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Sunday, September 27, 2015

प्रियतम इस पथ में पांव न दो,



प्रियतम इस पथ में पांव न दो,
चलते -चलते थक जाओगे।
मैं तुम से प्रियतम कहती हूँ
तुम प्यार नहीं कर पाओगे।

मैं आज प्रणय-पथ में आयी,
मन में सुख के सपने लायी,
पर इसका कुछ भी ठीक नहीं-
कल कौन तुम्हारे मन भायी?
यह ज्ञात नहीं, इस जीवन में
तुम किस-किस के कहलाओगे?
मैं तुम से प्रियतम कहती हूँ ,
तुम प्यार नहीं कर पाओगे।

मानव का मन है ही चंचल,
अपने से भी करता है छल,
दो छींटों से बुझ जाता है,
विक्षिप्त धधकता विरहानल
तुम भी तृणवत् मन की गति
के, हलकोरों में बह जाओगे।
मैं तुम से प्रियतम कहती हूँ
तुम प्यार नहीं कर पाओगे।

तुम मेरे प्राणों से बढ़कर
मैं तुमको प्रियतम कहती हूँ
जीवंत प्रणय के बंधन को,
पर मानो तो भ्रम कहती हूँ
तुम सुख के सुन्दर धोखे में
उर को कब तक उलझाओगे?
जब ख़ुद नश्वर, तो भावों में
अमरत्व कहां से लाओगे?

मैं तुम से प्रियतम कहती हूँ
तुम प्यार नहीं कर पाओगे।

~ 'गोरख नाथ'


  Sep 27, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

Saturday, September 26, 2015

उम्र जलवों में बसर हो

उम्र जलवों में बसर हो ज़रूरी तो नहीं
हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं

*शब-ए-ग़म = दुःख भरी रात

~ ख़ामोश दहेलवी

  Sep 26, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए ।

*ग़म-ए-जहाँ=दुनिया के दुःख

~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

  Sep 26, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

न था कुछ तो ख़ुदा था,

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता ।

हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से, तो ज़ानू पर धरा होता

*बे-हिस=संवेदनाशून्य; ज़ानू=घुटनों पर बैठे हुये, कमर और घुटनों के बीच का शरीर का हिस्सा 


हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता

~ ग़ालिब

  Sep 23, 2015| e-kavya.blogspot.com
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हम कहाँ थे

हम कहाँ थे
अक़्ल जब बाँटी गई,
किससे पूछें
यार सारे साथ थे ?

~ अशोक व्यास

  Sep 22, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

Monday, September 21, 2015

पहलू में दिल नहीं

पहलू में दिल नहीं कि दहन में ज़बां नहीं
चुप हूँ कि बात करने का कोई समां नहीं,
इस वक़्त आप कौन-सी हुज्जत करेंगे पेश
इस वक़्त तो हुजूर कोई दरमियाँ नहीं।

*दहन=मुंह

~ अदम

  Sep 21, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

Sunday, September 20, 2015

चरणों का इतिहास डगर से ....


कितना मोहक रूप,
नयन ही बतलाएंगे,
कितना पागल प्यार,
स्वप्न ही समझाएंगे।
हर पपड़ी है एक
जलधि की शेष निशानी,
कितनी गहरी प्यास, अधर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।

पल-पल का है साथ,
मगर पल-पल की दूरी,
फीका स्वर्ण -प्रभात,
विफल संध्या सिंदूरी।
तन छूती जल-धार
मगर जीवन रेतीला,
तट के मन की पीर लहर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।

संध्या की थाली में
कितने दीप हँसे थे,
पावस की स्याही ने
कितने दीप डसे थे!
किस कुर्बानी ने
सूरज की भाग्य लिखा था
ऊषा की रंगीन नजर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।

प्रतिभा वाले बीज
अंगारों में पलते हैं।
गीतों वाले फूल
अश्रु-तट पर खिलते हैं।
मधुर मिलन का पता
विरह-पुर में पाओगे,
मधु-मदिरा का मोल ज़हर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।

~ 'गोरखनाथ'


  Sep 20, 2015| e-kavya.blogspot.com
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Saturday, September 19, 2015

तारे आँखें झपकावें हैं,



तारे आँखें झपकावें हैं, ज़र्रा-ज़र्रा सोए हैं
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोलें हैं

हम हों या क़िस्मत हो, हमारी दोनों को इक ही काम मिला
क़िस्मत हमको रो लेवे है, हम क़िस्मत को रो लें हैं

जो मुझको बदनाम करें हैं, काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोलें हैं, या अपना परदा खोले हैं

सदक़े 'फ़िराक़', एजाज़े-सुख़न के कैसे उड़ा ली ये आवाज़
इन ग़ज़लों के परदों में तो ‘मीर’ की ग़ज़लें बोले हैं

*एजाज़े-सुख़न=शायरी का करिश्मा

~ फ़िराक़ गोरखपुरी


  Sep 19, 2015| e-kavya.blogspot.com
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Friday, September 18, 2015

कुछ लोग तो ख़िलाफ़ हों

कुछ लोग तो ख़िलाफ़ हों, हासिद कोई तो हो
क्या लुत्फ़ सीधी - सादी मोहब्बत में आएगा?

*हासिद=ईष्यार्लू, हसद अर्थात् डाह करनेवाला

~ फ़ाज़िल जाफ़री

 Sep 18, 2015| e-kavya.blogspot.com
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हुस्न ये है कि दिलरुबा हो

हुस्न ये है कि दिलरुबा हो तुम,
ऐब ये है, कि बेवफ़ा हो तुम।

~ जलील मानिकपुरी

  Sep 16, 2017| e-kavya.blogspot.com
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हर-इक उनका ख़्वाहाँ ...


हर-इक उनका ख़्वाहाँ हर-इक उन का तालिब
पड़े किस मुसीबत में, मशहूर हो कर।

*ख़्वाहाँ=अभिलाषी; तालिब=चाहनेवाला

~ जलील मानिकपुरी

 Sep 14, 2015| e-kavya.blogspot.com
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Sunday, September 13, 2015

नै उन्स के ख़्वाहाँ हैं

नै उन्स के ख़्वाहाँ हैं, नै प्यार के भूके हैं,
हम लोग हैं बाज़ारी, दीदार के भूके हैं ।

*उन्स=प्रेम; ख़्वाहाँ=चाहने वाले; दीदार=दर्शन

~ मुसहफ़ी

  Sep 13, 2015| e-kavya.blogspot.com
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Saturday, September 12, 2015

जब आँचल रात का लहराए



जब आँचल रात का लहराए, और सारा आलम सो जाए,
तुम मुझसे मिलने, शमा जलाकर, 

ताजमहल में आ जाना.

यह ताजमहल ज़ो चाहत की,आँखों का सुनहरा मोती है,
हर रात जहाँ दो रूहों की, ख़ामोशी ज़िंदा होती है,
इस ताज के साए में आकर तुम,गीत वफ़ा का दोहराना.
तुम मुझसे मिलने, शमा जलाकर, 

ताजमहल में आ जाना,

तन्हाई है जागी-जागी सी, माहौल है सोया-सोया हुआ,
जैसे के तुम्हारे ख़्वाबों में,खुद ताजमहल हो ख़ोया हुआ,
हो, ताजमहल का ख़्वाब तुम्ही,यह राज़ ना मैने पहचाना.
तुम मुझसे मिलने, शमा जलाकर,

ताजमहल में आ जाना,

जो मौत मुहब्बत में आए,वो जान से बढ़कर प्यारी है,
दो प्यार भरे दिल रोशन हैं,वो रात बहुत अंधियारी है,
तुम रात के इस अंधियारे में,बस एक झलक दिखला जाना,
तुम मुझसे मिलने, शमा जलाकर,

ताजमहल में आ जाना

~ प्रेम वरबारतोनी


  Sep 12, 2015| e-kavya.blogspot.com
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निकले कभी न घर से मगर

निकले कभी न घर से मगर इसके बावजूद,
अपनी तमाम उम्र सफर में निकल गई।।

~ शीन काफ़ निज़ाम

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Thursday, September 10, 2015

बेवफ़ा गर कहूँ - तो कहते हैं



बेवफ़ा गर कहूँ - तो कहते हैं
क्या हर इक से वफ़ा करे कोई

जाये गर जाँ तो सौ हैं तदबीरें
जाये गर दिल तो क्या करे कोई
*तदबीरें =सुलझाव

कोई अपनी ख़ता तो हो मालूम
ऊज्र किस बात का करे कोई

*ऊज्र=सफ़ाई

तुम से बे-रहम पर न दिल आए
और आए तो क्या करे कोई

सैकड़ों बातें कह के कहते हैं
फिर हमें क्यूँ ख़फ़ा करे कोई

कोई कब तक न दे जवाब तुम्हें
चुपका कब तक सुना करे कोई

शिकवा उस बुत का हर किसी से 'निज़ाम'
उस से कह दे ख़ुदा करे, कोई।

~ निज़ाम रामपुरी


  Sep 10, 2015| e-kavya.blogspot.com
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Wednesday, September 9, 2015

अंगड़ाई भी वो लेने न पाये

अंगड़ाई भी वो लेने न पाये उठा के हाथ
देखा तो मुझको छोड़ दिये मुस्कुरा के हाथ

बे-साख़्ता निगाहें जो आपस में मिल गई
क्या मुँह पर उस ने रख लिए आँखें चुरा के हाथ

~ निज़ाम रामपुरी

  Sep 9, 2015| e-kavya.blogspot.com
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Monday, September 7, 2015

आईना देख अपना सा..

आईना देख अपना सा मुंह लेके रह गये
साहिब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था

~ मिर्ज़ा ग़ालिब

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Sunday, September 6, 2015

मैकदा था, चाँदनी थी, मैं न था



मैकदा था, चाँदनी थी, मैं न था,
इक मुजस्सम बेख़ुदी थी, मैं न था।
*मुजस्सम=साकार; बेख़ुदी=उन्माद

इश्क़ जब दम तोड़ता था, तुम न थे,
मौत जब सर धुन रही थी, मैं न था।

तूर पर छेड़ा था जिसने आपको,
वो मेरी दीवानगी थी, मैं न था।
*तूर=(मूसा जिसने) तूर पर्वत (पर खुदा से बात की थी)

वो हसीं बैठा था जब मेरे क़रीब,
लज़्ज़्ते-हमसाईगी थी, मैं न था।
*लज़्ज़्ते-हमसाईगी=सामीप्य का आनंद

मयकदे के मोड़ पर रुकती हुयी,
मुद्दतों की तिश्नगी थी, मैं न था।
*तिश्नगी=प्यास

मैं औ' उस गुञ्चा-दहन की आरज़ू,
आरज़ू की सादगी थी, मैं न था।
*गुञ्चा-दहन=काली ले मुख वाली (प्रियतमा)

गेसूओं के साये में आरामकश,
सर-बरहना ज़िंदगी थी, मैं न था।
*गेसुओं=केशों के; आरामकश= आराम कर रही
सर-बरहना=नंगे सिर

दैरो-काबा में 'अदम' हैरत फ़रोश,
दो-जहाँ की बदज़नी थी, मैं न था।
*दैरो-काबा=मंदिर-मस्जिद; हैरत फ़रोश=आश्चर्यचकित; बदज़नी=बुरा स्वभाव

~ अब्दुल हमीद 'अदम'


  Sep 6, 2015| e-kavya.blogspot.com
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Friday, September 4, 2015

कोई दीवाना कहता है

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी तो बस बादल समझता है
मै तुझसे दूर कैसा हूँ तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है


~ कुमार विश्वास
 
  Sep 04, 2012| e-kavya.blogspot.com
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मिले हर ज़ख़्म को मुस्कान से


मिले हर ज़ख़्म को मुस्कान से सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे, पर गरल पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दास्तां, में फ़र्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया, तुम्हें जीना नहीं आया


~ कुमार विश्‍वास

  Aug 11, 2015| e-kavya.blogspot.com
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बहुत बिखरा, बहुत टूटा


बहुत बिखरा, बहुत टूटा, थपेड़े सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर में बह नहीं पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया पर प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नहीं पाई कभी में कह नहीं पाया

~ कुमार विश्‍वास

  Aug 11, 2015| e-kavya.blogspot.com
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नज़र लगे न कहीं

नज़र लगे न कहीं तेरे दस्तो - बाज़ू को,
ये लोग क्यों मेरे ज़ख़्मे-जिगर को देखते हैं।

*दस्तो-बाज़ू=हथेली और हाथ

~ ग़ालिब

  Sep 3, 2015| e-kavya.blogspot.com
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खो न जायें ये, तारे ज़मीं पर...!



देखो इन्हें, ये हैं आस की बूँदें
पत्तों की गोद में, आसमाँ से कूदें
अँगडाई लें, फिर करवट बदल कर
नाज़ुक-से मोती, हँस दें फिसलकर
ये तो हैं सर्दी में, धूप की किरणे
उतरें तो आँगन को सुनहरा-सा कर दें
मन के अँधेरों को रौशन-सा कर दें
ठिठुरती हथेली की रँगत बदल दें
खो न जायें ये, तारे ज़मीं पर...!

जैसे आँखों की डिबिया में निँदिया
और निँदिया में मीठा-सा सपना
और सपने में मिल जाए फ़रिश्ता-सा कोई
जैसे रँगों भरी पिचकारी
जैसे तितलियाँ, फूलों की क्यारी
जैसे बिना मतलब का, प्यारा रिश्ता हो कोई
ये तो आशा की लहर हैं
ये तो उम्मीद की सहर है
खुशियों की नहर है
खो न जायें ये, तारे ज़मीं पर...!

देखो रातों के सीने पे ये तो
झिलमिल किसी लौ-से उगे हैं
ये तो अँबिया की खुश्बू है - बाग़ों से बह चले
जैसे काँच में चूडी के टुकडे
जैसे खिले-खिले फूलों के मुखडे
जैसे बँसी कोई बजाए पेडों के तले
ये तो झोंके हैं पवन के
हैं ये घुँघरू जीवन के
ये तो सुर है चमन के
मुहल्ले की रौनक़ गलियाँ हैं जैसे
खिलने की ज़िद पर कलियाँ हों जैसे
मुठ्ठी में मौसम की जैसे हवाएँ
ये हैं बुज़ुर्ग़ों के दिल की दुआएँ
खो न जायें ये, तारे ज़मीं पर...!

कभी बातें जैसे दादी नानी
कभी छलकें जैसे "मम्-मम्" पानी
कभी बन जाएँ भोले, सवालों की झड़ी
सन्नाटे में हँसी के जैसे
सूने होंठों पे खुशी के जैसे
ये तो नूर हैं बरसे गर, तेरी क़िस्मत हो बड़ी
जैसे झील मे लहराए चँदा
जैसे भीड में अपने का कँधा
जैसे मनमौजी नदिया, झाग उड़ाए कुछ कहे
जैसे बैठे-बैठे मीठी-सी झपकी
जैसे प्यार की धीमी-सी थपकी
जैसे कानों में सरगम हरदम बजती ही रहे
खो न जायें ये, तारे ज़मीं पर...!

~ प्रसून जोशी


  Sep 4, 2015| e-kavya.blogspot.com
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जब तक तेरी निगाह ने

जब तक तेरी निगाह ने तौफ़ीक़ दी मुझे
मैं तेरी ज़ुल्फ बन के सँवरता चला गया

*तौफ़ीक़=सामर्थ्य, कृपा

~ 'अदम'

  Sep 2, 2015| e-kavya.blogspot.com
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Tuesday, September 1, 2015

खुश हूँ कि ज़िंदगी ने ..!

खुश हूँ कि ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया
मुझको सुपुर्दे - गर्दिशे - अय्याम कर दिया
किस बेतकल्लुफ़ी से फ़साना - निगार ने
आग़ाज़ को बिगाड़ के अंजाम कर दिया।

*सुपुर्दे-गर्दिशे-अय्याम=संसार चक्र के हवाले; फ़साना - निगार=कहानी कार; आग़ाज़=शुरुआत को; अंजाम=अंत

~ अदम

  Sep 1, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

बन गए हुक्काम वे सब

बन गए हुक्काम वे सब जो कि बे - ईमान थे,
हो गए लीडर की दुम जो कल तलक दरबान थे,
मेरे मालिक! और तो सब हैं सुखी तेरे यहाँ,
सिर्फ़ वे ही हैं दुखी, जो कुछ न बस, इंसान थे।

~ नीरज

  Aug 31, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh