी तजल्ली में कायनात
फ़िर भी मेरी निग़ाह तुझे ढूँढती रही
तजल्ली=रौनक, कायनात=सृष्टि

जलती रहीं उम्मीद की शम्में तमाम रात
मायूस दिल में कुछ तो ज़िया रोशनी रही

~ मेहर लाल ज़िया फतेहाबादी


  Dec 26, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार



मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार

लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत
पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम

सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप

सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास
चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान

~ निदा फ़ाज़ली


  Dec 27, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं



इधर भी गधे हैं उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूं गधे ही गधे हैं

गधे हँस रहे आदमी रो रहा है
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है

जवानी का आलम गधों के लिये है
ये रसिया ये बालम गधों के लिये है

ये दिल्ली ये पालम गधों के लिये है
ये संसार सालम गधों के लिये है

पिलाए जा साकी पिलाए जा डट के
तू विहस्की के मटके पै मटके पै मटके

मैं दुनियां को अब भूलना चाहता हूं
गधों की तरह झूमना चाहता हूं

घोडों को मिलती नहीं घास देखो
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो

यहाँ आदमी की कहां कब बनी है
ये दुनियां गधों के लिये ही बनी है

जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है

जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है

मैं क्या बक गया हूं ये क्या कह गया हूं
नशे की पिनक में कहां बह गया हूं

मुझे माफ करना मैं भटका हुआ था
वो ठर्रा था भीतर जो अटका हुआ था

~ ओम प्रकाश 'आदित्य'


  Dec 28, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

रग-ओ-पै में जब उतरे

रग-ओ-पै में जब उतरे ज़हर-ए-ग़म तब देखिये क्या हो
अभी तो तल्ख़ि-ए-काम-ओ-दहन की की आज़माइश है

 
*रग-ओ-पै: नसें और मांसपेशियां (यानी पूरी देह),
  तल्ख़ि-ए-काम-ओ-दहन: होंठ और तालु पर महसूस होने वाला कसैलापन


~ मिर्ज़ा ग़ालिब

  Dec 28, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

हमेशा देर कर देता हूँ मैं

 

हमेशा देर कर देता हूँ मैं

ज़रूरी बात कहनी हो
कोई वादा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो
उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

मदद करनी हो उसकी
यार का धाढ़स बंधाना हो
बहुत देरीना* रास्तों पर
किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
*देरीना = पुराने
 
बदलते मौसमों की सैर में
दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो
किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

किसी को मौत से पहले
किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ
उस को जा के ये बताना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

~ मुनीर नियाज़ी


  May 19, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 


http://www.youtube.com/watch?v=0zBhOP-4MB8
Hameisha deir kar deita hooN (Died on Dec. 26,...

पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा



पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है

चारागरी बीमारि-ए-दिल की रस्मे-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वरना दिलबर-ए-नादां भी इस दर्द का चारा जाने है
चारागरी: चिकित्सा,
रस्मे-ए-शहर-ए-हुस्न: सौन्दर्य के नगर की परम्परा

मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत, एक से वाक़िफ़ इनमें नहीं
और तो सब कुछ तंज़-ओ-कनाया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है
मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुत्फ़-ओ-इनायत: प्यार, मोहब्बत, मौज मज़े...,
तंज़-ओ-कनाया: व्यंग्य और पहेली,
रम्ज़-ओ-इशारा: रहस्य और संकेत

~ मीर तक़ी 'मीर'


  Dec 30, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 


E-Kavya उस्ताद मेहंदी हसन को क्या कहेंगे आप ?...
http://www.youtube.com/watch?v=A373M8P6S6o
See Translation

Khan Sahib Mehdi Hassan singing the amazing...

में तजी तारी तमन्ना

મેં તજ્યી તારી તમન્ના તેનો આ અઞામ છે
કે હવે સાચેજ લાગે છે કે તારૂ કામ છૅ

में तजी तारी तमन्ना तेनो आ अंजाम छे
के हवे साचेज लागे छे के तारू काम छे

me.n t'jee taaree tamanna teno aa anjaam chhe
ke hawe saachej laage chhe ke taaru kaam chhe


~ नामालूम

  Dec 30, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

ख़्वाब मरते नहीं




ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें कि जो
रेज़ा-रेज़ा हुए तो बिखर जाएँगे (रेज़ा-रेज़ा=कण-कण)
जिस्म की मौत से ये भी मर जाएँगे

ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब तो रोशनी हैं नवा हैं हवा हैं (नवा=आवाज़)
जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
ज़ुल्म के दोज़खों से भी फुकते नहीं

रोशनी और नवा के अलम
मक़्तलों में पहुँचकर भी झुकते नहीं (मक़्तलों=वधस्थल)
ख़्वाब तो हर्फ़ हैं (हर्फ़=अक्षर)
ख़्वाब तो नूर हैं (नूर=प्रकाश)
ख़्वाब सुक़रात* हैं
ख़्वाब मंसूर* हैं.

*सुक़रात=जिन्हें सच कहने के लिए ज़हर का प्याला पीना पड़ा था
*मंसूर=एक वली(महात्मा) जिन्होंने ‘अनलहक़’ (मैं ईश्वर हूँ) कहा था और इसके लिए उनकी गर्दन काट डाली गई थी

~ अहमद फ़राज़


  Dec 31, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

वर्ष सुनहरी स्मृतियाँ स्पर्श करे

 

जाने वाला वर्ष सुनहरी स्मृतियाँ स्पर्श करे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे।

वर्ष नया क्या सिर्फ कलैण्डर की तारीख नई सी है,
या जीवन के प्लेटफार्म से कोई रेल गई सी है,
कितने मित्र राह में चलते हुए नित्य बन जाते हैं,
उनमें से कितने ही तो सुख दुख में साथ निभाते हैं,
किंतु मित्रता की परिभाषा में परिवर्तन देखा है,
दूरी को कम ज़्यादा करती कोई नियति रेखा है,
मेरी अभिलाषा है जितने लोग दूर जा बैठे हैं,
मैं उन सबके पास कहीं जाऊँ जाकर के मुस्काऊँ,
और कहूँ नववर्ष तुम्हारे जीवन का उत्कर्ष करे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे।

जाने वाला वर्ष सुनहरी स्मृतियाँ स्पर्श करे,
सबके मन में नई चेतना आने वाला वर्ष भरे।

~ अभिनव शुक्ल


  Jan 1, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

फ़ज़ा तन गई, रास्ते मुस्कुराये



उफक़ के दरीचे से किरनों ने झांका
फ़ज़ा तन गई, रास्ते मुस्कुराये
उफक़=क्षितिज, फ़ज़ा=वातावरण

सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाख़सारों ने घूंघट उठाये
शाख़सारों=पेंड की शाखाएँ

परिन्दों की आवाज़ से खेत चौंके
पुरअसरार लै में रहट गुनगुनाये
पुरअसरार= रहस्यपूर्ण

हसीं शबनम-आलूद पगडंडियों से
लिपटने लगे-सब्ज़ पेड़ों के साये
शबनम-आलूद=ओस-भरी

वो दूर एक टीले पे आंचल सा झलका
तसव्वुर में लाखों दिये झिलमिलाये
तसव्वुर=कल्पना

~ साहिर लुधियानवी


  Jan 1, 2013| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

तुम्हारी आँख में सपना नहीं है

 

तुम्हें कल की कोई चिन्ता नहीं है
तुम्हारी आँख में सपना नहीं है।

ग़लत है ग़ैर कहना ही किसी को
कोई भी शख्स जब अपना नहीं है।

सभी को मिल गया है साथ ग़म का
यहाँ अब कोई भी तनहा नहीं है।

बँधी हैं हर किसी के हाथ घड़ियाँ
पकड़ में एक भी लम्हा नहीं है।

मेरी मंज़िल उठाकर दूर रख दो
अभी तो पाँव में छाला नहीं है।

~ ओमप्रकाश यती


  Jan 2, 2013| e-kavya.blogspot.com
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आपकी याद आती रही रात भर,



आपकी याद आती रही रात भर,
चश्म-ए-नम मुस्कुराती रही रात भर

रात भर दर्द की शम्मा जलती रही,
गम की लौ थरथराती रही रात भर

बांसुरी की सुरीली सुहानी सदा,
याद बन-बन के आती रही रात भर

याद के चाँद दिल में उतरते रहे,
चाँदनी जगमगाती रही रात भर

कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा,
कोई आवाज़ आती रही रात भर

~
मख़्दूम मोहिउद्दीन

  Jan 3, 2013| e-kavya.blogspot.com
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..and the audio,
https://www.youtube.com/watch?v=oy--rFE7fag

यारों से मुंह को मोड़ना



यारों से मुंह को मोड़ना कुछ तो ख़याल कर
बरसों की यारी तोड़ना कुछ तो ख़याल कर

अपनों से गांठ तोड़ना यूं ही सही मगर
गैरों से गांठ जोड़ना कुछ तो ख़याल कर

जग का ख़याल कर भले ही रात दिन मगर
घर का ख़याल छोड़ना कुछ तो ख़याल कर

उनके भी दिल धड़कते हैं दिल की तरह तेरे
नित डालियां झंझोड़ना कुछ तो ख़याल कर

माना कि ज़िन्दगी से परेशान है तू पर
पत्थर से सर को फोड़ना कुछ तो ख़याल कर

हाथों में तेरा हाथ लिया है किसी ने 'प्राण'
झटका के हाथ दौड़ना कुछ तो ख़याल कर

~ प्राण शर्मा


   Jan 4, 2013| e-kavya.blogspot.com
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अब मूर्ख बनो, मतिमंद बनो



बन चुके बहुत तुम ज्ञानचंद,
बुद्धि-प्रकाश, विद्यासागर ?
पर अब कुछ दिन को कहा मान,
तुम लाला मूसलचंद बनो !
अब मूर्ख बनो, मतिमंद बनो !

यदि मूर्ख बनोगे तो प्यारे,
दुनिया में आदर पाओगे।
जी, छोड़ो बात मनुष्यों की,
देवों के प्रिय कहलाओगे !
लक्ष्मीजी भी होंगी प्रसन्न,
गृहलक्ष्मी दिल से चाहेंगी।
हर सभा और सम्मेलन के
अध्यक्ष बनाए जाओगे !
पढ़ने-लिखने में क्या रक्खा,
आंखें खराब हो जाती हैं।
चिंतन का चक्कर ऐसा है,
चेतना दगा दे जाती है।
इसलिए पढ़ो मत, सोचो मत,
बोलो मत, आंखें खोलो मत,
तुम अब पूरे स्थितप्रज्ञ बनो,
सच्चे संपूर्णानन्द बनो ।
अब मूर्ख बनो, मतिमंद बनो !

मत पड़ो कला के चक्कर में,
नाहक ही समय गंवाओगे।
नाहक सिगरेटें फूंकोगे,
नाहक ही बाल बढ़ाओगे ।
पर मूर्ख रहे तो आस-पास,
छत्तीस कलाएं नाचेंगी,
तुम एक कला के बिना कहे ही,

छह-छह अर्थ बताओगे।
सुलझी बातों को नाहक ही,
तुम क्यों उलझाया करते हो ?
उलझी बातों को अमां व्यर्थ में,
कला बताया करते हो !
ये कला, बला, तबला, सारंगी,
भरे पेट के सौदे हैं,
इसलिए प्रथमतः चरो,
पुनः विचरो, पूरे निर्द्वन्द्व बनो,
अब मूर्ख बनो, मतिमंद बनो !

हे नेताओ, यह याद रखो,
दुनिया मूर्खों पर कायम है।
मूर्खों की वोटें ज्यादा हैं,
मूर्खों के चंदे में दम है।
हे प्रजातंत्र के परिपोषक,
बहुमत का मान करे जाओ !
जब तक हम मूरख जिन्दा हैं,
तब तक तुमको किसका ग़म है ?
इसलिए भाइयो, एक बार
फिर बुद्धूपन की जय बोलो !
अक्कल के किवाड़ बंद करो,
अब मूरखता के पट खोलो।
यह विश्वशांति का मूलमंत्र,
यह राम-राज्य की प्रथम शर्त,
अपना दिमाग गिरवीं रखकर,
खाओ, खेलो, स्वच्छंद बनो !
अब मूर्ख बनो, मतिमंद बनो !

~ पंडित गोपालप्रसाद व्यास


   Jan 5, 2013| e-kavya.blogspot.com
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इश्क की मार बड़ी दर्दीली



इश्क की मार बड़ी दर्दीली, इश्क में जी न फंसाना जी
सब कुछ करना इश्क न करना, इश्क से जान बचाना जी

वक़्त न देखे, उम्र न देखे, जब चाहे मजबूर करे
मौत और इश्क के आगे लोगो, कोई चले न बहाना जी

इश्क की ठोकर, मौत की हिचकी, दोनों का है एक असर
एक करे घर घर रुसवाई, एक करे अफसाना जी

इश्क की नेमत फिर भी यारो, हर नेमत पर भारी है
इश्क की टीसें देन खुदा की, इश्क से क्या घबराना जी

इश्क की नज़रों में सब यकसां, काबा क्या बुतखाना क्या
इश्क में दुनिया उक्बां क्या है, क्या अपना बेगाना जी

राह कठिन है पी के नगर की, आग पे चल कर जाना है
इश्क है सीढ़ी पी के मिलन की, जो चाहे तो निभाना जी

'तर्ज़' बहुत दिन झेल चुके तुम, दुनिया की जंजीरों को
तोड़ के पिंजरा अब तो तुम्हें है देस पिया के जाना जी

~ गणेश बिहारी 'तर्ज़'


  Jan 6, 2013| e-kavya.blogspot.com
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न तुम मेरे न दिल मेरा


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तुम मेरे दिल मेरा जान--ना-तवाँ मेरी 
तसव्वुर में भी सकतीं नहीं मजबूरियाँ मेरी 
*जान--ना-तवाँ=कमज़ोर जान 

तुम आए चैन आया मौत आई शब--'अदा 
दिल--मुज़्तर था मैं था और थीं बे-ताबियाँ मेरी 
*शब--'अदा=वादे की रात; दिल--मुज़्तर=बेताब दिल

अबस नादानियों पर आप-अपनी नाज़ करते हैं 
अभी देखी कहाँ हैं आप ने नादानियाँ मेरी 
*अबस=बेकार

ये मंज़िल ये हसीं मंज़िल जवानी नाम है जिस का 
यहाँ से और आगे बढ़ना ये उम्र--रवाँ मेरी 
*उम्र--रवाँ=गुजराती हुई ज़िंदगानी

~ फ़ैयाज़ हाशमी


  Jan 7, 2013| e-kavya.blogspot.com
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जिसको लाख मनाऊँ साथ न छोड़े



ऐसी है उधेड़बुन जिसको लाख मनाऊँ साथ न छोड़े
उधर तुम्हारी प्रीत पुकारे, इधर ज़माना हाथ न छोड़े

भाँति-भाँति की बातें आती रहती हैं इस पागल मन में
कभी तुम्हें दोषी ठहराता, कभी बिठा लेता पूजन में
भला या बुरा चाहे जैसा, मगर सोचता सिर्फ़ तुम्हीं को
अनुभव रखने वाले शायद, कहते होंगे प्यार इसी को
दुनियादार कभी बन जाऊँ, कभी प्यार में गोते खाऊँ
कभी सशंकित, कभी अचंभित, कभी समर्पित-सा हो जाऊँ
कभी बुद्धि संकल्प करे फिर डाँवाडोल कभी हो जाए
इसे तुम्हारी ख़ुशी समझ कर अपने भ्रम में ही इतराए
कभी पुरानी परंपरा कोई फिर से हावी हो जाए
बुद्धि संकुचित हो जाए तब अपने ऊपर ही पछताए
इसी डूबने-उतराने का खेल न जाने कब से चलता
ले हिचकोले जीवन-बेड़ा कभी बहकता, कभी संभालता

सरल नहीं संघर्ष प्रिये यह, लेकिन जूझ रहा मैं अब तक
भीतर कोई ताक़त है जो मुझको कभी अनाथ न छोड़े

~ आशुतोष द्विवेदी


  Jan 8, 2013| e-kavya.blogspot.com
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जहाँ से रास्ता भूला है बारहा

जहाँ से रास्ता भूला है बारहा ज़ाहिद,
वहीं से राह मुड़ी है शराबख़ाने की

ज़ाहिद=उपदेशक, सलाहकार

- असर लखनवी 

  Jan 8, 2013| e-kavya.blogspot.com
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ज़ाहिद न कह बुरी के ये मस्ताने




ज़ाहिद न कह बुरी के ये मस्ताने आदमी हैं
तुझको लिपट पड़ेंगे दीवाने आदमी हैं.

ग़ैरों की दोस्ती पर क्यूँ ऐतबार कीजे
ये दुश्मनी करेंगे बेगाने आदमी हैं.

तुम ने हमारे दिल में घर कर लिया तो क्या है
आबाद करते आख़िर वीराने आदमी हैं

क्या चोर हैं जो हम को दरबाँ तुम्हारा टोके
कह दो कि ये तो जाने-पहचाने आदमी हैं

~ दाग़ देहलवी


  Jan 9, 2013| e-kavya.blogspot.com
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जो तेरी बज़्म से उठा वो

जो तेरी बज़्म से उठा वो इस तरह उठा,
किसी की आँख में आँसू किसी के दामन में

~ 'नामालूम'

jo terii bazm se uTThaa vo is tarah uTThaa
kisii kii aa.Nkh me.n aa.Nsuu kisii ke daaman me.n

~ Namalum'

  Jan 9, 2013| e-kavya.blogspot.com
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बहुत नज़दीक होकर भी

बहुत नज़दीक होकर भी वो हमसे दूर है इतना
इशारा हो नहीं सकता, पुकारा जा नहीं सकता।

~ नामालूम

  Jan 9, 2013| e-kavya.blogspot.com
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बाग में कचनार की बातें करें



आओ बैठे बाग में कचनार की बातें करें,
दर्द की चादर बुनें, दो प्यार की बातें करें।

बातें तब की भी करें जब तुम हमारे साथ थे,
डूबती थी नाव फिर भी हाथ में ये हाथ थे,
आँसुओं की धार ले, मँझधार की बातें करें।

देख नंगे पाँव काँटें खुद महावर रच गए,
हाथों के छाले गए और मेंहदी से सज गए,
चल फसल की कब्र पर शृंगार की बातें करें,

इन दरख्तों से उतरकर चाँदनी आती नहीं,
लालटेनों से लिपटती धूप की बाती नहीं,
घुप अँधेरा छा रहा अंगार की बातें करें।

हाथों में थामे मशालें और अँधेरा है घना,
लुट रहीं हैं डोलियाँ औ’ लुट रहा है बचपना,
दोष किस्मत का नहीं, कहार की बातें करें।

मेघ चलकर आए अबतक मेरे खेतों में कई,
प्यासी मिट्टी में है जलते पाँव उनके सुरमई,
शामियाने में खड़ी सरकार की बातें करें।

दोनों आँखों बीच दूरी तो सदा कायम रही,
ढलते आँसू में मिलन की आरजू हरदम रही,
दर्द के रिश्तों से हट अभिसार की बातें करें।

साहिलों पे आग थी, धारा नदी की बँट गई,
जो दिलों में बह रही थी वो नदी ही फट गई,
चुस्कियाँ ले चाय की, बेकार की बातें करें।

~ अमित कुलश्रेष्ठ


  Jan 10, 2013| e-kavya.blogspot.com
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कभी हम खूबसूरत थे



कभी हम खूबसूरत थे
किताबों में बसी खुशबू की तरह सांस साकिन थी
बहुत से अन-कहे लफ्जों से तस्वीरें बनाते थे
परिंदों के परों पर नज़्म लिखकर
दूर की झीलों में बसने वाले लोगों को
सुनाते थे
जो हम से दूर थे लेकिन हमारे पास रहते थे..
कभी हम खूबसूरत थे........!!!
*साकिन=चुप, खामोश

नए दिन की मुसाफ़त जब किरण के साथ आँगन में उतरती थी
तो हम कहते थे
"अम्मी तितलियों के पर बहुत ही खूबसूरत हैं"
हमें माथे पे बोसा दो कि हमें तो तितलियों के, जुगनुओं के
देश जाना है
हमें रंगों के जुगनू, रोशनी की तितलियाँ, आवाज़ देती हैं
नए दिन की मुसाफ़त, रंग में
डूबी हवा के साथ खिड़की से बुलाती है
हमें माथे पे बोसा दो ...

*मुसाफ़त=हाथ जोड़ना, हाथ मिलाना
*बोसा=चुंबन


~ अहमद शमीम

kabhi ham khoobsoorat the
kitaabon main basi khushbu ki maanind saans saakin thi
bohat se an-kahe lafzon se tasveerein banaate the
parindon ke paron par nazm likh kar
door ki jheelon main basne waale logon ko sunaate the
jo hamse door the lekin hamare paas rehte the

naye din ki musaafat jab kiran ke saath aangan main utartii thi
to ham kehte the
“ammi tittlion ke par bahut hi khoobsoorat hain”
hamein maathe pe bosaa do ke ham ko tittlion ke, jugnuon ke, des jaana hai
hamain rangon ke jugnoo, roshni ki tittlian, aawaz deti hain
naye din ki musaafat rang main
doobi hawa ke saath khidki se bulaati hai
hamein maathe pe bosaa do…

~ Ahmed Shamim


  Jan 11, 2013| e-kavya.blogspot.com
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http://www.youtube.com/watch?v=5HtDfsqsXRo

मैं ही बौरी विरह बस

मैं ही बौरी विरह बस, कै बौरो सब गाँव।
कहा जानि ये कहत हैं, ससिहिं सीतकर नाँव।।

मैं ही पागल हूँ या सारा गाँव पागल है। ये कैसे कहते हैं कि चन्द्रमा का नाम
शीतकर यानी कि शीतल करने वाला है?

~ बिहारी (बिहारी सतसई)


  Jan 12, 2013| e-kavya.blogspot.com
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सी लिए थे लब तो उनके रूबरू

सी लिए थे लब तो उनके रूबरू हमने मगर
खामोशी ने बढ़ के इज़हारे-तमन्ना कर दिया

लब=होंठ, इज़हारे-तमन्ना=इच्छा ज़ाहिर करना

see liye the la'b toh unke rubaru hamne magar
khamoshi ne badh ke izhaare-tamanna kar diya

la'b=honth, izhaare-tamanna=ichchha zahir karna

~ मुईन 'कौसर' (Mueen 'kausar')



  Jan 12, 2013| e-kavya.blogspot.com
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यूँ चुप रहना ठीक नहीं



यूँ चुप रहना ठीक नहीं कोई मीठी बात करो
मोर चकोर पपीहा कोयल सब को मात करो

सावन तो मन बगिया से बिन बरसे बीत गया
रस में डूबे नग़्मे की अब तुम बरसात करो

हिज्र की इक लम्बी मंज़िल को जानेवाला हूँ
अपनी यादों के कुछ साये मेरे साथ करो
*हिज्र=विदाई, जुदाई

मैं किरनों की कलियाँ चुनकर सेज बना लूँगा
तुम मुखड़े का चाँद जलाओ रौशन रात करो

प्यार बुरी शय नहीं है लेकिन फिर भी यार "क़तील"
गली-गली तक़सीम न तुम अपने जज़बात करो
*तक़सीम=बाँटने की क्रिया या भाव

~ क़तील शिफ़ाई


  Jan 13, 2013| e-kavya.blogspot.com
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नज़म उलझी हुई है सीने में



नज़म उलझी हुई है सीने में
मिस्रें अटके हुए हैं होंठों पर
उड़ते फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ्ज़ कागज़ पे बैठे ही नहीं

कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे कागज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़म क्या होगी

~ गुलज़ार


  Jan 14, 2013| e-kavya.blogspot.com
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ऐसी अपनी ई-कविता


भैया लाये ई कविता 
जिसमे होगी ही कविता 
पूरी दुनिया लाइक करे 
ऐसी अपनी ई कविता 

अमरीका में हिंदी का

भाषाओँ की बिंदी का 
परचम लाइ ई कविता
ऐसी अपनी ई कविता

नहीं कही भी जाना है 

बस एक बटन दबाना है 
सम्मुख होगी ई कविता
ऐसी अपनी ई कविता

~ सर्वेश अस्थाना


  Jan 15, 2013| e-kavya.blogspot.com
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बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी



बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशां क्यूं हो

उगलियां उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ
चूड़ियों पर भी कई तन्ज़ किये जायेंगे
कांपते हाथों पे भी फि’करे कसे जायेंगे ,

लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ताना देंगे
बातों बातों मे मेरा ज़िक्र भी ले आयेंगे
उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
वर्ना चेहरे के तासुर से समझ जायेंगे

चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी

~ कफ़ील आज़र अमरोहवी


  Jan 17, 2013| e-kavya.blogspot.com
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दिल में गुलशन आंख में सपना



दिल में गुलशन आंख में सपना सुहाना रख।
आस्मां की डालियों पर आशियाना रख।।

हर कदम पर एक मुश्किल ज़िंदगी का नाम।
फिर से मिलने का मगर कोई बहाना रख।।

अर्थ में भर अर्थ की अभिव्यंजना का अर्थ।
शक की सीमा के आगे भी निशाना रख।।

कफ़स का ये द्वार टूटेगा नहीं सच है, मगर।
हौसला रख अपना ये पर फड़फ़ड़ाना रख।।

तेरे जाने के पर जिसे दुहराएगी महफ़िल।
वक्त की आंखों में एक ऐसा फसाना रख।।

दर्द की दौलत से यायावर हुआ है तू।
पांव की ठोकर के आगे ये ज़माना रख।।

~ राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'


  Jan 17, 2013| e-kavya.blogspot.com
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सब हँसी हैं ज़ाहिदों को


सब हँसी हैं ज़ाहिदों को नापसन्द
अब कोई हूर आएगी इनके लिए।

~ अमीर मीनाई

   Jan 17, 2013| e-kavya.blogspot.com
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हर आन सितम ढाये हैं क्या



हर आन सितम ढाये हैं क्या जानिये क्या हो
दिल ग़म से भी घबराए हैं क्या जानिये क्या हो
*आन=क्षण

क्या गैर को ढूँढे के तेरे कूचे में हर एक
अपना सा नज़र आए है क्या जानिये क्या हो
*कूचा=गली

आँखों को नहीं रास किसी याद का आँसू
थम थम के ढलक जाये है क्या जानिये क्या हो

दुनिया से निराले हैं तेरी बज़्म के दस्तूर
जो आए सो पछताए है क्या जानिये क्या हो
*बज़्म=महफिल, दस्तूर=रीति-रिवाज

~ ' नामालूम'


   Jan 18, 2013| e-kavya.blogspot.com
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ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा



ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा
वहाँ भी रेत का अंबार होगा

ये सारे शहर में दहशत-सी क्यों हैं
यक़ीनन कल कोई त्योहार होगा

बदल जाएगी इस बच्चे की दुनिया
जब इसके सामने अख़बार होगा

उसे नाकामियाँ ख़ुद ढूँढ लेंगी
यहाँ जो साहिबे-किरदार होगा

समझ जाते हैं दरिया के मुसाफ़िर
जहाँ में हूँ वहाँ मँझधार होगा

वो निकला है फिर इक उम्मीद लेकर
वो फिर इक दर्द से दो-चार होगा

ज़माने को बदलने का इरादा
तू अब भी मान ले बेकार होगा

~ राजेश रेड्डी


   Jan 19, 2013| e-kavya.blogspot.com
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चाँदी की उर्वशी न कर दे



चाँदी की उर्वशी न कर दे युग के तप संयम को खंडित
भर कर आग अंक में मुझको सारी रात जागना होगा ।

मैं मर जाता अगर रात भी मिलती नहीं सुबह को खोकर
जीवन का जीना भी क्या है गीतों का शरणागत होकर
मन है राजरोग का रोगी आशा है शव की परिणीता
डूब न जाये वंश प्यास का पनघट मुझे त्यागना होगा ॥

सपनों का अपराध नहीं है मन को ही भा गयी उदासी
ज्यादा देर किसी नगरी में रुकते नहीं संत सन्यासी
जो कुछ भी माँगोगे दूँगा ये सपने तो परमहंस हैं
मुझको नंगे पाँव धार पर आँखें मूँद भागना होगा ॥

गागर क्या है - कंठ लगाकर जल को रोक लिया माटी ने
जीवन क्या है - जैसे स्वर को वापिस भेज दिया घाटी ने
गीतों का दर्पण छोटा है जीवन का आकार बड़ा है
जीवन की खातिर गीतों को अब विस्तार माँगना होगा ॥

चुनना है बस दर्द सुदामा लड़ना है अन्याय कंस से
जीवन मरणासन्न पड़ा है लालच के विष भरे दंश से
गीता में जो सत्य लिखा है वह भी पूरा सत्य नहीं है
चिन्तन की लछ्मन रेखा को थोड़ा आज लाँघना होगा ॥

~ रामावतार त्यागी


   Jan 20, 2013| e-kavya.blogspot.com
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अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिए हैं



अश'आर मेरे यूं तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेअर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

आंखों में जो भर लोगे तो कांटो से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं

देखूं तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ
मंदिर में फ़़क्त दीप जलाने के लिए हैं

सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वरना तो बदन आग बुझाने के लिए हैं

ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें
इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं

~ जाँ निसार अख़्तर


   Jan 21, 2013| e-kavya.blogspot.com
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http://www.youtube.com/watch?v=d-Jx8PXxXH0

हमसफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ



हमसफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ
राह चलते लोग क्या समझें मेरी मजबूरियाँ

मुस्कुराते ख़्वाब चुनती गुनगुनाती ये नज़र
किस तरह समझे मेरी क़िस्मत की नामंज़ूरियाँ

हादसों की भीड़ है चलता हुआ ये कारवाँ
ज़िन्दगी का नाम है लाचारियाँ मजबूरियाँ

फिर किसी ने आज छेड़ा ज़िक्र-ए-मंजिल इस तरह
दिल के दामन से लिपटने आ गई हैं दूरियाँ

~ सरदार अंजुम


   Jan 22, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

चाँद अपना सफर खत्म करता रहा



चाँद अपना सफर खत्म करता रहा
शमा जलती रही रात ढलती रही
दिल में यादों के नश्तर से टूटा किये
एक तमन्ना कलेजा मसलती रही

ख्वाब पलकों से गिर कर फना हो गए
दो कदम चल के तुम भी जुदा हो गए
मेरी हारी थकी आँख से रात दिन
एक नदी आँसुओं की उबलती रही

सुबह मांगी तो गम का अँधेरा मिला
मुझ को रोता सिसकता सवेरा मिला
मैं उजालों की नाकाम हसरत लिए
उम्र भर मोम बन कर पिघलती रही

~ ज़फ़र गोरखपुरी


   Jan 23, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

Monday, March 30, 2015

रूप की गुण की रसीली



जय तुम्हारी देख भी ली
रूप की गुण की रसीली ।

वृद्ध हूँ मैं वृद्ध की क्या
साधना की सिद्धी की क्या
खिल चुका है फूल मेरा
पंखड़ियाँ हो चलीं ढीली ।

चढ़ी थी जो आँख मेरी
बज रही थी जहाँ भेरी

वहाँ सिकुड़न पड़ चुकी है ।
जीर्ण है वह आज तीली ।

आग सारी फुक चुकी है
रागिनी वह रुक चुकी है
स्मरण में आज जीवन
मृत्यु की है रेख नीली ।

~ सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"


   Jan 24, 2013| e-kavya.blogspot.com
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हम कब शिकवा-ए-बेदाद करते है



सितमगर तुझसे हम कब शिकवा-ए-बेदाद करते है
हमें फरियाद की आदत है, हम फरियाद करते है
*सितमगर=जुल्म करने वाला, शिकवा-ए-बेदाद=जुल्म की शिकायत

हवाओ ! एक पल के वास्ते लिल्लाह रुक जाओ
वो मेरी अर्ज़ पर धीमे से कुछ इरशाद करते है
*अर्ज़=विनती, इरशाद=फरमाना

किया होगा कभी आदम को सिजदा कहने-सुनने से
फ़रिश्ते अब कहा परवा-ए-आदमजाद करते है
*आदम=पैगम्बर हजरत आदम, आदमजाद=इंसान

हमें ए दोस्तों ! चुपचाप मर जाना भी आता है
तड़प कर एक ज़रा दिलजोई-ए-सैयाद करते है
*दिलजोई=दिल बहलाना, सैयाद=शिकारी

बहुत सादा-सा है कैफ अपने ग़म का अफसाना
वो हमको भूल बैठे है, जिन्हें हम याद करते है

~ सरस्वती सरन 'कैफ़'


   Jan 25, 2013| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh