जल, रे दीपक, जल तू
जिनके आगे अँधियारा है,
उनके लिए उजल तू।
जोता, बोया, लुना जिन्होंने
श्रम कर ओटा, धुना जिन्होंने
बत्ती बँटकर तुझे संजोया,
उनके तप का फल तू।
जल, रे दीपक, जल तू।
अपना तिल-तिल पिरवाया है
तुझे स्नेह देकर पाया है
उच्च स्थान दिया है घर में
रह अविचल झलमल तू।
जल, रे दीपक, जल तू।
चूल्हा छोड़ जलाया तुझको
क्या न दिया, जो पाया, तुझका
भूल न जाना कभी ओट का
वह पुनीत अँचल तू।
जल, रे दीपक, जल तू।
कुछ न रहेगा, बात रहेगी
होगा प्रात, न रात रहेगी
सब जागें तब सोना सुख से
तात, न हो चंचल तू।
जल, रे दीपक, जल तू!
जल, रे दीपक, जल तू।
~ मैथिलीशरण गुप्त
Oct 20, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh