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Friday, February 26, 2021

अब सजेगी अंजुमन बसंत आ गई

 

कुंज कुंज नग़्मा-ज़न बसंत आ गई
अब सजेगी अंजुमन बसंत आ गई

उड़ रहे हैं शहर में पतंग रंग रंग
जगमगा उठा गगन बसंत आ गई

मोहने लुभाने वाले प्यारे प्यारे लोग
देखना चमन चमन बसंत आ गई

सब्ज़ खेतियों पे फिर निखार आ गया
ले के ज़र्द पैरहन बसंत आ गई

पिछले साल के मलाल दिल से मिट गए
ले के फिर नई चुभन बसंत आ गई

‍~ नासिर काज़मी

Feb 26, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, February 17, 2021

न बेताबी न आशुफ़्ता-सरी है



न बेताबी न आशुफ़्ता-सरी है
हमारी ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है
*आशुफ़्ता-सरी=पागल पन

फ़रेब-ए-आरज़ू खाएँ तो क्यूँ कर
तग़ाफ़ुल है न बेगाना-वशी है
* तग़ाफ़ुल=उपेक्षा; बेगाना-वशी=विरक्ति

मोहब्बत के सिवा जादा न मंज़िल
मोहब्बत के सिवा सब गुमरही है
*जादा=पगडंडी

मोहब्बत में शिकायत क्या गिला क्या
मोहब्बत बंदगी है बंदगी है

ख़ुदा बर-हक़ मगर इस को करें क्या
बुतों में सद-फ़ुसून-ए-दिलबरी है
*बर-हक़=सच; सद=सौ, फ़ुसून=जादू

मुझे नफ़रत नहीं जन्नत से लेकिन
गुनाहों में अजब इक दिलकशी है

न दो हूर-ओ-मय-ओ-कौसर के ता'ने
कि ज़ाहिद भी तो आख़िर आदमी है
*कौसर=स्वर्ग की एक नहर; ज़ाहिद=संयमी

~ हबीब अहमद सिद्दीक़ी

Feb 17, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, February 2, 2021

हमें मिट्टी ही रहने दो


गढ़ो मत चाक पे रख के
कोई कूज़ा सुराही या घड़ा प्याला
तुम्हारी सोच के ये नक़्श हैं सारे
तुम्हारी ख़्वाहिशों के रंग भर दिलकश
हमें मिट्टी ही रहने दो
हमें कब चाहिए ऐसी अता
बख़्शी हुई सूरत
हमें मिट्टी ही रहने दो
जो नम बारिश से हो
ज़रख़ेज़ हो फ़स्लें उगाती हो
ज़रा सी बीज को पौदा बनाती हो
कि वो पौदा शजर बन कर
तुम्हारी रहगुज़र को छाँव देता है
वही रस्ता तुम्हारी मंज़िलें आसान करता है
हमें मिट्टी ही रहने दो
नुमाइश के सजावट के
हमें सामान क्यूँ होना
नुमू से क्यूँ हमें महरूम करते हो
तुम्हारे पाँव के नीचे ज़मीं क़ाएम रहे जानाँ
हमें मिट्टी ही रहने दो

~ कहकशाँ तबस्सुम

Feb 02, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh