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Thursday, January 28, 2021

डूबते सूरज का मंज़र वो सुहानी कश्तियाँ

डूबते सूरज का मंज़र वो सुहानी कश्तियाँ
फिर बुलाती हैं किसी को बादबानी कश्तियाँ
*बादबानी=तिरपाल से चलने वाली

इक अजब सैलाब सा दिल के निहाँ-ख़ाने में था
रेत साहिल दूर तक पानी ही पानी कश्तियाँ
*निहाँ-ख़ाने=गुप्तघर

मौज-ए-दरिया ने कहा क्या साहिलों से क्या मिला
कह गईं कल रात सब अपनी कहानी कश्तियाँ

ख़ामुशी से डूबने वाले हमें क्या दे गए
एक अनजाने सफ़र की कुछ निशानी कश्तियाँ

एक दिन ऐसा भी आया हल्क़ा-ए-गिर्दाब में
कसमसा कर रह गईं ख़्वाबों की धानी कश्तियाँ
*हल्क़ा-ए-गिर्दाब=भँवर का चक्र

आज भी अश्कों के इस गहरे समुंदर में 'शमीम'
तैरती फिरती हैं यादों की पुरानी कश्तियाँ

~ शमीम फ़ारूक़ी

Jan 28, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, January 26, 2021

रंग हवा से छूट रहा है


रंग हवा से छूट रहा है मौसम-ए-कैफ़-ओ-मस्ती है
फिर भी यहाँ से हद्द-ए-नज़र तक प्यासों की इक बस्ती है
*मौसम-ए-कैफ़-ओ-मस्ती=उत्साह और नशीला

दिल जैसा अन-मोल रतन तो जब भी गया बे-राम गया
जान की क़ीमत क्या माँगें ये चीज़ तो ख़ैर अब सस्ती है

दिल की खेती सूख रही है कैसी ये बरसात हुई
ख़्वाबों के बादल आते हैं लेकिन आग बरसती है

अफ़्सानों की क़िंदीलें हैं अन-देखीं मेहराबों में
लोग जिसे सहरा कहते हैं दीवानों की बस्ती है

~ राही मासूम रज़ा

Jan 26, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

Monday, January 18, 2021

सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने


सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया
*प्रखर अप्रसन्नता, कश्मकश-ए-दहर=दुनिया की दुविधाएं

वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया

ऐ मैं सौ जान से इस तर्ज़-ए-तकल्लुम के निसार
फिर तो फ़रमाइए क्या आप ने इरशाद किया
*तर्ज़-ए-तकल्लुम=बात करने का अंदाज़

इस का रोना नहीं क्यूँ तुम ने किया दिल बर्बाद
इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया

इतना मानूस हूँ फ़ितरत से कली जब चटकी
झुक के मैं ने ये कहा मुझ से कुछ इरशाद किया
*मानूस=परिचित

मेरी हर साँस है इस बात की शाहिद ऐ मौत
मैं ने हर लुत्फ़ के मौक़े पे तुझे याद किया
*शाहिद-साक्षी

मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया

कुछ नहीं इस के सिवा 'जोश' हरीफ़ों का कलाम
वस्ल ने शाद किया हिज्र ने नाशाद किया
*हरीफ़=प्रतिद्वंदी; शाद=प्रसन्न

~ जोश मलीहाबादी

Jan 18, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

Friday, January 8, 2021

मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन


मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन
आ जुदाई ख़ूब नईं मिल जा सजन

बे-दिलों की उज़्र-ख़्वाही मान ले
जो कि होना था सो हो गुज़रा सजन

तुम सिवा हम कूँ कहीं जागा नहीं
पस लड़ो मत हम सेती बेजा सजन

मर गए ग़म सीं तुम्हारे हम पिया
कब तलक ये ख़ून-ए-ग़म खाना सजन

जो लगे अब काटने इख़्लास के
क्या यही था प्यार का समरा सजन
*इख़्लास=निश्छलता

छोड़ तुम कूँ और किस सें हम मिलें
कौन है दुनिया में कुइ तुम सा सजन

पाँव पड़ता हूँ तुम्हारे रहम को
बात मेरी मान ले हा हा सजन

तंग रहना कब तलक ग़ुंचे की तरह
फूल के मानिंद टुक खुल जा सजन

'आबरू' कूँ खो के पछताओगे तुम
हम को लाज़िम है अता कहना सजन

~ आबरू शाह मुबारक

Jan 08, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

Friday, January 1, 2021

फिर वर्ष नूतन आ गया


फिर वर्ष नूतन आ गया।

सूने तमोमय पंथ पर,
अभ्यस्त मैं अब तक विचर,
नव वर्ष में मैं खोज करने को चलूँ क्यों पथ नया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!

निश्चित अँधेरा तो हुआ,
सुख कम नहीं मुझको हुआ,
दुविधा मिटी, यह भी नियति की है नहीं कुछ कम दया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!

दो-चार किरणें प्यार कीं,
मिलती रहें संसार की,
जिनके उजाले में लिखूँ मैं जिंदगी का मर्सिया।
फिर वर्ष नूतन आ गया। 

~ हरिवंशराय बच्चन

Jan 01, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh