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Sunday, August 30, 2020

अगर अँखियों सीं अँखियों को मिलाओगे



अगर अँखियों सीं अँखियों को मिलाओगे तो क्या होगा
नज़र कर लुत्फ़ की हम कूँ जलाओगे तो क्या होगा

तुम्हारे लब की सुर्ख़ी लअ'ल की मानिंद असली है
अगर तुम पान ऐ प्यारे न खाओगे तो क्या होगा
*ल’अल=रूबी

मोहब्बत सीं कहता हूँ तौर बद-नामी का बेहतर नहिं
अगर ख़ंदों की सोहबत में न जाओगे तो क्या होगा
*ख़ंदों=हँसाने वाले

तुम्हारे शौक़ में हूँ जाँ-ब-लब इक उम्र गुज़री है
अगर इक दम कूँ आ कर मुख दिखाओगे तो क्या होगा
 
मिरा दिल मिल रहा है तुम सूँ प्यारे बातिनी मिलना
अगर हम पास ज़ाहिर में न आओगे तो क्या होगा
*बातिनी=छुप के

जगत के लोग सारे 'आबरू' कूँ प्यार करते हैं
अगर तुम भी गले इस कूँ लगाओगे तो क्या होगा

~ आबरू शाह मुबारक

Aug 30, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Thursday, August 27, 2020

एक पुराने दुख ने पूछा


एक पुराने दुख ने पूछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो

उत्तर दिया चले मत आना मैने वो घर बदल दिया है।

जग ने मेरे सुख-पंछी के पाँखो मे पत्थर बाँधे है,
मेरी विपदाओं ने अपने पैरो मे पायल साधे है,
एक वेदना मुझसे बोली मैने अपनी आँख न खोली,
उत्तर दिया चले मत आना मैने  वो उर बदल दिया है।

वैरागिन बन जाएँ वासना बना सकेगी नहीं वियोगी,
साँसो से आगे जीने की हट कर बैठा मन का योगी,
एक पाप ने मुझे पुकारा, मैने केवल यही उचारा,
जो झुक जाए तुम्हारे आगे मैने वो सर बदल दिया है।

मन की पावनता पर बैठी है कमज़ोरी आँख लगाए,
देखें दर्पण के पानी से कैसे कोई प्यास बुझाए,
खंडित प्रतिमा बोली आओ मेरे साथ आज कुछ गाओ,
उत्तर दिया मौन हो जाओ मैने वो स्वर बदल दिया है।

एक पुराने दुख ने पूछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो,
उत्तर दिया चले मत आना मैने वो घर बदल दिया है।

~ शिशुपाल सिंह निर्धन

Aug 27, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh



Wednesday, August 26, 2020

हर-चंद सहारा है तिरे प्यार का


 हर-चंद सहारा है तिरे प्यार का दिल को
रहता है मगर एक अजब ख़ौफ़ सा दिल को

वो ख़्वाब कि देखा न कभी ले उड़ा नींदें
वो दर्द कि उट्ठा न कभी खा गया दिल को

या साँस का लेना भी गुज़र जाना है जी से
या मारका-ए-इश्क़ भी इक खेल था दिल को
*मारका-ए-इश्क़=प्यार की उपलब्धि

वो आएँ तो हैरान वो जाएँ तो परेशान
या-रब कोई समझाए ये क्या हो गया दिल को

सोने न दिया शोरिश-ए-हस्ती ने घड़ी भर
मैं लाख तिरा ज़िक्र सुनाता रहा दिल को
*शोरिश-ए-हस्ती=जीवन की उथल-पुथल

रूदाद-ए-मोहब्बत न रही इस के सिवा याद
इक अजनबी आया था उड़ा ले गया दिल को
* रूदाद-ए-मोहब्बत=प्रेम कहानी

जुज़ गर्द-ए-ख़मोशी नहीं 'शोहरत' यहाँ कुछ भी
किस मंज़िल-ए-आबाद में पहुँचा लिया दिल को
जुज़=सिवा

~ शोहरत बुख़ारी

Aug 26, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

 


Tuesday, August 25, 2020

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले














 लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
अपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले
*हयात=ज़िंदगी; कज़ा=मृत्यु

हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आए अभी चले
*उम्र-ए-ख़िज़्र=पैगम्बर ख़िज़्र की उम्र(अमर), वक़्त-ए-मर्ग़=मृत्यु के समय

हम से भी इस बिसात पे कम होंगे बद-क़िमार
जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले
*बद-क़िमार=नौसिखिये

बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले

नाज़ाँ न हो ख़िरद पे जो होना है हो वही
दानिश तिरी न कुछ मिरी दानिश-वरी चले
*नाज़ाँ=घमंड; ख़िरद=बुद्धि; दानिश-वरी=ज्ञान

दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो यूँ ही जब तक चली चले
राह-ए-फ़ना=विनाश की राह

जाते हवा-ए-शौक़ में हैं इस चमन से 'ज़ौक़'
अपनी बला से बाद-ए-सबा अब कभी चले
*हवा-ए-शौक़=प्रेम की हवा; बाद-ए-सबा= सुबह चलने वाली शीतल हवा

~ शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

Aug 25, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Monday, August 24, 2020

तुमको अपनी नादानी पर

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

तुमको अपनी नादानी पर
जीवन भर पछताना होगा!

मैं तो मन को समझा लूंगा
यह सोच कि पूजा था पत्थर--
पर तुम अपने रूठे मन को
बोलो तो, क्या उत्तर दोगी ?
नत शिर चुप रह जाना होगा!
जीवन भर पछताना होगा!
*नत-शिर=विनीत हो कर

मुझको जीवन के शत संघर्षों में
रत रह कर लड़ना है ;
तुमको भविष्य की क्या चिन्ता,
केवल अतीत ही पढ़ना है!
बीता दुख दोहराना होगा!
जीवन भर पछताना होगा!

तुमको अपनी नादानी पर
जीवन भर पछताना होगा!

शैलेंद्र 

Aug 24, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, August 23, 2020

आँसू मिरी आँखों से

 


आँसू मिरी आँखों से टपक जाए तो क्या हो
तूफ़ाँ कोई फिर आ के धमक जाए तो क्या हो 

बस इस लिए रहबर पे नहीं मुझ को भरोसा
बुद्धू है वो ख़ुद राह भटक जाए तो क्या हो

अच्छी ये तसव्वुर की नहीं दस्त-दराज़ी
अंगिया कहीं इस बुत की मसक जाए तो क्या हो
*तसव्वुर=कल्पना; दस्त-दराज़ी=हाथ बढ़ा

वाइज़ ये गुलिस्ताँ ये बहारें ये घटाएँ
साग़र कोई ऐसे में खनक जाए तो क्या हो
*साग़र=शराब का प्याला

ये चाह-कनी मेरे लिए बानी-ए--बेदाद
तू ख़ुद इसी कोइयाँ में लुढ़क जाए तो क्या हो
*चाह-कनी=कुँआ खोदना; बानी-ए-बेदाद=अन्याय की उत्पत्ति करने वाला; कोइयाँ=(कुआँ)

ग़ुर्बत से मिरी सुब्ह ओ मसा खेलने वाले
तेरा भी दिवाला जो खिसक जाए तो क्या हो
*ग़ुर्बत-=परेशानी, गरीबी; मसा=शाम

ये बार-ए-अमानत तू उठाता तो है लेकिन
नाज़ुक है कमर तेरी लचक जाए तो क्या हो
*बार-ए-अमानत=किसी धरोहर की ज़िम्मेदारी

रुक रुक के ज़रा हाथ बढ़ा ख़्वान-ए-करम पर
लुक़्मा कोई जल्दी में अटक जाए तो क्या हो
ख़्वान-ए-करम=ईनाम; लुक़्मा=निवाला

मैं क़ैद हूँ पर आह-ए-रसा क़ैद नहीं है
वो जेल की दीवार तड़क जाए तो क्या हो
*आह-ए-रसा=गंतव्य पर पहुँच जाना

ऐ साक़ी-ए-गुलफ़ाम ज़रा सोच ले ये भी
कुल्हड़ तिरी हस्ती का छलक जाए तो क्या हो
*साक़ी-ए-गुलफ़ाम=गुलाब की तरह वाले साक़ी

जल्लाद से ऐ 'शौक़' मैं ये पूछ रहा हूँ
तू भी यूँही फाँसी पे लटक जाए तो क्या हो

~ शौक़ बहराइची
  
Aug 23, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Monday, August 17, 2020

या तिरा तज़्किरा करे हर शख़्स

या तिरा तज़्किरा करे हर शख़्स
या कोई हम से गुफ़्तुगू न करे

*तज़्किरा=चर्चा, बातचीत

 ~ शकील अहमद ज़िया

Aug 17, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, August 16, 2020

चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए

 

चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए
मैं तो सूरज हूँ बुझूँगा भी तो जलने के लिए

मंज़िलो तुम ही कुछ आगे की तरफ़ बढ़ जाओ
रास्ता कम है मिरे पाँव को चलने के लिए

ज़िंदगी अपने सवारों को गिराती जब है
एक मौक़ा भी नहीं देती सँभलने के लिए

मैं वो मौसम जो अभी ठीक से छाया भी नहीं
साज़िशें होने लगीं मुझ को बदलने के लिए

वो तिरी याद के शोले हों कि एहसास मिरे
कुछ न कुछ आग ज़रूरी है पिघलने के लिए

ये बहाना तिरे दीदार की ख़्वाहिश का है
हम जो आते हैं इधर रोज़ टहलने के लिए

आँख बेचैन तिरी एक झलक की ख़ातिर
दिल हुआ जाता है बेताब मचलने के लिए 


~ शकील आज़मी
 

Aug 16, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Friday, August 14, 2020

ये किस ने कह दिया आख़िर

 

ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो
ये मय है मय उसे औरों को भी पिला के पियो

ग़म-ए-जहाँ को ग़म-ए-ज़ीस्त को भुला के पियो
हसीन गीत मोहब्बत के गुनगुना के पियो
* ग़म-ए-जहाँ=दुनिया के दुख, ग़म-ए-ज़ीस्त=ज़िंदगी के दुख 
 
छुटे न दामन-ए-ताअ'त भी वक़्त-ए-मय-नोशी
पियो तो सज्दा-ए-उल्फ़त में सर झुका के पियो
*ता’अत=पूजा

बुझे बुझे से हों अरमाँ तो क्या फ़रोग़-ए-नशात
जो सो गए हैं सितारे उन्हें जगा के पियो
*फ़रोग़-ए-नशात=उत्साह की चरम सीमा

ग़म-ए-हयात का दरमाँ हैं इश्क़ के आँसू
अँधेरी रात है यारो दिए जला के पियो

नसीब होगी बहर-कैफ़ मर्ज़ी-ए-साक़ी
मिले जो ज़हर भी यारो तो मुस्कुरा के पियो
*बहर-कैफ़=किसी भी हाल

मिरे ख़ुलूस पे शैख़-ए-हरम भी कह उट्ठा
जो पी रहे हो तो 'दर्शन' हरम में आ के पियो
*ख़ुलूस=निश्छलता

~ संत दर्शन सिंह

Aug 14, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Thursday, August 13, 2020

चाँद मशरिक़ से निकलता नहीं

 

चाँद मशरिक़ से निकलता नहीं देखा मैं ने
तुझ को देखा है तो तुझ सा नहीं देखा मैं ने

हादिसा जो भी हो चुप-चाप गुज़र जाता है
दिल से अच्छा कोई रस्ता नहीं देखा मैं ने

फिर दरीचे से वो ख़ुश्बू नहीं पहुँची मुझ तक
फिर वो मौसम कभी दिल का नहीं देखा मैं ने

मोम का चाँद हथेली पे लिए फिरता हूँ
शहर में धूप का मेला नहीं देखा मैं ने

चढ़ते सूरज की शुआ'ओं ने मुझे पाला है
जो उतर जाए वो दरिया नहीं देखा मैं ने
* शुआ'ओं=किरण

फिर मिरे पाँव की ज़ंजीर हिला दे कोई
कब से इस शहर का रस्ता नहीं देखा मैं ने

मुझ को पानी में उतरने की सज़ा देता है
वो समझता है कि दरिया नहीं देखा मैं ने

'क़ैस' कहते हैं फ़क़ीरों पे बहुत भौंकता है
अपने हम-साए का कुत्ता नहीं देखा मैं ने

सईद क़ैस 

Aug 13, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Wednesday, August 12, 2020

मेरे जैसे बन जाओगे

 

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा,
दीवारों से सर टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा।

हर बात गवारा कर लोगे मिन्नत भी उतारा कर लोगे,
ता'वीज़ें भी बंधवागे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा।

तन्हाई के झूले खोलेंगे हर बात पुरानी भूलेंगे,
आईने से तुम घबराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा।

जब सूरज भी खो जाएगा और चाँद कहीं सो जाएगा,
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएग।

बेचैनी बढ़ जाएगी और याद किसी की आएगी,
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जाएगा।

~ सईद राही 
 
Aug 12, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Tuesday, August 11, 2020

सर पर सात आकाश ज़मीं पर

 

सर पर सात आकाश ज़मीं पर सात समुंदर बिखरे हैं
आँखें छोटी पड़ जाती हैं इतने मंज़र बिखरे हैं

ज़िंदा रहना खेल नहीं है इस आबाद ख़राबे में
वो भी अक्सर टूट गया है हम भी अक्सर बिखरे हैं

उस बस्ती के लोगों से जब बातें कीं तो ये जाना
दुनिया भर को जोड़ने वाले अंदर अंदर बिखरे हैं

इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं

आँगन के मा'सूम शजर ने एक कहानी लिक्खी है
इतने फल शाख़ों पे नहीं थे जितने पत्थर बिखरे हैं

सारी धरती सारे मौसम एक ही जैसे लगते हैं
आँखों आँखों क़ैद हुए थे मंज़र मंज़र बिखरे हैं

~ राहत इंदौरी 
 
Aug 11, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Monday, August 10, 2020

तुम ने मोहब्बत को

 

 तुम ने मोहब्बत को मरते देखा है?

चमकती हँसती आँखें पथरा जाती हैं
दिल के दालानों में
परेशान गर्म लू के झक्कड़ चलते हैं
 
गुलाबी एहसास के बहते हुए ख़ुश्क
और लगता है जैसे
किसी हरी-भरी खेती पर पाला पड़ जाए!

लेकिन या-रब
आरज़ू के इन मुरझाए सूखे फूलों
इन गुम-शुदा जन्नतों से
कैसी संदली
दिल-आवेज़
ख़ुशबुएँ आती हैं!

*दिल-आवेज़=मनोहारी

~ सज्जाद ज़हीर 
 
Aug 10, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, August 9, 2020

देखता हूँ फूल और काँटे ब-हर-सू


देखता हूँ फूल और काँटे ब-हर-सू आज भी
याद करता हूँ तिरी ख़ुश्बू तिरी ख़ू आज भी
*ख़ू=आदत

जाने क्यूँ जलती सुलगती शाम के ऐवान में
फैल जाती है तिरी बातों की ख़ुश्बू आज भी
*एवान=महल

ज़ीस्त के ख़स्ता शिकस्ता गुम्बदों में गाह-गाह
गूँजता है तेरी आवाज़ों का जादू आज भी
*ज़ीस्त=जीवन; शिकस्ता=टूटा-फूटा; गाह-गाह= कोई विशिष्ट स्थान

ज़ुल्फ़ कब की आतिश-ए-अय्याम से कुम्हला गई
ज़ुल्फ़ का साया नहीं ढलता सर-ए-मू आज भी
*आतिश-ए-अय्याम=वक़्त की आग; सर-ए-मू=ज़रा सा भी, किंचितमात्र

तू ने पाने हाथ में जिस पर लिखा था मेरा नाम
वो सनोबर लहलहाता है लब-ए-जू आज भी
*सनोबर=पाइन का वृक्ष; लब-ए-जू=पानी के किनारे

वो तिरा पल-भर को मिलना फिर बिछड़ने के लिए
दिल की मुट्ठी में है इस लम्हे का जुगनू आज भी

मुद्दतें गुज़रीं मगर ऐ दोस्त तेरे नाम पर
डोल जाती है मिरे दिल की तराज़ू आज भी

~ ख़ुर्शीद रिज़वी

Aug 09, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Friday, August 7, 2020

सहरा ही ग़नीमत है

सहरा ही ग़नीमत है, जो घर जाओगे लोगो
वो आलम-ए-वहशत है कि मर जाओगे लोगो
*सहरा=रेगिस्तान, जंगल; आलम-ए-वहशत=इन्माद के हालात

यादों के तआक़ुब में अगर जाओगे लोगो
मेरी ही तरह तुम भी बिखर जाओगे लोगो
*तआक़ुब=शरण

वो मौज-ए-सबा भी हो तो होश्यार ही रहना
सूखे हुए पत्ते हो बिखर जाओगे लोगो
*मौज-ए-सबा=सवेरे की हवा

इस ख़ाक पे मौसम तो गुज़रते ही रहे हैं
मौसम ही तो हो तुम भी गुज़र जाओगे लोगो
*ख़ाक=धूल

उजड़े हैं कई शहर, तो ये शहर बसा है
ये शहर भी छोड़ा तो किधर जाओगे लोगो

हालात ने चेहरों पे बहुत ज़ुल्म किए हैं
आईना अगर देखा तो डर जाओगे लोगो

इस पर न क़दम रखना कि ये राह-ए-वफ़ा है
‘सरशार’ नहीं हो, कि गुज़र जाओगे लोगो
*सरशार=मस्ती में

~ सरशार सिद्दीक़ी

Aug 07, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Wednesday, August 5, 2020

खाते हैं हम हचकोले


खाते हैं हम हचकोले इस पागल संसार के बीच
जैसे कोई टूटी कश्ती फँस जाए मँझधार के बीच

उन के आगे घंटों की अर्ज़-ए-वफ़ा और क्या पाया
एक तबस्सुम मुबहम सा इक़रार और इंकार के बीच
*मुबहम=धुँधला

दोनों ही अंधे हैं मगर अपने अपने ढब के हैं
हम तो फ़र्क़ न कर पाए काफ़िर और दीं-दार के बीच
*ढब=तरीके; दीं-दार=धार्मिक

इश्क़ पे बुल-हवसी का तअ'न ये भी कोई बात हुई
कोई ग़रज़ तो होती है प्यार से हर ईसार के बीच
*बुल-हवसी=वासना; ईसार=परोपकार

यूँ तो हमारा दामन बस एक फटा कपड़ा है मगर
ढूँढो तो पाओगे यहाँ सौ सौ दिल हर तार के बीच

जैसे काले कीचड़ में इक सुर्ख़ कमल हो जल्वा-नुमा
ऐसे दिखाई देते हो हम को तो अग़्यार के बीच
*अग्यार=अजनबी लोग

ये है दयार-ए-इश्क़ यहाँ 'कैफ़' ख़िरद से काम न ले
फ़र्क़ नहीं कर पाएगा मजनूँ ओ होश्यार के बीच
*दयार-ए-इश्क़=प्रेम का क्षेत्र; ख़िरद=बुद्धि

~ सरस्वती सरन कैफ़

Aug 05, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh