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Tuesday, July 12, 2016

इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है



जिन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है,
इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है,
क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ,
बड़े सुख आ जाएं घर में
तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूं।

यहां एक बात
इससॆ भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि,
बड़े सुखों को देखकर
मेरे बच्चे सहम जाते हैं,
मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें
सिखा दूं कि सुख कोई डरने की चीज नहीं है।

मगर नहीं
मैंने देखा है कि जब कभी
कोई बड़ा सुख उन्हें मिल गया है रास्ते में
बाजार में या किसी के घर,
तो उनकी आँखों में खुशी की झलक तो आई है,
किंतु साथ साथ डर भी आ गया है।

बल्कि कहना चाहिये
खुशी झलकी है, डर छा गया है,
उनका उठना उनका बैठना
कुछ भी स्वाभाविक नहीं रह पाता,
और मुझे इतना दु:ख होता है देख कर
कि मैं उनसे कुछ कह नहीं पाता।

मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि बेटा यह सुख है,
इससे डरो मत बल्कि बेफिक्री से बढ़ कर इसे छू लो।
इस झूले के पेंग निराले हैं
बेशक इस पर झूलो,
मगर मेरे बच्चे आगे नहीं बढ़ते
खड़े खड़े ताकते हैं,
अगर कुछ सोचकर मैं उनको उसकी तरफ ढकेलता हूँ।

तो चीख मार कर भागते हैं,
बड़े बड़े सुखों की इच्छा
इसीलिये मैंने जाने कब से छोड़ दी है,
कभी एक गगरी उन्हें जमा करने के लिये लाया था
अब मैंने उन्हें फोड़ दी है।

~ भवानीप्रसाद मिश्र


Jul 12, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

वादे पे तुम न आए तो

वादे पे तुम न आए तो कुछ हम न मर गए
कहने को बात रह गई और दिन गुज़र गए

~ जलील मानिकपूरी

Jul 09, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Saturday, July 9, 2016

अचानक दिल-रुबा मौसम का



अचानक दिल-रुबा मौसम का दिल-आज़ार हो जाना
दुआ आसाँ नहीं रहना सुख़न दुश्वार हो जाना
*दिल-आज़ार=कठोर; सुख़न==बात करना

तुम्हें देखें निगाहें और तुम को ही नहीं देखें
मोहब्बत के सभी रिश्तों का यूँ नादार हो जाना
*नादार=मुहताज, गरीब

अभी तो बे-नियाज़ी में तख़ातुब की सी ख़ुश-बू थी
हमें अच्छा लगा था दर्द का दिल-दार हो जाना
*बे-नियाज़ी=बेपरवाही; तख़ातुब--संबोधन

अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूठ ही बोलो
हमें आता है पत-झड़ के दिनों गुल-बार हो जाना
*गुल-बार=फूलों से भरा हुआ

अभी कुछ अन-कहे अल्फ़ाज़ भी हैं कुँज-ए-मिज़्गाँ में
अगर तुम इस तरफ़ आओ सबा रफ़्तार हो जाना
*कुँज-ए-मिज़्गाँ=कनखियां

हवा तो हम-सफ़र ठहरी समझ में किस तरह आए
हवाओं का हमारी राह में दीवार हो जाना

अभी तो सिलसिला अपना ज़मीं से आसमाँ तक था
अभी देखा था रातों का सहर आसार हो जाना
*आसार=इशारा

हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना.
*अहवाल=हालात, अवस्था

~ अदा ज़ाफ़री


Jul 09, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

तेरे वादे की, तेरे प्यार की मोहताज नहीं

तेरे वादे की, तेरे प्यार की मोहताज नहीं
ये कहानी किसी किरदार की मोहताज नहीं
आसमाँ ओढ़ के सोये हैं खुले मैदाँ में
अपनी ये छत किसी दीवार की मोहताज नहीं

~ राहत इंदौरी

Jul 08, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

माथे में सेंदूर पर छोटी दो बिंदी



माथे में सेंदूर पर छोटी दो बिंदी चमचम-सी,
पपनी पर आँसू की बूँदें मोती-सी, शबनम-सी।
लदी हुई कलियों में मादक टहनी एक नरम-सी,
यौवन की विनती-सी भोली, गुमसुम खड़ी शरम-सी।

पीला चीर, कोर में जिसकी चकमक गोटा-जाली,
चली पिया के गांव उमर के सोलह फूलोंवाली।
पी चुपके आनंद, उदासी भरे सजल चितवन में,
आँसू में भींगी माया चुपचाप खड़ी आंगन में।

आँखों में दे आँख हेरती हैं उसको जब सखियाँ,
मुस्की आ जाती मुख पर, हँस देती रोती अँखियाँ।
पर, समेट लेती शरमाकर बिखरी-सी मुस्कान,
मिट्टी उकसाने लगती है अपराधिनी-समान।

भींग रहा मीठी उमंग से दिल का कोना-कोना,
भीतर-भीतर हँसी देख लो, बाहर-बाहर रोना।
तू वह, जो झुरमुट पर आयी हँसती कनक-कली-सी,
तू वह, जो फूटी शराब की निर्झरिणी पतली-सी।

तू वह, रचकर जिसे प्रकृति ने अपना किया सिंगार,
तू वह जो धूसर में आयी सुबज रंग की धार।
मां की ढीठ दुलार! पिता की ओ लजवंती भोली,
ले जायेगी हिय की मणि को अभी पिया की डोली।

कहो, कौन होगी इस घर तब शीतल उजियारी?
किसे देख हँस-हँस कर फूलेगी सरसों की क्यारी?
वृक्ष रीझ कर किसे करेंगे पहला फल अर्पण-सा?
झुकते किसको देख पोखरा चमकेगा दर्पण-सा?

किसके बाल ओज भर देंगे खुलकर मंद पवन में?
पड़ जायेगी जान देखकर किसको चंद्र-किरन में?
महँ-महँ कर मंजरी गले से मिल किसको चूमेगी?
कौन खेत में खड़ी फ़सल की देवी-सी झूमेगी?

बनी फिरेगी कौन बोलती प्रतिमा हरियाली की?
कौन रूह होगी इस धरती फल-फूलों वाली की?
हँसकर हृदय पहन लेता जब कठिन प्रेम-ज़ंजीर,
खुलकर तब बजते न सुहागिन, पाँवों के मंजीर।

घड़ी गिनी जाती तब निशिदिन उँगली की पोरों पर,
प्रिय की याद झूलती है साँसों के हिंडोरों पर।
पलती है दिल का रस पीकर सबसे प्यारी पीर,
बनती है बिगड़ती रहती पुतली में तस्वीर।

पड़ जाता चस्का जब मोहक प्रेम-सुधा पीने का,
सारा स्वाद बदल जाता है दुनिया में जीने का।
मंगलमय हो पंथ सुहागिन, यह मेरा वरदान;
हरसिंगार की टहनी-से फूलें तेरे अरमान।

जगे हृदय को शीतल करनेवाली मीठी पीर,
निज को डुबो सके निज में, मन हो इतना गंभीर।
छाया करती रहे सदा तुझको सुहाग की छाँह,
सुख-दुख में ग्रीवा के नीचे हो प्रियतम की बाँह।

पल-पल मंगल-लग्न, ज़िंदगी के दिन-दिन त्यौहार,
उर का प्रेम फूटकर हो आँचल में उजली धार।

~ रामधारी सिंह दिनकर


Jul 08, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

मेरे ख़ुदा मुझे इतना तो मोअतबर

मेरे ख़ुदा मुझे इतना तो मोअतबर कर दे
मैं जिस मकान में रहता हूं उस्को घर कर दे

*मोअतबर= विश्वसनीय, भरोसेमंद

~ इफ़्तेख़ार आरिफ़

Jul 07, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

मैं उनका ही होता जिनसे



मैं उनका ही होता जिनसे
मैंने रूप भाव पाए हैं।
वे मेरे ही हिये बंधे हैं
जो मर्यादाएँ लाए हैं।

मेरे शब्द, भाव उनके हैं
मेरे पैर और पथ मेरा,
मेरा अंत और अथ मेरा,
ऐसे किंतु चाव उनके हैं।

मैं ऊँचा होता चलता हूँ
उनके ओछेपन से गिर-गिर,
उनके छिछलेपन से खुद-खुद,
मैं गहरा होता चलता हूँ।

~ गजानन माधव मुक्तिबोध


Jul 06, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

ख़ुदा के वास्ते गुल को

ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो
मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी

~ नज़ीर अकबराबादी

Jun 30, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

काँटों से दिल लगाओ

काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें
फूलों का क्या जो साँस की गर्मी न सह सकें

~ अख़्तर शीरानी

Jun 29, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

भव में नव वैभव व्याप्त कराने

भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया,
नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया.
सन्देश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,
इस भूतल ही को स्वर्ग बनाने आया

~ मैथिलिशरण गुप्त

Jun 28, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

बाँट दो सारा समंदर तृप्ति के





बाँट दो सारा समंदर तृप्ति के अभिलाषकों में,
मैं अंगारे से दहकते प्यास के क्षण माँगता हूँ,

दूर तक फैली हुई अम्लान कमलों की कतारें,
किन्तु छोटा है बहुत मधुपात्र रस लोभी भ्रमर का,
रिक्त हो पाते भला कब कामनाओं की सुराही,
टूट जाता है चिटख कर किन्तु हर प्याला उमर का,

बाँट दो मधुपर्क सारा इन सफल आराधकों में,
देवता मैं तो कठिन उपवास के क्षण माँगता हूँ,

वह नहीं धनवान जिसके पास भारी संपदा है,
वह धनी है, जो कि धन के सामने झुकता नहीं है,
प्यास चाहे ओंठ पर सारे मरुस्थल ला बिछाये,
देखकर गागर पराई, किन्तु जो रुकता नहीं है,

बाँट दो सम्पूर्ण वैभव तुम कला के साधकों में,
किन्तु मैं अपने लिये सन्यास के क्षण माँगता हूँ,

जिस तरफ भी देखिये, सहमा हुआ वातावरण है,
आदमी के वास्ते दुष्प्राप्य छाया की शरण है,
दफ़्तरों में मेज पर माथा झुकाये बीतता दिन,
शाम को ढाँके हुए लाचारगी का आवरण है,

व्यस्तता सारी लुटा दो इन सुयश के ग्राहकों में,
मैं सृजन के वास्ते अवकाश के क्षण माँगता हूँ,

जिन्दगी में कुछ अधूरा ही रहे, यह भी उचित है,
मैं दुखों की बाँह में यों ही तड़पना चाहता हूँ,
रात भर कौंधे नयन में, जो मुझे सोने नहीं दे,
सत्य सारे बेच कर वह एक सपना चाहता हूँ,

बाँट दो उपलब्धियाँ तुम सृष्टि के अभिभावकों में,
मैं पसीने से धुले अभ्यास के क्षण माँगता हूँ ।

~ बालस्वरूप राही


Jun 28, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

क़ौल, वादा, वफ़ा, इक़रार




क़ौल, वादा, वफ़ा, इक़रार की ऐसी-तैसी
ज़िंदगी छीन ले उस प्यार की ऐसी-तैसी
*क़ौल=वचन का पक्का

जेठ की धूप में छत पर जो सुखाये हमको
ऐसे हालातों में दीदार की ऐसी-तैसी

रोज़ दरबार में पढ़ता है क़सीदे जा कर
भूख के सामने फ़नकार की ऐसी-तैसी
*क़सीदा=शायरी का वह रूप है जिसमें किसी की प्रशंसा की जाए

सामने मौत का सामान खड़ा हो तन कर
झूठ के मुख़्तलिफ इन्कार की ऐसी-तैसी
*मुख़्तलिफ=कई तरह का

देश को लूट कर कानून सिखाती हमको
दोगली-कलमुहीँ सरकार की ऐसी-तैसी

आपका काम किया है तो निकालो रिश्वत
आपके शुक्रिया - आभार की ऐसी-तैसी।

~ महेश कटारे सुगम


Jun 26, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

हमन है इश्क़ मस्ताना



ग़ज़ल : 'कबीर जयंती' पर विशेष

हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या,*
गुज़ारी होशियारी से, जवानी फिर गुज़ारी क्या.

धुएँ की उम्र कितनी है, घुमड़ना और खो जाना,
यही सच्चाई है प्यारे, हमारी क्या, तुम्हारी क्या.

उतर जाए है छाती में, जिगरवा काट डाले है,
मुई तनहाई ऐसी है, छुरी, बरछी, कटारी क्या.

तुम्हारे अज़्म की ख़ुशबू, लहू के साथ बहती है,
अना ये ख़ानदानी है, उतर जाए ख़ुमारी क्या.

हमन कबिरा की जूती हैं, उन्हीं के क़र्ज़दारी है,
चुकाए से जो चुक जाए, वो क़र्ज़ा क्या, उधारी क्या.

*कबीर को श्रद्धा सहित समर्पित, जिनकी पंक्ति पर यह ग़ज़ल हुई.



~ आलोक श्रीवास्तव


Jun 25, 2015|e-kavya.blogspot.com
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वक्त से पहले सूरज भी कब

वक्त से पहले सूरज भी कब निकला है
खुद को सारी रात जला कर क्या होगा

तब तक तो ये बस्ती ही जल जाएगी
अपने घर की आग बुझा कर क्या होगा

इन कपड़ों में यादों जैसी सीलन है
इन कपड़ों को धूप दिखा कर क्या होगा

यूँ तो कभी ये ज़ख्म नहीं भर पाएंगे
दीवारों से सर टकरा कर क्या होगा

~ भारत भूषण पंत


Jun 24, 2015|e-kavya.blogspot.com
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तुम सुधि बन-बन कर बार-बार



तुम सुधि बन-बन कर बार-बार
क्यों कर जाती हो प्यार मुझे?
फिर विस्मृति बन तन्मयता का
दे जाती हो उपहार मुझे ।

मैं करके पीड़ा को विलीन
पीड़ा में स्वयं विलीन हुआ
अब असह्य बन गया देवि,
तुम्हारी अनुकम्पा का भार मुझे ।

माना वह केवल सपना था,
पर कितना सुन्दर सपना था
जब मैं अपना था, और सुमुखि
तुम अपनी थीं, जग अपना था ।

जिसको समझा था प्यार, वही
अधिकार बना पागलपन का
अब मिटा रहा प्रतिपल, तिल-तिल
मेरा निर्मित संसार मुझे ।

~ भगवतीचरण वर्मा


Jun 23, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

इस राज़ को क्या जाने साहिल के



इस राज़ को क्या जाने साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई

जाग ऐ मेरे हमसाया ख़्वाबों के तसलसुल से
दीवारों से आँगन में अब धूप उतर आई
*तसलसुल=लगातार, निरंतर

चलते हुए बादल के साये के त-अक्कुब में
ये तशना-लबी मुझको सहराओं में ले आई
*त-अक्कुब=पीछा करना; तशना-लबी=प्यास

ये जब्र भी देखे हैं तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पायी
*जब्र=ज़ुल्म

जिस वक़्त छेड़ा किस्सा 'रज्मी' की तबाही का
क्यूँ आपकी नाज़ुक सी आँखों में नमी आई

~ मुज़फ्फर रज्मी


Jun 19, 2015|e-kavya.blogspot.com
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कुछ चीखती उदास सी शामों को



कुछ चीखती उदास सी शामों को छोड़ कर
वो चल दिया कहीं सभी रिश्तों को तोड़ कर

सब कुछ बिखर गया मेरा उसके फ़िराक में
वो जो चला गया मुझे रखता था जोड़ कर

मिल भी गया तो देखिये चेहरा घुमा लिया
इक वक़्त था कि वो मुझे मिलता था दौड़ कर

आँखों में कोई अश्क न मुझमें लहू बचा
रक्खा है तेरे दर्द ने ऐसा निचोड़ कर

ले दे के उसका ख़्वाब ही मेरा था पर 'सहाब'
दुनिया ने क्यूँ जगा दिया मुझको झिंझोड़ कर

~ अजय पाण्डेय 'सहाब'


Jun 18, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

देहरी पर दिया

देहरी पर दिया
बाँट गया प्रकाश
कुछ भीतर कुछ बाहर:
बँट गया हिया -
कुछ गेही कुछ यायावर l
हवा का हल्का झोंका
कुछ सिमट, कुछ बिखर गया
लौ काँप कर फिर थिर हुई:
मैं सिहर गया l

*हिया=हृदय; गेही=घर-बार वाला व्यक्ति; यायावर=घुमक्कड़

~ अज्ञेय


Jun 17, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

गंधर्व, गीत के ओ!



गंधर्व, गीत के ओ! कबसे पुकारता हूँ
आओ कि मौत सहमे, गाओ कि जिए जीवन ।

यह निपट अकेलापन, मन की रुई न धुन दे
यह मौत कहीं मुझको, दीवार में न चुन दे
पाया मुझे अकेला, धमका दिया मरण ने
ज़िंदा रखा अभी तक, बस गीत की शरण ने
आओ न तुम अगर तो अवसर मिले व्यथा को
सब वक्ष के व्रणों की देगी उधेड़ सीवन ।

ईंधन बचा हुआ है, ब़ाकी अभी अगन है
हम नित्य गा रहे तो यह ज़िंदगी मगन है
वैसे मरण-महावर पर पाँव में रचा है
मारा गया बहुत पर, जीवन अभी बचा है
अनुपात यह हमेशा, यों ही बना रहे तो
हो अश्रु-ताप पर अब चंदन-सुहास लेपन ।

गाओ कि गीत से ही, धरती, गगन, दिशा है
स्वर शेष, साँस, स्पंदन, ब़ाकी जिजीविषा है
देखो कि गीत वाला स्वर मंद हो न जाए
यह द्वार खुला जीवन का, बंद हो न जाए
जीते न मौत बाज़ी, हारे न कभी जीवन
अर्थी इधर, उधर हो, नव-जन्म-थाल-वादन ।

~ चंद्रसेन विराट


Jun 17, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

अमल से ज़िंदगी बनती है

अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नुम भी,
यह ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है।

*अमल=काम, कर्म; ख़ाकी=तुच्छ, इंसान; नूरी=प्रकाश से भरपूर; नारी=आग्नेय, नरक

~ मोहम्मद इक़बाल

Jun 16, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

पूछा किसी ने हाल किसी का




पूछा किसी ने हाल किसी का तो रो दिए
पानी के अक्स चाँद का देखा तो रो दिए

नग़्मा किसी ने साज़ पे छेड़ा तो रो दिए
ग़ुंचा किसी ने शाख़ से तोड़ा तो रो दिए

उड़ता हुए ग़ुबार सर-ए-राह देख कर
अंजाम हम ने इश्क़ का सोचा तो रो दिए

बादल फ़ज़ा में आप की तस्वीर बन गए
साया कोई ख़याल से गुज़रा तो रो दिए

रंग-ए-शफ़क़ से आग शगूफ़ों में लग गई
‘साग़र’ हमारे हाथ से छलका तो रो दिए
*रंग-ए-शफ़क़=इंद्रधनुष के रंगों से; शगूफ़ों==कलियों

~ सागर सिद्दीक़ी


Jun 15, 2015|e-kavya.blogspot.com
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तुम्हारी फाइलों में गाँव का



तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वह
इधर परदे के पीछे बरबरीयत  है, नवाबी है

लगी है होड़ सी देखो, अमीरी और गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है

तुम्हारी मेज़ चांदी की, तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रकाबी है

‍~ अदम गोंडवी


Jun 13, 2015|e-kavya.blogspot.com
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जन्नत से जी लरज़ने लगा

जन्नत से जी लरज़ने लगा जब से ये सुना
अहल-ए-जहाँ वहाँ भी मिलेंगे यहाँ के बाद

~ नामालूम

Jun 11, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

धोता हूँ जब मैं पीने को

धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
रखता है ज़िद से खेंच कर बाहर लगन के पाँव

*सीम-तन=चाँदी के जैसे बदन वाली; लगन=पैर धोने के लिए बर्तन

~ मिर्ज़ा ग़ालिब

Jun 10, 2015|e-kavya.blogspot.com
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जाओ उन्हीं आलिंगनों में

जाओ उन्हीं आलिंगनों में
जो तुम्हारे थे
उड़ेल दिया था जिनमें तुमने
सारा प्रेम अपना

जाओ अब तक वहीं पड़ा है वह चुंबन
जिसे छोड़ गयी थी लाल आँखों वाली चिड़िया
उठा लाओ वह सफ़ेद पंख
जिसे गिरा गयी थी वह किसी और के लिए

~ सविता सिंह


Jun 09, 2015|e-kavya.blogspot.com
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अब क्या करूँ तलाश किसी

अब क्या करूँ तलाश किसी कारवां को मैं,
गुम हो गया हूँ पाके तेरे आस्ताँ को मैं।

*आस्ताँ=चौखट, दहलीज, ड्योढ़ी

~ जलील मानिकपुरी

Jun 07, 2015|e-kavya.blogspot.com
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चंचल पवन, प्राणमय बंधन



चंचल पवन, प्राणमय बंधन
व्योम सभी के ऊपर छाया
एक चांदनी का मधु लेकर
एक उषा में जगो, जगाओ

झिझक छोड़ दो, जाल तोड़ दो
तज मन का जंजाल जोड़ दो
मन से मन, जीवन से जीवन
कच्चे कल्पित पात्र फोड़ दो

साँस-साँस से, लहर-लहर से
और पास आओ, लहराओ

~ त्रिलोचन


Jun 07, 2015|e-kavya.blogspot.com
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जग बीती दुनिया कहती है



जग बीती दुनिया कहती है
मैं अपनी बीती कहता हूँ
कोई सुन ले रे

आँखें जिसको चाहे उसको प्यार कभी न करना रे
दिल की दुनिया उजड़ जाएगी प्रीत से हरदम डरना रे
कोई सुन ले रे

दो नैनों के कुछ बूँदों में जीवन ज्वाला जलती हैं
आँखें जब रोती हैं तो दुनिया की नज़र बदलती है
कोई सुन ले रे

दिल लेकर लाखोँ जाते हैं पर देने वाला कोई नहीं
मर मिटने की सब कहते हैं पर मरने वाला एक नहीं
कोई सुन ले रे

~ बी. सी. मधुर


Jun 06, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

ख़ुद से मिलना मिलाना भूल गए



ख़ुद से मिलना मिलाना भूल गए
लोग अपना ठिकाना भूल गये

रंग ही से फ़रेब खाते रहे
ख़ुशबुएँ आज़माना भूल गये

तेरे जाते ही ये हुआ महसूस
आइने मुस्कुराना भूल गये

जाने किस हाल में हैं कैसे हैं
हम जिन्हें याद आना भूल गये

पार उतर तो गये सभी लेकिन
साहिलों पर ख़ज़ाना भूल गये

दोस्ती बंदगी वफ़ा-ओ-ख़ुलूस
हम ये शम्अ' जलाना भूल गये
*ख़ुलूस=स्नेह

~ अंजुम लुधियानवी


Jun 05, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

बेक़रार दिल, तू गाये जा



बेक़रार दिल, तू गाये जा खुशियों से भरे वो तराने
जिन्हें सुन के दुनिया झूम उठे, झूम उठे दिल दीवाने

राग हो कोई मिलन का, सुख से भरी सरगम का
युग-युग के बंधन का, साथ हो लाखों जनम का
ऐसे ही बहारें गाती रहें, और सजते रहे वीराने

रात यूँ ही थम जायेगी, रुत ये हंसीं मुसकाएगी
बंधी कली खिल जायेगी, और शबनम शरमायेगी
प्यार के वो कैसे नगमे, जो बन जायें अफ़साने

दर्द में डूबी धुन हो, सीने में इक सुलगन हो
सांसों में हलकी चुभन हो, सहमी हुई धड़कन हो
दोहराते रहें बस गीत ये आ, दुनिया से रहें बेगाने

~ ए. इर्शाद


Jun 04, 2015|e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh