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Sunday, November 29, 2020

बे-ख़बर होते होए भी



बे-ख़बर होते होए भी बा-ख़बर लगते हो तुम
दूर रह कर भी मुझे नज़दीक-तर लगते हो तुम
*बा-ख़बर=सचेत

क्यूँ न आऊँ सज सँवर कर मैं तुम्हारे सामने
ख़ुश-अदा लगते हो मुझ को ख़ुश-नज़र लगते हो तुम

तुम ने लम्स-ए-मो'तबर से बख़्श दी वो रौशनी
मुझ को मेरी आरज़ूओं की सहर लगते हो तुम
*लम्स-ए-मो'तर=भरोसेमंद स्पर्श

जिस के साए में अमाँ मिलती है मेरी ज़ीस्त को
मुझ को जलती धूप में ऐसा शजर लगते हो तुम
*अमाँ=सुरक्षा; ज़ीस्त=जीवन; शजर=पेड़

क्यूँ तुम्हारे साथ चलने पर न आमादा हो दिल
ख़ुश्बू-ए-एहसास मेरे हम-सफ़र लगते हो तुम

'नाज़' तुम पर नाज़ करती है मोहब्बत की क़सम
ज़िंदगी भर की दुआओं का असर लगते हो तुम

~ नाज़ बट

Nov 30, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

Friday, November 27, 2020

हमारे ख़्वाब सब ताबीर से


हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए
वो अपने-आप कल तस्वीर से बाहर निकल आए

ये अहल-ए-होश तो घर से कभी बाहर नहीं निकले
मगर दीवाने हर ज़ंजीर से बाहर निकल आए
*अहल-ए-होश=होश में रहने वाले

कोई आवाज़ दे कर देख ले मुड़ कर न देखेंगे
मोहब्बत तेरे इक इक तीर से बाहर निकल आए

दर-ओ-दीवार भी घर के बहुत मायूस थे हम से
सो हम भी रात इस जागीर से बाहर निकल आए

बड़ी मुश्किल ज़मीनों में गुलाबी रंग भरना था
बहुत जल्दी बयाज़-ए-मीर से बाहर निकल आए
*बयाज़-ए-मीर=मीर की (हस्त लिखित) पुस्तक

~ हसीब सोज़

Nov 27, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

Thursday, November 26, 2020

शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की दवा

  

शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की दवा मैं क्या करता
तिरे अलावा कोई दूसरा मैं क्या करता
*शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल=शीशे जैसा टूटा हुआ दिल

मैं ग़ोता-ज़न था तिरी याद के समुंदर में
लिबास उठा के कोई ले गया मैं क्या करता
*ग़ोता-ज़न=गोता अलगाने वाला

किसी के जाम की झूटी शराब क्यूँ पीता
तुम्हारे हुस्न की क़ातिल अदा मैं क्या करता

मैं जब चला मिरी मंज़िल भी चल पड़ी आगे
हमारा कम न हुआ फ़ासला मैं क्या करता

हर एक चीज़ अगर तेरे इख़्तियार में है
तो मैं ने होने दिया जो हुआ मैं क्या करता

हयात-ए-नौ के जज़ीरे पे रोकनी पड़ी नाव
मुख़ालिफ़त पे तुली थी हवा मैं क्या करता
*हयात-ए-नौ=नई ज़िंदगी; जज़ीरे=द्वीप; मुख़ालिफ़त=विरोध

मिरी सरिश्त में इंकार रख दिया तू ने
तो हुक्म मानता कैसे भला मैं क्या करता
*सरिश्त=स्वभाव

ये दिल तो एक ज़माने से इंतिज़ार में था
तू आ के बैठता फिर देखता मैं क्या करता

मिरा तो जो भी था सब कुछ तिरा दिया हुआ था
मिरे करीम तिरा शुक्रिया मैं क्या करता
*करीम=ईश्वर, कृपालु

~ हसन शाहनवाज़ ज़ैदी

Nov 26, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

Tuesday, November 24, 2020

वो चाँदनी रात और वो मुलाक़ात

 

वो चाँदनी रात और वो मुलाक़ात का आलम
क्या लुत्फ़ में गुज़रा है ग़रज़ रात का आलम

जाता हूँ जो मज्लिस में शब उस रश्क-ए-परी की
आता है नज़र मुझ को तिलिस्मात का आलम
*रश्क-ए-परी=परी से भी सुंदर

बरसों नहीं करता तू कभू बात किसू से
मुश्ताक़ ही रहता है तिरी बात का आलम
*मुश्ताक़=इच्छुक

कर मजलिस-ए-ख़ूबाँ में ज़रा सैर कि बाहम
होता है अजब उन के इशारात का आलम
*मजलिस-ए-ख़ूबाँ=सुंदर लोगों की बैठक;  बाहम=परस्पर

दिल उस का न लोटे कभी फूलों की सफ़ा पर
शबनम को दिखा दूँ जो तिरे गात का आलम
*सफ़ा=पवित्रता; गात=दाँव

हम लोग सिफ़ात उस की बयाँ करते हैं वर्ना
है वहम ओ ख़िरद से भी परे ज़ात का आलम
*सिफ़ात=तारीफ़(एं); ख़िरद-बिउद्धि; ज़ात=व्यक्तित्व

वो काली घटा और वो बिजली का चमकना
वो मेंह की बौछाड़ें वो बरसात का आलम

देखा जो शब-ए-हिज्र तो रोया मैं कि उस वक़्त
याद आया शब-ए-वस्ल के औक़ात का आलम
*शब-ए-हिज्र=विछोह की रात; शब-ए-वस्ल=मिलन की रात

हम 'मुसहफ़ी' क़ाने हैं ब-ख़ुश्क-ओ-तर-ए-गीती
है अपने तो नज़दीक मुसावात का आलम
*ब-ख़ुश्क-ओ-तर-ए-गीती=शुष्क और तर जीवन; मुसावात=बराबरी

~ मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

Nov 24, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

Friday, November 20, 2020

एक सितम और लाख अदाएँ

एक सितम और लाख अदाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
तिरछी निगाहें तंग क़बाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
*क़बाएँ=कपड़े

हिज्र में अपना और है आलम अब्र-ए-बहाराँ दीदा-ए-पुर-नम
ज़िद कि हमें वो आप बुलाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
*हिज्र=विछोह; आलम=हाल; अब्र-ए-बहाराँ=बरसात के बादल; दीदा-ए-पुर-नम=भीगी आँखें

अपनी अदा से आप झिजकना अपनी हवा से आप खटकना
चाल में लग़्ज़िश मुँह पे हयाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
*लग़्ज़िश=अपराध

हाथ में आड़ी तेग़ पकड़ना ताकि लगे भी ज़ख़्म तो ओछा
क़स्द कि फिर जी भर के सताएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
तेग़=तलवार; क़स्द=इरादा

काली घटाएँ बाग़ में झूले धानी दुपट्टे लट झटकाए
मुझ पे ये क़दग़न आप न आएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
क़दग़न=रोक, प्रतिबंध

पिछले पहर उठ उठ के नमाज़ें नाक रगड़नी सज्दों पे सज्दे
जो नहीं जाएज़ उस की दुआएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

'शाद' न वो दीदार-परस्ती और न वो बे-नश्शा की मस्ती
तुझ को कहाँ से ढूँढ के लाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
*दीदार-परस्ती=दर्शनाभिलाषी; बे-नश्शा=बिना नशा किये

~ शाद अज़ीमाबादी

Nov 20, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

Sunday, November 8, 2020

अपनी फ़ितरत की बुलंदी पे मुझे नाज़ है कब

 


अपनी फ़ितरत की बुलंदी पे मुझे नाज़ है कब

हाँ तिरी पस्त निगाही से गिला है मुझ को
तू गिरा देगी मुझे अपनी नज़र से वर्ना
तेरे क़दमों पे तो सज्दा भी रवा है मुझ को
*सज़्दा=सर झुकाना; रवा=मंज़ूर
 
तू ने हर आन बदलती हुई इस दुनिया में
मेरी पाइंदगी ए ग़म को तो देखा होता
कलियाँ बे ज़ार हैं शबनम के तलव्वुन से मगर
तू ने इस दीदा ए पुर नम को तो देखा होता
*पाइंदगी ए ग़म=हमेशा रहने वाला दुख; बेज़ार=उकताया; तलव्वुन=रंग बदलना; दीदा ए पुर नम=नम आँखें
 
हाए जलती हुई हसरत ये तिरी आँखों में
कहीं मिल जाए मोहब्बत का सहारा तुझ को
अपनी पस्ती का भी एहसास फिर इतना एहसास
कि नहीं मेरी मोहब्बत भी गवारा तुझ को

और ये ज़र्द से रुख़्सार ये अश्कों की क़तार
मुझ से बे ज़ार मिरी अर्ज़ ए वफ़ा से बे ज़ार
*ज़र्द=पीले; अर्ज़ ए वफ़ा =

~ मुईन अहसन जज़्बी

Nov 08, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

 

सो रहा था तो शोर बरपा था

 

सो रहा था तो शोर बरपा था
उठ के देखा तो मैं अकेला था

ख़ाक पर मेरे ख़्वाब बिखरे थे
और मैं रेज़ा रेज़ा चुनता था

चार जानिब वजूद की दीवार
अपनी आवाज़ मैं ही सुनता था

उम्र भर बूँद बूँद को तरसे
सामने घर के एक दरिया था

लब-ए-दरिया खड़े रहे दोनों
वो भी प्यासा था मैं भी प्यासा था

~ रज़ी तिर्मिज़ी

Nov 09, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

Sunday, November 1, 2020

तिरी मदद का यहाँ तक हिसाब

 

तिरी मदद का यहाँ तक हिसाब देना पड़ा
चराग़ ले के मुझे आफ़्ताब देना पड़ा

हर एक हाथ में दो दो सिफ़ारशी ख़त थे
हर एक शख़्स को कोई ख़िताब देना पड़ा

तअ'ल्लुक़ात में कुछ तो दरार पड़नी थी
कई सवाल थे जिन का जवाब देना पड़ा

अब इस सज़ा से बड़ी और क्या सज़ा होगी
नए सिरे से पुराना हिसाब देना पड़ा

इस इंतिज़ाम से क्या कोई मुतमइन होता
किसी का हिस्सा किसी को जनाब देना पड़ा

~ हसीब सोज़

Nov 01, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh