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Wednesday, October 14, 2020

हर क़दम पर हम समझते थे

हर क़दम पर हम समझते थे कि मंज़िल आ गई
हर क़दम पर इक नई दरपेश मुश्किल आ गई
*दरपेश=उपस्थिति

या ख़ला पर हुक्मराँ या ख़ाक के अंदर निहाँ
ज़िंदगी डट कर अनासिर के मुक़ाबिल आ गई
*ख़ला=शून्य; हुक्मराँ=शाशक; निहाँ=छुपा; अनासिर=(पंच) तत्व

बढ़ रहा है दम-ब-दम सुब्ह-ए-हक़ीक़त का यक़ीं
हर नफ़स पर ये गुमाँ होता है मंज़िल आ गई

टूटते जाते हैं रिश्ते जोड़ता जाता हूँ मैं
एक मुश्किल कम हुई और एक मुश्किल आ गई

हाल-ए-दिल है कोई ख़्वाब-आवर फ़साना तो नहीं
नींद अभी से तुम को ऐ यारान-ए-महफ़िल आ गई
*ख़्वाब-आवर=सपनों वाली नींद

‍~ हफ़ीज़ होशियारपुरी 

Oct 14, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh


Sunday, October 11, 2020

रात के सुरमई अँधेरों में - तुम्हारी याद

 

रात के सुरमई अँधेरों में
साँस लेते हुए सवेरों में
आबजू के हसीं किनारों पर
ख़्वाब-आलूद रहगुज़ारों पर
*आबज़ू=नदी; ख़्वाब-आलूद=सपनों से मिश्रित

गुल्सितानों की सैर गाहों में
ज़िंदगी की हसीन राहों में
मय-ए-रंगीं का जाम उठाते वक़्त
रंज-ओ-ग़म की हँसी उड़ाते वक़्त

शादमानी में ग़म के तूफ़ाँ में
रौनक़-ए-शहर में बयाबाँ में
रक़्स करती हुई बहारों में
ख़ून-आशाम ख़ार-ज़ारों में
*शादमानी=ख़ुशी; रक़्स=नृत्य; ख़ून-आशाम=ख़ून से प्यासे; ख़ार-ज़ारों=कंटकी जगह

दोपहर हो कि नूर का तड़का
फ़स्ल-ए-गुल हो कि दौर पतझड़ का
सुब्ह के वक़्त शाम के हंगाम
बे-क़ुयूद-ए-मक़ाम बे-हंगाम
*हंगाम=जगहें; क़यूद=क़ैद (बहु-वचन)

दामन-ए-दिल को थाम लेती है
कितनी गुस्ताख़ है तुम्हारी याद

~ राजेन्द्र नाथ रहबर

Oct 11, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Friday, October 9, 2020

सलामत रहें दिल में घर करने वाले

 

सलामत रहें दिल में घर करने वाले
इस उजड़े मकाँ में बसर करने वाले

गले पर छुरी क्यूँ नहीं फेर देते
असीरों को बे-बाल-ओ-पर करने वाले
*असीरों=क़ैदियों

अंधेरे उजाले कहीं तो मिलेंगे
वतन से हमें दर-ब-दर करने वाले

गरेबाँ में मुँह डाल कर ख़ुद तो देखें
बुराई पे मेरी नज़र करने वाले

इस आईना-ख़ाने में क्या सर उठाते
हक़ीक़त पर अपनी नज़र करने वाले
*आईना-ख़ाने=शीशे की घर

बहार-ए-दो-रोज़ा से दिल क्या बहलता
ख़बर कर चुके थे ख़बर करने वाले
*बहार-ए-दो-रोज़ा=दो दिनों की बहार

खड़े हैं दो-राहे पे दैर ओ हरम के
तिरी जुस्तुजू में सफ़र करने वाले
*दैर ओ हरम= मंदिर मस्जिद

सर-ए-शाम गुल हो गई शम-ए-बालीं
सलामत हैं अब तक सहर करने वाले
*शम-ए-बालीं=ऊँचाई पर जल रहा लैम्प

कुजा सेहन-ए-आलम कुजा कुंज-ए-मरक़द
बसर कर रहे हैं बसर करने वाले
*कुजा=झुकने वाले; सेहन-ए-आलम=दुनिया का आँगन; मरक़द=क़ब्र

'यगाना' वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं
दिल-ए-संग-ओ-आहन में घर करने वाले
*फ़ातेह=जीतने वाला; दिल-ए-संग-ओ-आहन=पत्थर और लोहे के दिलों में

~ यगाना चंगेज़ी  

Oct 09, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh


Wednesday, October 7, 2020

अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे


अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे
सुकूत ऐसा नहीं है जो कुछ सुनाई न दे
*सुकूत=सन्नाटा, खामोशी

जो सुनना चाहो तो बोल उट्ठेंगे अँधेरे भी
न सुनना चाहो तो दिल की सदा सुनाई न दे

जो देखना हो तो आईना-ख़ाना है ये सुकूत
हो आँख बंद तो इक नक़्श भी दिखाई न दे
*आईना-ख़ाना=शीशों से सुसज्जित घर की दीवारें

ये रूहें इस लिए चेहरों से ख़ुद को ढाँपे हैं
मिले ज़मीर तो इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई न दे
*ज़मीर=अंत:करण

कुछ ऐसे लोग भी तन्हा हुजूम में हैं छुपे
कि ज़िंदगी उन्हें पहचान कर दुहाई न दे

हूँ अपने-आप से भी अजनबी ज़माने के साथ
अब इतनी सख़्त सज़ा दिल की आश्नाई न दे

सभी के ज़ेहन हैं मक़रूज़ क्या क़दीम ओ जदीद
ख़ुद अपना नक़्द-ए-दिल-ओ-जां कहीं दिखाई न दे
*मक़रूज़=ऋणी; क़दीम=पुरातन; जदीद=नूतन; नक़्द-ए-दिल-ओ-जां

बहुत है फ़ुर्सत-ए-दीवानगी की हसरत भी
'वहीद' वक़्त गर इज़्न-ए-ग़ज़ल-सराई न दे
*इज़्न-ए-ग़ज़ल-सराई=ग़ज़ल पढ़ने का न्योता

~ वहीद अख़्तर

Oct 07, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, October 6, 2020

कल चमन था आज इक सहरा हुआ


कल चमन था आज इक सहरा हुआ
देखते ही देखते ये क्या हुआ

मुझ को बर्बादी का कोई ग़म नहीं
ग़म है बर्बादी का क्यूँ चर्चा हुआ

इक छोटा सा था मेरा आशियाँ
आज तिनके से अलग तिनका हुआ

सोचता हूँ अपने घर को देख कर
हो न हो ये है मेरा देखा हुआ

देखने वालों ने देखा है धुआँ
किस ने देखा दिल मिरा जलता हुआ

~ राजिंदर कृष्ण

 Oct 06, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Sunday, October 4, 2020

कुंज-ए-इज़्ज़त से उठो

 


कुंज-ए-इज़्ज़त से उठो सुब्ह-ए-बहाराँ देखो
दोस्तो नग़्मागरो रक़्स-ए-ग़ज़ालाँ देखो
*कुंज-ए-इज़्ज़त=अपने आप से बाहर; नग़्मागरो=गाने वाला; रक़्स-ए-ग़ज़ालाँ=हिरनों का नृत्य

मिट गया राह-गुज़ारों से हर इक नक़्श-ए-ख़िज़ाँ
वरक़-ए-गुल पे लिखे अब नए उनवाँ देखो
*राह-गुज़ारों=पथिक; नक़्श-ए-ख़िज़ाँ=पतझड़ के निशान

मुतरिबाँ बहर-ए-क़दम-बोसी-ए-शीरीं-सुख़नाँ
महफ़िल-ए-गुल में चलो जश्न-ए-बहाराँ देखो
*मुतरिबाँ=गाने, नाचने वाले; बहर-ए-क़दम-बोसी-ए-शीरीं-सुख़नाँ=मीठी ज़ुबान वाले के पैर चूमना


मुज़्दा फिर ख़ाक-ए-ख़िज़ाँ-रंग की क़िस्मत जागी
आ गया झूम के अब्र-ए-गुहर-अफ़्शाँ देखो
*मुज़्दा=ख़ुश ख़बर; ख़ाक-ए-ख़िज़ाँ-रंग=पतझड़ के रंग की धूल; अब्र-ए-गुहर-अफ़्शाँ=मोतियों की तरह चमकता बादल

हम-नवा हो के मिरे तुम भी ग़ज़ल-ख़्वाँ हो जाओ
जो लब-ए-जू-ए-रवाँ सर्व-ख़िरामाँ देखो
*हम-नवा=समर्थक; ग़ज़ल-ख़्वाँ=ग़ज़ल कहने वाला; लब-ए-जू-ए-रवाँ=बहती धारा का श्रोत; सर्व-ख़िरामाँ=वृक्ष के आकार का काँच का झाड़ जिसमें मोमबत्तियाँ जलती हैं

ये जुलूस-ए-गुल-ओ-रैहाँ है कहाँ नारा-ज़नाँ
उठ के दरवाज़े से बाहर तो मिरी जाँ देखो
*जुलूस-ए-गुल-ओ-रैहाँ=मीठी सुगंध वाले पौधे; नारा-ज़नाँ=नारेबाज़ी

~ रज़ी तिर्मिज़ी 

Oct 05, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh