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Tuesday, July 28, 2015

की नहीं उम्र भर ख़ता जिसने

की नहीं उम्र भर ख़ता जिसने,
उसने तौहीने-ज़िन्दगी की है।



*तौहीने-ज़िन्दगी = ज़िन्दगी का अपमान

~ नरेश कुमार शाद

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   Ashok Singh

Sunday, July 26, 2015

दीवारों से मिलकर रोना


दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है

कितने दिनों के प्यासे होंगे यारों सोचो तो
शबनम का क़तरा भी जिनको दरिया लगता है

आँखों को भी ले डूबा ये दिल का पागल-पन
आते जाते जो मिलता है तुम सा लगता है

इस बस्ती में कौन हमारे आँसू पोंछेगा
जो मिलता है उस का दामन भीगा लगता है

दुनिया भर की यादें हम से मिलने आती हैं
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है

किसको पत्थर मारूँ 'क़ैसर' कौन पराया है
शीश-महल में इक इक चेहरा अपना लगता है

~ क़ैसर-उल जाफ़री


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   Ashok Singh

डाकू नहीं, ठग नहीं, चोर या

डाकू नहीं, ठग नहीं, चोर या उचक्का नहीं
कवि हूँ मैं, मुझे बख्श दीजिए दारोग़ा जी

काव्य-पाठ हेतु मुझे मंच पे पहुँचना है
मेरी मजबूरी पे पसीजिए दारोग़ा जी

ज्यादा माल-मत्ता मेरी जेब में नहीं है अभी
पाँच का पड़ा है नोट लीजिए दारोग़ा जी


पौन बोतल तो मेरे पेट में उतर गई
पौवा ही बचा है इसे पीजिए दारोग़ा जी


~ अल्हड़ बीकानेरी

   Jul 24, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

Friday, July 24, 2015

बाहर के अंदर



हर चीज यहाँ किसी न किसी के अंदर है
हर भीतर जैसे बाहर के अंदर है
फैल कर भी सारा का सारा बाहर
ब्रह्मांड के अंदर है
बाहर सुंदर है क्योंकि वह किसी के अंदर है

मैं सारे अंदर बाहर का एक छोटा सा मॉडल हूँ
दिखते-अदिखते प्रतिबिंबों से बना
अबिंबित जिसमें
किसी नए बिंब की संभावना-सा ज्यादा सुंदर है
भीतर से यादा बाहर सुंदर है
क्योंकि वह ब्रह्मांड के अंदर है
भविष्य के भीतर हूँ मैं जिसका प्रसार बाहर है
बाहर देखने की मेरी इच्छा की यह बड़ी इच्छा है
कि जो भी बाहर है वह किसी के अंदर है
तभी वह सँभला हुआ तभी वह सुंदर है
तुम अपने बाहर को अंदर जान कर
अपने अंदर से बाहर आ जाओ ।

~ लीलाधर जगूड़ी


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   Ashok Singh

Wednesday, July 22, 2015

आँधी के झूले पर झूलो



आँधी के झूले पर झूलो
आग बबूला बन कर फूलो
कुरबानी करने को झूमो
लाल सबेरे का मूँह चूमो
ऐ इन्सानों! ओस न चाटो
अपने हाथों पर्वत काटो।

पथ की नदियाँ खींच निकालो
जीवन पीकर प्यास बुझालो
रोटी तुमको राम न देगा
वेद तुम्हारा काम न देगा
जो रोटी का युद्ध करेगा
वह रोटी को आप वरेगा।

~ गजानन माधव मुक्तिबोध


   Jul 22, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

Tuesday, July 21, 2015

पाप-पुण्य है कत्था-चूना

पाप-पुण्य है कत्था-चूना
परम पिता-पनवाड़ी
पनवाड़ी की इस दुकान को
घेरे खड़े अनाड़ी
काल है सरौता, सुपारी सारी दुनिया
दाता एक राम, भिखारी सारी दुनिया


~ अल्हड़ बीकानेरी

   Jul 21, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

Monday, July 20, 2015

तुम भी गाती रहो,मैं भी गाता रहूँ



छा न जाएं शहर पे ये ख़ामोशियाँ
तुम भी गाती रहो,मैं भी गाता रहूँ

ये शहर था हमारे लिए अजनबी
एक तुम जो मिली तो ख़ुशी ही ख़ुशी
अब ख़ुदा से हमें और क्या माँगना
तुम मेरी ’मेनका’ तुम मेरी ’उर्वशी’
लिख सको तो मिलन गीत ऐसा लिखो
उम्र भर मैं जिसे गुनगुनाता रहूँ

लोग आते यहाँ अपने सपने लिए
एक मक़सद लिए ज़िन्दगी के लिए
सबको जल्दी पड़ी ,सबको अपनी पड़ी
कोई रुकता नहीं दूसरों के लिए
थक न जाओ कहीं चलते चलते यहाँ
अपनी पलकों पे तुम को बिठाता रहूँ

भीड़ का एक समन्दर हुआ है शहर
किसकी मंज़िल किधर और जाता किधर
जिसको साहिल मिला वो सफल हो गया
किसकी डूबी है कश्ती किसे है ख़बर
इस शहर में कहीं राह भटको न तुम
प्रेरणा का दिया मैं जलाता रहूँ

हर गली मोड़ पे होती दुश्वारियाँ
जब निगाहें ग़लत चीरती है बदन
ज़िन्दगी के सफ़र में हो तनहाईयां
ढूँढती है वहीं दो बदन-एक मन
सर टिका दो अगर मेरे कांधे से तुम
आशियाँ एक अपना बनाता रहूँ

~ आनन्द पाठक


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   Ashok Singh

सब्र की ताब नहीं जिस को..

सब्र की ताब नहीं जिस को वो दिल है मेरा
रहम का नाम नहीं जिस में वो तेरा दिल है

~ जलील मानिकपुरी

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   Ashok Singh

Friday, July 17, 2015

छोड़ हर शिकवा गिला, .. ईद मना......।

 
छोड़ हर शिकवा गिला, दिल को मिला, ईद मना।
भूल जा अपनी जफ़ा, मेरी ख़ता, ईद मना।

बुग़्ज़ को छोड़ दे, नफ़रत को भुला, ईद मना।
ये भी नेकी है, ये नेकी भी कमा, ईद मना।

हो सका जितना भी वो तूने किया, अच्छा है,
सोच मत, ये न हुआ, वो न हुआ, ईद मना।

इससे लेना है, उसे देना है, सब चलता है,
उलझनें जे़हन से सब दूर हटा, ईद मना।

ऊंचे महलों में सभी ख़ुश हों, ज़रूरी तो नहीं,
जो मक़ाम अपना है, वो देख ज़रा, ईद मना।

वक़्त तो सबका बदल जाता है इक दिन शाहिद,
शुक्र हर हाल में कर रब का अदा, ईद मना।

~ शाहिद मिर्ज़ा शाहिद


   Jul 17, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

तेरा नाम लिखती हैं उँगलियाँ

तेरा नाम लिखती हैं उँगलियाँ ख़लाओं में,
ये भी इक दुआ होगी वस्ल की दुआओं में

*ख़लाओं में= शून्य या अंधेरों में; वस्ल=मिलन

~ इशरत आफ़रीं


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Wednesday, July 15, 2015

बात बनती नहीं ऐसे हालात में

बात बनती नहीं ऐसे हालात में,
मैं भी जज़्बात में, तुम भी जज़्बात में

~ हनीफ़ सागर

   Jul 14, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

Monday, July 13, 2015

सपनों का संसार खोजने



सपनों का संसार खोजने
अब सुधियों के देश चलेंगे
महानगर में सपने अपने
धू-घू करते रोज जलेंगे
शापों का संत्रास झेलते
पूरा का पूरा युग बीता
शुभाशीष का एक कटोरा
अब तक है रीता का रीता
पीड़ाओं के शिलाखण्डत ये
जाने किस युग में पिघलेंगे।

यहाँ रहे तो कट जाएगी
सुधियों की यह डोर एक दिन
खो देंगे पतंग हम अपनी
नहीं दिखेगा छोर एक दिन,
नदी नहीं रेत ही रेत है
तेज धूप है पाँव जलेंगे।
खेतों की मेंड़ों पर दहके-
होंगे स्वाेगत में पलास भी
छाँव लिए द्वारे पर अपने
बैठा होगा अमलतास भी
धूल,धुँए,धूप के नगाड़े
हमें देखते हाथ मलेंगे।
हाथों का दम ले आएगा
पर्वत से झरना निकाल कर
सीख लिया है जीना हमनें
संत्रासों को भी उछालकर
मुस्कासनों के झोंके होंगे
जिन गलियों से हम निकलेंगे।
अपने मन के महानगर में
तुलसी के चौरे हरियाए
सुबह-शाम आरती हुई है
सबने घी के दीप जलाए
मानदण्ड शुभ सुन्दईरता के
मेरी बस्ती से निकलेंगे।

~ राजा अवस्थी

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रंग ओ बू-ए-गुलाब कह लूँगा

रंग ओ बू-ए-गुलाब कह लूँगा
मौज-ए-जाम-ए-शराब कह लूँगा
लोग कहते हैं तेरा नाम न लूँ
मैं तुझे माहताब कह लूँगा ।

~ हबीब जालिब

   Jul 13, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

हम शूल को भी फूल बना सकते हैं

हम शूल को भी फूल बना सकते हैं
प्रतिकूल को अनुकूल बना सकते हैं
हम मस्त वो माँझी हैं जो मँझधारों में
हर लहर को भी कूल बना सकते हैं।

*कूल=किनारा

~ उदयभानु हंस


   Jul 8, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

तिरा लब देख हैवाँ याद आवे

तिरा लब देख हैवाँ याद आवे
तिरा मुख देख कनआँ याद आवे

*हैवाँ =निर्दयी, जानवर; कनआँ=पैगंबर जोसेफ का जन्म-स्थल

~ वली मोहम्मद वली

   Jul 9, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

Wednesday, July 8, 2015

जले तो जलाओ गोरी



जले तो जलाओ गोरी, पीत का अलाव गोरी
                 अभी न बुझाओ गोरी, अभी से बुझाओ ना।
पीत में बिजोग भी है, कामना का सोग भी है।
                  पीत बुरा रोग भी है, लगे तो लगाओ ना।
गेसुओं की नागिनों से, बैरिनों अभागिनों से
                  जोगिनों बिरागिनों से, खेलती ही जाओ ना।
आशिक़ों का हाल पूछो, करो तो ख़याल - पूछो
                  एक-दो सवाल पूछो, बात तो बढ़ाओ ना।

रात को उदास देखें, चाँद का निरास देखें
                  तुम्हें न जो पास देखें, आओ पास आओ ना।
रूप-रंग मान दे दें, जी का ये मकान दे दें
                  कहो तुम्हें जान दे दें, माँग लो लजाओ ना।
और भी हज़ार होंगे, जो कि दावेदार होंगे
                  आप पे निसार होंगे, कभी आज़माओ ना।
शे'र में 'नज़ीर' ठहरे, जोग में 'कबीर' ठहरे
                  कोई ये फ़क़ीर ठहरे, और जी लगाओ ना।

~ इब्ने इंशा

   Jul 8, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

Friday, July 3, 2015

भुला दो रंज की बातों में क्या है



भुला दो रंज की बातों में क्या है
इधर देखो मेरी आँखों में क्या है
*रंज=मनमुटाव, शत्रुता

बहुत तारीक़ दिन है फिर भी देखो
उजाला चाँदनी रातों में क्या है
*तारीक़=अँधेरा


नहीं पाती जिसे बेदार नज़रें
ख़ुदाया ये मेरे ख़्वाबों में क्या है
*बेदार=जागती हुयी

ये क्या ढूँढे चली जाती है दुनिया
तमाशा सा गली कूचों में क्या है

है वहशत सी ये हर चेहरे पे कैसी
न जाने सहमा सा नज़रों में क्या है

ये इक हैज़ान सा दरिया में क्यों है
ये कुछ सामान सा मौजों में क्या है
*हैज़ान=आवेश, जल्दबाज़ी

ज़रा सा बल है इक ज़ुल्फ़ों का उसकी
वगरना ज़ोर ज़ंजीरों में क्या है

है ख़ामयाज़े सुरूर-ए-आरज़ू के
निशात-ओ-ग़म कहो नामों में क्या है
*ख़ामयाज़े=बुरे काम के परिणाम); सुरूर-ए-आरज़ू=चाहत का नशा; निशात-ओ-ग़म=सुख-दुःख

तुम्हारी देर-आमेज़ी भी देखी
तक़ल्लुफ़ लखनऊ वालों में क्या है
*देर-आमेज़ी=देरी से मिलना

~ शान-उल-हक़ हक़्की


  Jul 03, 2015 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Thursday, July 2, 2015

बीच पतझर के बसंती सृजन का

बीच पतझर के बसंती सृजन का उल्लास हूँ
बोल कुछ पाये नहीं उस दर्द का एहसास हूँ
भटकते फिरते हो घर से दूर मेरी खोज में,
प्यास से देखो ज़रा मैं तो तुम्हारे पास हूँ ।

~ रामदरश मिश्र

  Jul 02, 2015 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

मोहब्बत एक अहसासों की पावन

मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आँखों में आँसू हैं
जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है

~ कुमार विश्वास

  Jul 02, 2015 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh