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Tuesday, June 30, 2020

दिल अभी तक जवान है प्यारे



दिल अभी तक जवान है प्यारे
किस मुसीबत में जान है प्यारे

तू मिरे हाल का ख़याल न कर
इस में भी एक शान है प्यारे

तल्ख़ कर दी है ज़िंदगी जिस ने
कितनी मीठी ज़बान है प्यारे

वक़्त कम है न छेड़ हिज्र की बात
ये बड़ी दास्तान है प्यारे

जाने क्या कह दिया था रोज़-ए-अज़ल
आज तक इम्तिहान है प्यारे
*रोज़-ए-अज़ल=आदि काल

हम हैं बंदे मगर तिरे बंदे
ये हमारी भी शान है प्यारे

नाम है इस का नासेह-ए-मुश्फ़िक़
ये मिरा मेहरबान है प्यारे
*नासेह-ए-मुश्फ़िक़=स्नेही सलाहकार

कब किया मैं ने इश्क़ का दावा
तेरा अपना गुमान है प्यारे

मैं तुझे बेवफ़ा नहीं कहता
दुश्मनों का बयान है प्यारे

सारी दुनिया को है ग़लत-फ़हमी
मुझ पे तो मेहरबान है प्यारे

तेरे कूचे में है सुकूँ वर्ना
हर ज़मीं आसमान है प्यारे

ख़ैर फ़रियाद बे-असर ही सही
ज़िंदगी का निशान है प्यारे

शर्म है एहतिराज़ है क्या है
पर्दा सा दरमियान है प्यारे
*एहतिराज़=परहेज़

अर्ज़-ए-मतलब समझ के हो न ख़फ़ा
ये तो इक दास्तान है प्यारे

जंग छिड़ जाए हम अगर कह दें
ये हमारी ज़बान है प्यारे
 
~ हफ़ीज़ जालंधरी

Jun 30, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Sunday, June 28, 2020

फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से



फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से
पूछते क्या हो दिल-निगारों से
फ़ैज़=भलाई, यश; दिल-निगारों=दिल में बने नक़्श

आशियाँ तो जला मगर हम को
खेलना आ गया शरारों से
*शरारों=चिंगारियाँ

क्या हुआ ये कि ख़ूँ में डूबी हुई
लपटें आती हैं लाला-ज़ारों से
*लाला-ज़ारों=फूलों के बाग़ान

उन में होते हैं क़ाफ़िले पिन्हाँ
दिल-शिकस्ता न हो ग़ुबारों से
*पिन्हाँ=छुपे हुए; दिल-शिकस्ता=टूटा दिल

है यहाँ कोई हौसले वाला
कुछ पयाम आए हैं सितारों से

हम से मेहर-ओ-वफ़ा की बात करो
होश की बात होशयारों से
*मेहर-ए-वफ़ा=प्रेम और वफ़ा

कू-ए-जानाँ हो दैर हो कि हरम
कब मफ़र है यहाँ सहारों से
*कू-ए-जानाँ=प्रेमिका की गली; दैर=मंदिर; हरम=काबा; मफ़र=बचाव

~ हबीब अहमद सिद्दक़ी

Jun 28, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Friday, June 26, 2020

मैं नहीं जा पाऊँगा यारो



मैं नहीं जा पाऊँगा यारो सू-ए-गुलज़ार अभी
देखनी है आब-जू-ए-ज़ीस्त की रफ़्तार अभी
*सू-ए-गुलज़ार=बाग़ीचे की तरफ़; आब-जू-ए-ज़ीस्त=जीवन का श्रोत

कर चुका हूँ पार ये दरिया न जाने कितनी बार
पार ये दरिया करूँगा और कितनी बार अभी

घूम फिर कर दश्त-ओ-सहरा फिर वहीं ले आए पाँव
दिल नहीं है शायद इस नज़्ज़ारे से बे-ज़ार अभी
*दश्त-ओ-सहरा=जंगल और बंजर; बे-ज़ार=उदासीन

काविश-ए-पैहम अभी ये सिलसिला रुकने न पाए
जान अभी आँखों में है और पाँव में रफ़्तार अभी
*काविश-ए-पैहम=लगातार प्रयास

ऐ मिरे अरमान-ए-दिल बस इक ज़रा कुछ और सब्र
रात अभी कटने को है मिलने को भी है यार अभी

जज़्बा-ए-दिल देखना भटका न देना राह से
मुंतज़िर होगा मिरा भी ख़ुद मिरा दिल-दार अभी
*मुंतज़िर=प्रतीक्षारत

होंगी तो इस रह-गुज़र में भी कमीं-गाहें हज़ार
फिर भी ये बार-ए-सफ़र क्यूँ हो मुझे दुश्वार अभी
*रह-गुज़र=रास्ता; कमीं-गाहें=जहाँ कुछ ढूँढ़ा जा रहा हो; बार-ए-सफ़र=सफ़र का बोझ 

~ हबीब तनवीर

Jun 26, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Thursday, June 25, 2020

जो थके थके से थे हौसले


जो थके थके से थे हौसले वो शबाब बन के मचल गए
वो नज़र नज़र से गले मिले तो बुझे चराग़ भी जल गए

ये शिकस्त-ए-दीद की करवटें भी बड़ी लतीफ़ ओ जमील थीं
मैं नज़र झुका के तड़प गया वो नज़र बचा के निकल गए
*शिकस्त-ए-दीद=आँखों से दूर होना; लतीफ़=कोमल; जमील=रूपवान

न ख़िज़ाँ में है कोई तीरगी न बहार में कोई रौशनी
ये नज़र नज़र के चराग़ हैं कहीं बुझ गए कहीं जल गए

जो सँभल सँभल के बहक गए वो फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-राह थे
वो मक़ाम-ए-इश्क़ को पा गए जो बहक बहक के सँभल गए
*फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-राह=रास्ते के धोखे

जो खिले हुए हैं रविश रविश वो हज़ार हुस्न-ए-चमन सही
मगर उन गुलों का जवाब क्या जो क़दम क़दम पे कुचल गए
*रविश=अंदाज़

न है 'शाइर' अब ग़म-ए-नौ-ब-नौ न वो दाग़-ए-दिल न वो आरज़ू
जिन्हें ए'तिमाद-ए-बहार है वही फूल रंग बदल गए
*ग़म-ए-नौ-ब-नौ=दुख के बाद और नया दुख; ए'तिमाद-ए-बहार=बहार का भरोसा

~ शायर लखनवी

Jun 25, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, June 24, 2020

सब में हूँ फिर किसी से सरोकार



सब में हूँ फिर किसी से सरोकार भी नहीं
ग़ाफ़िल अगर नहीं हूँ तो होश्यार भी नहीं
*ग़ाफ़िल=असावधान

क़ीमत अगर वो देते हैं तकरार भी नहीं
कुछ हम को दिल के देने में इंकार भी नहीं
*तकरार=वाद-विवाद

निस्बत है जिस्म ओ रूह की अल्लाह-रे इत्तिहाद
सुब्हा अगर नहीं है तो ज़ुन्नार भी नहीं
*निस्बत=सम्बंध; इत्तिहाद=मिलन; ज़ुन्नर=जनेऊ

बैठा हूँ उस की याद में भूला हूँ ग़ैर को
ज़ाहिद अगर नहीं हूँ रिया-कार भी नहीं
*ज़ाहिद=धर्म का पालक; रिया-कार=पाखंडी

जाएँ वो क़त्ल-ए-ग़ैर को हम रश्क से मरें
ऐसी तो अपनी जान से बेज़ार भी नहीं
*रश्क=ईर्ष्या; बेज़ार=ऊबे हुए

आना हो आओ वर्ना ये कह दो न आएँगे
सुन लो ये दो ही बातें हैं तूमार भी नहीं
*तूमार=लम्बा पत्र

सौदा तमाम हो गया बाज़ार उठ गया
वो दिल भी अब नहीं वो ख़रीदार भी नहीं

तर्ज़-ए-जफ़ा भी भूल गई क्या वफ़ा के साथ
दिल-दार गर नहीं हो दिल-आज़ार भी नहीं
*तर्ज़-ए-ज़फ़ा=बेवफ़ाई का तरीका; दिल-आज़ार=दिल दुखाने वाला

लेंगे हज़ार दर से पलट कर दर-ए-मुराद
मुनइम न दें तो क्या तिरी सरकार भी नहीं
*दर-ए-मुराद=इच्छाओं का द्वार; मुनइम=इमानम देने वाला

भेजेंगे हस्ब-ए-हाल उन्हें गो न लिख सकें
क्या दामन और दीदा-ए-ख़ूँ-बार भी नहीं
*हस्ब-ए-हाल=हालात के अनुसार; दीदा-ए-ख़ूँ-बार=दर्द की वज़ह से आँसू

बुलबुल चमन को देख ख़िज़ाँ के सितम को देख
गुल का तो ज़िक्र क्या है कहीं ख़ार भी नहीं

आज़ाद हैं शराब के आदी नहीं 'हबीब'
अहबाब गर पिलाएँ तो इंकार भी नहीं
*अहबाब=मित्र लोग

~ हबीब मूसवी

Jun 24, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, June 23, 2020

सीने में राज़-ए-इश्क़

सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा
ये आग वो है जिस को दबाया न जाएगा

सुन लीजिए कि है अभी आग़ाज़-ए-आशिक़ी
फिर हम से अपना हाल सुनाया न जाएगा
*आग़ाज़-ए-आशिक़ी=प्रेम का आरम्भ

अब सुल्ह-ओ-आशती के ज़माने गुज़र गए
अब दोस्ती का हाथ बढ़ाया न जाएगा
*सुल्ह-ओ-आशती=शांति और समझौता

हम आह तक भी ला न सकेंगे ज़बान पर
वो रूठ जाएँगे तो मनाया न जाएगा

वो दूर हैं तो दिल को है इक इज़्तिराब सा
वो आएँगे तो आप में आया न जाएगा
*इज़्तिराब= बेचैनी

~ हमीद जालंधरी

Jun 23, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Monday, June 22, 2020

कलियों का तबस्सुम हो


कलियों का तबस्सुम हो, कि तुम हो कि सबा हो
इस रात के सन्नाटे में, कोई तो सदा हो
*तबस्सुम=मुस्कुराहट; सबा=हवा; सदा=आवाज़

यूँ जिस्म महकता है हवा-ए-गुल-ए-तर से!
जैसे कोई पहलू से अभी उठ के गया हो
*हवा-ए-गुल-ए-तर=फूलों की ख़ुशबू से सराबोर

दुनिया हमा-तन-गोश है, आहिस्ता से बोलो
कुछ और क़रीब आओ, कोई सुन न रहा हो
*हमा-तन-गोश=कान लगाए

ये रंग, ये अंदाज़-ए-नवाज़िश तो वही है
शायद कि कहीं पहले भी तू मुझ से मिला हो
*अंदाज़-ए-नवाज़िश=अहसान करने का तरीका

यूँ रात को होता है गुमाँ दिल की सदा पर
जैसे कोई दीवार से सर फोड़ रहा हो

दुनिया को ख़बर क्या है मिरे ज़ौक़-ए-नज़र की
तुम मेरे लिए रंग हो, ख़ुशबू हो, ज़िया हो
*ज़ौक़-ए-नज़र=पारखी नज़र; ज़िया=उजाला

यूँ तेरी निगाहों में असर ढूँड रहा हूँ
जैसे कि तुझे दल के धड़कने का पता हो

इस दर्जा मोहब्बत में तग़ाफ़ुल नहीं अच्छा
हम भी जो कभी तुम से गुरेज़ाँ हों तो क्या हो
*तग़ाफ़ुल=अनदेखा करना; गुरेज़ाँ=भागता हुआ (लम्हा)

हम ख़ाक के ज़र्रों में हैं 'अख़्तर' भी, गुहर भी
तुम बाम-ए-फ़लक से, कभी उतरो तो पता हो
*ख़ाक=धूल; ज़र्रों=कण; गुहर=मोती; बाम-ए-फ़लक=आकाश की छत

~ हरी चंद अख़्तर

Jun 22, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, June 17, 2020

अब तो आँख से इतना जादू


अब तो आँख से इतना जादू कर लेता हूँ
जिस को चाहूँ उस को क़ाबू कर लेता हूँ

मेरे हाथ में जब से उस का हाथ आया है
ख़ार को फूल और फूल को ख़ुश्बू कर लेता हूँ

रात की तन्हाई में जब भी घर से निकलूँ
उस की यादों को मैं जुगनू कर लेता हूँ

दिल का दरिया सहरा होने से पहले ही
अपनी हर इक ख़्वाहिश आहू कर लेता हूँ
*आहू=हिरन

जब भी दिल की सम्त 'हसन' बढ़ता है कोई
उस के आगे अपने बाज़ू कर लेता हूँ

‍~ हसन अब्बासी

Jun 17, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, June 16, 2020

यक़ीन टूट चुका है


यक़ीन टूट चुका है गुमान बाक़ी है
हमारे सर पे अभी आसमान बाक़ी है

चले तो आए हैं हम ख़्वाब से हक़ीक़त तक
सफ़र तवील था अब तक थकान बाक़ी है
*तवील=लम्बा

उन्हें ये ज़ो'म कि फ़रियाद का चलन न रहा
हमें यक़ीन कि मुँह में ज़बान बाक़ी है
*ज़ो’म=घमंड

हर एक सम्त से पथराव है मगर अब तक
लहूलुहान परिंदे में जान बाक़ी है
*सम्त=तरफ़

फ़साना शहर की ता'मीर का सुनाने को
गली के मोड़ पे टूटा मकान बाक़ी है
*तामीर=निर्माण

मिला न जो हमें क़ातिल की आस्तीं पे 'हसन'
उसी लहू का ज़मीं पे निशान बाक़ी है

~ हसन कमाल

Jun 16, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Monday, June 15, 2020

ये कौन आ गई दिल-रुबा

ये कौन आ गई दिल-रुबा महकी महकी
फ़ज़ा महकी महकी हवा महकी महकी

वो आँखों में काजल वो बालों में गजरा
हथेली पे उस के हिना महकी महकी

ख़ुदा जाने किस किस की ये जान लेगी
वो क़ातिल अदा वो क़ज़ा महकी महकी

सवेरे सवेरे मिरे घर पे आई
ऐ 'हसरत' वो बाद-ए-सबा महकी महकी

~ हसरत जयपुरी #हसरतजयपुरी

Jun 15, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Sunday, June 14, 2020

दिल को ख़याल-ए-यार ने


दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया
साग़र को रंग-ए-बादा ने पुर-नूर कर दिया
*मख़्मूर=नशे में; बादा=शराब; पुरनूर=रौशन

मानूस हो चला था तसल्ली से हाल-ए-दिल
फिर तू ने याद आ के ब-दस्तूर कर दिया
*मानूस=निश्चिंत; ब-दस्तूर=पहले जैसा

गुस्ताख़-दस्तियों का न था मुझ में हौसला
लेकिन हुजूम-ए-शौक़ ने मजबूर कर दिया
*गुस्ताख़-दस्तियों=बेसब्र हाथ; हुजूम-ए-शौक़=प्रबल इच्छाएँ

कुछ ऐसी हो गई है तेरे ग़म में मुब्तिला
गोया किसी ने जान को मसहूर कर दिया
*मुब्तिला=व्यथित; मसहूर=वशीभूत

बेताबियों से छुप न सका माजरा-ए-दिल
आख़िर हुज़ूर-ए-यार भी मज़कूर कर दिया
*मज़कूर=ज़िक्र

अहल-ए-नज़र को भी नज़र आया न रू-ए-यार
याँ तक हिजाब-ए-नूर ने मस्तूर कर दिया
* अहल-ए-नज़र=नज़र वालों; रू-ए-यार=प्रेमिका का चेहरा; मस्तूर=छुपा

'हसरत' बहुत है मर्तबा-ए-आशिक़ी बुलंद
तुझ को तो मुफ़्त लोगों ने मशहूर कर दिया
*मर्तबा-ए-आशिक़ी=प्रेम की अवस्था

~ हसरत मोहानी

Jun 14, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Saturday, June 13, 2020

बड़े हिसाब से इज़्ज़त

बड़े हिसाब से इज़्ज़त बचानी पड़ती है
हमेशा झूटी कहानी सुनानी पड़ती है

तुम एक बार जो टूटे तो जुड़ नहीं पाए
हमें तो रोज़ ये ज़िल्लत उठानी पड़ती है

मुझे ख़रीदने ऐसे भी लोग आते हैं
कि जिन के कहने से क़ीमत घटानी पड़ती है

मलाल ये है कि ये दोनों हाथ मेरे हैं
किसी की चीज़ किसी से छुपानी पड़ती है

तुम अपना नाम बता कर ही छूट जाते हो
हमें तो ज़ात भी अपनी बतानी पड़ती है

~ हसीब सोज़

Jun 13, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Friday, June 12, 2020

प्यार का पहला ख़त लिखने में

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है

जिस्म की बात नहीं थी उन के दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है

गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है

हम ने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँड लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है

~ हस्तीमल 'हस्ती'

Jun 12, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Monday, June 8, 2020

गर्मी का है ज़माना


गर्मी का है ज़माना
सर्दी हुई रवाना
आँखें दिखाए सूरज
तन-मन जलाए सूरज
पानी हवा हुआ है
जंगल जला हुआ है
होती है साएँ साएँ
ग़ुस्से में हैं हवाएँ
उठते हैं यूँ बगूले
जैसे गगन को छू ले
तीतर बटेर तोते
खाएँ हवा में ग़ोते
धरती दहक रही है
मिट्टी सुलग रही है
गिर जाए जो ज़मीं पर
भुन जाए है वो दाना
गर्मी का है ज़माना

सर्दी हुई रवाना
मौसम बदल रहा है
इंसाँ पिघल रहा है
उतरा गले से मफ़लर
मुँह तक रही है चादर
तह हो गई रज़ाई
ख़ाली है चारपाई
कम्बल सहज रखी है
मलमल गले लगी है
पंखों को झल रहे हैं
अब फ़ैन चल रहे हैं
हीटर से ख़ौफ़ खाएँ
कूलर चलाए जाएँ
हर शय बदल रही है
क्या मर्द क्या ज़नाना
गर्मी का है ज़माना

सर्दी हुई रवाना
आती है याद नानी
करते हैं पानी पानी
शर्बत का दौर आए
क़ुलफ़ी दिलों को भाए
तरबूज़ बिक रहे हैं
खरबूज़ बिक रहे हैं
दूकान कोई खोले
बेचे हैं बर्फ़-गोले
घर घर में हम ने देखा
पीते हैं रूह-अफ़्ज़ा
लस्सी का बोल-बाला
काफ़ी का मुँह है काला
जिस से मिले है ठंडक
उस का जहाँ दिवाना
सर्दी हुई रवाना
गर्मी का है ज़माना

‍~ हैदर बयाबानी

Jun 8, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, June 7, 2020

बोसा लिया जो चश्म का


बोसा लिया जो चश्म का बीमार हो गए
ज़ुल्फ़ें छूईं बला में गिरफ़्तार हो गए
*बोसा=चुम्बन; चश्म=आँख

सकता है बैठे सामने तकते हैं उन की शक्ल
क्या हम भी अक्स-ए-आईना-ए-यार हो गए
*सकता=अचम्भित; अक्स-ए-आईना-ए-यार=आईने में प्रेमिका का बिम्ब

बैठे तुम्हारे दर पे तो जुम्बिश तलक न की
ऐसे जमे कि साया-ए-दीवार हो गए
*जुम्बिश=हरकत; साया-ए-दीवार=दीवार पर पड़ी छाया

हम को तो उन के ख़ंजर-ए-अबरू के इश्क़ में
दिन ज़िंदगी के काटने दुश्वार हो गए
*ख़ंजर-ए-अबरू=निकीली भौँह

~ हैरत इलाहाबादी

Jun 7, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Monday, June 1, 2020

वही प्यारे मधुर अल्फ़ाज़


वही प्यारे मधुर अल्फ़ाज़ मीठी रस-भरी बातें
वही रौशन रुपहले दिन वही महकी हुई रातें
वही मेरा ये कहना तुम बहुत ही ख़ूब-सूरत हो
तुम्हारे लब पे ये फ़िक़रा कि तुम ही मेरी क़िस्मत हो
वही मेरा पुराना गीत तुम बिन जी नहीं सकता
में उन होंटों की पी कर अब कोई मय पी नहीं सकता

ये सब कुछ ठीक है पर इस से जी घबरा भी जाता है
अगर मौसम न बदले आदमी उकता भी जाता है
कभी यूँ ही सही मैं और को अपना बना लेता
तुम्हारे दिल को ठुकराता तुम्हारी बद-दुआ लेता
कभी मैं भी ये सुनता तुम बड़े ही बे-मुरव्वत हो
कभी में भी ये कहता तुम तो सर-ता-पा हिमाक़त हो 
 
*सर-ता-पा=सर से पाँव तक; हिमाक़त=मूढ़ता

अब आओ ये भी कर देखें तो जीने का मज़ा आए
कोई खिड़की खुले इस घर की और ताज़ा हवा आए

~ ख़लील-उर-रहमान आज़मी

Jun 1, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh