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Sunday, February 25, 2018

दिल आज शायर है


दिल आज शायर है, ग़म आज नग़मा है
शब ये ग़ज़ल है सनम,
गैरों के शेरों को ओ सुनने वाले
हो इस तरफ़ भी करम।

आके ज़रा देख तो तेरी खातिर
हम किस तरह से जिये,
आँसू के धागे से सीते रहे हम
जो ज़ख्म तूने दिये।
चाहत की महफ़िल में ग़म तेरा लेकर
क़िस्मत से खेला जुआ,
दुनिया से जीते पर तुझसे हारे
यूँ खेल अपना हुआ।

ये प्यार हमने किया जिस तरह से
उसका न कोई जवाब,
ज़र्रा थे लेकिन तेरी लौ में जलकर
हम बन गए आफ़ताब।
हमसे है ज़िंदा वफ़ा और हम ही से
है तेरी महफ़िल जवाँ,
जब हम न होंगे तो रो रोके दुनिया
ढूँढेगी मेरे निशाँ।

ये प्यार कोई खिलौना नहीं है
हर कोई ले जो खरीद,
मेरी तरह ज़िंदगी भर तड़प लो
फिर आना इसके क़रीब।
हम तो मुसाफ़िर हैं कोई सफ़र हो
हम तो गुज़र जाएंगे ही,
लेकिन लगाया है जो दांव हमने
वो जीत कर आएंगे ही।

~ गोपालदास नीरज

  Feb 25, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Saturday, February 24, 2018

मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन


मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी जब पास तू नहीं होती
ख़ुद को कितना उदास पाता हूँ
गुम से अपने हवास पाता हूँ
जाने क्या धुन समाई रहती है
इक ख़मोशी सी छाई रहती है
दिल से भी गुफ़्तुगू नहीं होती
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
*हवास=चेतना


मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी रह रह के मेरे कानों में
गूँजती है तिरी हसीं आवाज़
जैसे नादीदा कोई बजता साज़
हर सदा नागवार होती है
इन सुकूत-आश्ना तरानों में
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
*नादीदा=अदृश्य; सदा=आवाज़

मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी शब की तवील ख़ल्वत में
तेरे औक़ात सोचता हूँ मैं
तेरी हर बात सोचता हूँ मैं
कौन से फूल तुझ को भाते हैं
रंग क्या क्या पसंद आते हैं
खो सा जाता हूँ तेरी जन्नत में
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
*तवील=लम्बी; ख़ल्वत=एकांत

मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
फिर भी एहसास से नजात नहीं
सोचता हूँ तो रंज होता है
दिल को जैसे कोई डुबोता है
जिस को इतना सराहता हूँ मैं
जिस को इस दर्जा चाहता हूँ मैं
इस में तेरी सी कोई बात नहीं
मैं तुझे चाहता नहीं लेकिन
*नजात=छुटकारा

~ जाँ निसार अख़्तर

  Feb 24, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Thursday, February 22, 2018

विषम भूमि नीचे, निठुर व्योम ऊपर

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विषम भूमि नीचे, निठुर व्योम ऊपर!

यहाँ राह अपनी बनाने चले हम,
यहाँ प्यास अपनी बुझाने चले हम,
जहाँ हाँथ और पाँव की ज़िन्दगी हो
नई एक दुनिया बसाने चले हम;
विषम भूमि को सम बनाना हमें है
निठुर व्योम को भी झुकाना हमें है;
न अपने लिये, विश्वभर के लिये ही
धरा व्योम को हम रखेंगे उलटकर!

विषम भूमि नीचे, निठुर व्योम ऊपर!
अगम सिंधु नीचे, प्रलय मेघ ऊपर!

लहर गिरि-शिखर सी उठी आ रही है,
हमें घेर झंझा चली आ रही है,
गरजकर, तड़पकर, बरसकर घटा भी
तरी को हमारे ड़रा जा रही है
नहीं हम ड़रेंगे, नहीं हम रुकेंगे,
न मानव कभी भी प्रलय से झुकेंगे
न लंगर गिरेगा, न नौका रुकेगी
रहे तो रहे सिन्धु बन आज अनुचर!

अगम सिंधु नीचे, प्रलय मेघ ऊपर!
कठिन पंथ नीचे, दुसह अग्नि ऊपर!

बना रक्त से कंटकों पर निशानी
रहे पंथ पर लिख चरण ये कहानी
बरसती चली जा रही व्योम ज्वाला
तपाते चले जा रहे हम जवानी;
नहीं पर मरेंगे, नहीं पर मिटेंगे
न जब तक यहाँ विश्व नूतन रचेंगे
यही भूख तन में, यही प्यास मन में
करें विश्व सुन्दर, बने विश्व सुन्दर!

कठिन पंथ नीचे, दुसह अग्नि ऊपर!

~ शंभुनाथ सिंह


  Feb 22, 2018 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, February 18, 2018

दिन टेसू के फूलों वाले

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दिन टेसू के फूलों वाले
कब आएँगे पता नहीं

दरस-परस की नहीं रही
अब अपने बस की
इच्छाएँ भी हुईं अपाहिज
आम-गुलमोहर चैती-आल्हा
कब गाएँगे पता नहीं

आबो हवा धरा की बदली
बेमौसम होते हैं पतझर
जो पलाश-वन में रहते थे
महानगर में हैं वे बेघर
महा-हाट से सपने साहू
कब लाएँगे पता नहीं

वृन्दावनवासी देवा भी
बैठे भौंचक सिंधु-किनारे
आने वाले पोत वहीं हैं
जिनसे बरसेंगे अंगारे
बरखा के शीतल-जल मेघा
कब छाएँगे पता नहीं

~ कुमार रवींद्र

  Feb 18, 2018 | e-kavya.blogspot.com
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ज़िंदगी मोतियों की ढलकती लड़ी

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ज़िंदगी मोतियों की ढलकती लड़ी
ज़िंदगी रंग-ए-गुल का बयाँ दोस्तो
गाह रोती हुई गाह हँसती हुई
मेरी आँखें हैं अफ़्साना-ख़्वाँ दोस्तो
*गाह=कभी; अफ़्साना-ख़्वाँ=कहानी कहने वाला

है उसी के जमाल-ए-नज़र का असर
ज़िंदगी ज़िंदगी है सफ़र है सफ़र
साया-ए-शाख़-ए-गुल शाख़-ए-गुल बन गया
बन गया अब्र अब्र-ए-रवाँ दोस्तो
*जमाल=सुंदर; अब्र-ए-रवाँ=चलता हुआ बादल

इक महकती बहकती हुई रात है
लड़खड़ाती निगाहों की सौग़ात है
पंखुड़ी की ज़बाँ फूल की दास्ताँ
उस के होंटों की परछाइयाँ दोस्तो

कैसे तय होगी ये मंज़िल-ए-शाम-ए-ग़म
किस तरह से हो दिल की कहानी रक़म
इक हथेली में दिल इक हथेली में जाँ
अब कहाँ का ये सूद-ओ-ज़ियाँ दोस्तो
*सूद-ओ-ज़ियाँ=लाभ या हानि

दोस्तो एक दो जाम की बात है
दोस्तो एक दो गाम की बात है
हाँ उसी के दर-ओ-बाम की बात है
बढ़ न जाएँ कहीं दूरियाँ दोस्तो

सुन रहा हूँ हवादिस की आवाज़ को
पा रहा हूँ ज़माने के हर राज़ को
दोस्तो उठ रहा है दिलों से धुआँ
आँख लेने लगी हिचकियाँ दोस्तो
*हवादिस=दुर्घटना

~ मख़्दूम मोहिउद्दीन


  Feb 17, 2018 | e-kavya.blogspot.com
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Friday, February 16, 2018

तनिक सा मुस्कुराएं

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प्रिये यह अनमनापन
और अपनी सब समस्याएं‚
उभरती भावनाओं से निरंतर
यह तनावों की धटाएं‚
प्रेम के निर्मल क्षितिज पर
क्यों अचानक छा गई हैं?

सुलझना इस समस्या का
नहीं बातों से अब संभव‚
चलो अब मूक नैनों को जुबां दें।
चलो अब तूल ना दें
इन धटाओं को‚
इसे खुद ही सिमटने दें।

उदासी के कुहासे में
बहुत दिन जी चुके हैं।
बहुत से अश्रु यूं चुपचाप
हम तुम पी चुके हैं।
चलो इन अश्रुओं को आज हम
निर्बाध बहने दें‚
नहीं इन को छुपाएं।
चलो इस छटपटाहट से
निकलने को‚
तनिक सा मुस्कुराएं!

∼ राजीव कृष्ण सक्सेना


  Feb 16, 2018 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, February 11, 2018

उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं

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अश्रु से मेरी नहीं पहचान थी कुछ
दर्द से परिचय तुम्हीं ने तो कराया,
छू दिया तुमने हृदय की धड़कनों को
गीत का अंकुर तुम्हीं ने तो उगाया,
मूक मन को स्वर दिये हैं बस तुम्हीं ने
उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं।

मैं न पाता सीख यह भाषा नयन की
तुम न मिलते उम्र मेरी व्यर्थ होती,
सांस ढोती शव विवश अपना स्वयं ही
और मेरी जिंदगी किस अर्थ होती,
प्राण को विश्वास सौंपा बस तुम्हीं ने
उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं।

तुम मिले हो क्या मुझे साथी सफर में
राह से कुछ मोह जैसा हो गया है,
एक सूनापन कि जो मन को डसे था
राह में गिरकर कहीं वह खो गया है,
शोक को उत्सव किया है बस तुम्हीं ने
उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं।

यह हृदय पाहन बना रहता सदा ही
सच कहूँ यदि जिंदगी में तुम न मिलते,
यूं न फिर मधुमास मेरा मित्र होता
और अधरों पर न यह फिर फूल खिलते,
भग्न मंदिर फिर बनाया बस तुम्हीं ने
उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं।

तीर्थ सा मन कर दिया है बस तुम्हीं ने,
उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं।

‍~ गोरख नाथ


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Saturday, February 10, 2018

सौ बातों की एक बात है

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सौ बातों की एक बात है।

रोज़ सवेरे रवि आता है
दुनिया को दिन दे जाता है
लेकिन जब तम इसे निगलता
होती जग में किसे विकलता
सुख के साथी तो अनगिन हैं
लेकिन दुःख के बहुत कठिन हैं।



सौ बातो की एक बात है।

अनगिन फूल नित्य खिलते हैं
हम इनसे हँस-हँस मिलते हैं
लेकिन जब ये मुरझाते हैं
तब हम इन तक कब जाते हैं
जब तक हममे साँस रहेगी
तब तक दुनिया पास रहेगी।

सौ बातों की एक बात है।

सुन्दरता पर सब मरते हैं
किन्तु असुंदर से डरते हैं
जग इन दोनों का उत्तर है
जीवन इस सबके ऊपर है
सबके जीवन में क्रंदन है
लेकिन अपना-अपना मन है।

सौ बातो की एक बात है।

~ रमानाथ अवस्थी

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Friday, February 9, 2018

ऐ सनम जिस ने तुझे


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ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद सी सूरत दी है
उसी अल्लाह ने मुझ को भी मोहब्बत दी है

तेग़ बे-आब है ने बाज़ु-ए-क़ातिल कमज़ोर
कुछ गिराँ-जानी है कुछ मौत ने फ़ुर्सत दी है
*तेग़=तलवार; गिराँ-जानी=कठोर

इस क़दर किस के लिए ये जंग-ओ-जदल ऐ गर्दूं
न निशाँ मुझ को दिया है न तू नौबत दी है
*जंग-ओ-जदल=लड़ाइ; गर्दूं=स्वर्ग

साँप के काटे की लहरें हैं शब-ओ-रोज़ आतीं
काकुल-ए-यार के सौदे ने अज़िय्यत दी है
*काकुल-ए-यार=प्रेमिका की लटें; अज़िय्यत=तक्लीफ़

आई इक्सीर ग़नी दिल नहीं रखती ऐसा
ख़ाकसारी नहीं दी है मुझे दौलत दी है
*इक्सीर=असरकारी दवा; ग़नी=धनवान

शम्अ का अपने फ़तीला नहीं किस रात जला
अमल-ए-हुब की बहुत हम ने भी दावत दी है
*फ़तीला=बाती; अमल-ए-हुब=प्यार करना

जिस्म को ज़ेर ज़मीं भी वही पहुँचा देगा
रूह को जिस ने फ़लक सैर की ताक़त दी है
*ज़ेर=नीचे

फ़ुर्क़त-ए-यार में रो रो के बसर करता हूँ
ज़िंदगानी मुझे क्या दी है मुसीबत दी है
*फ़ुर्क़त=जुदाई

यादशब-ए-महबूब फ़रामोश न होवे ऐ दिल
हुस्न-ए-निय्यत ने मुझे इश्क़ से नेमत दी है
*यादशब=याद करना; फ़रमोश=भूल जाना

गोश पैदा किए सुनने को तिरा ज़िक्र-ए-जमाल
देखने को तिरे, आँखों में बसारत दी है
*गोश=कान

लुत्फ़-ए-दिल-बस्तगी-ए-आशिक़-ए-शैदा को न पूछ
दो जहाँ से इस असीरी ने फ़राग़त दी है
*बस्तगी=बंधन; शैदा=किसी के प्रेम में मुग्ध ; असीरी=क़ैद; फ़राग़त=आराम

कमर-ए-यार के मज़मून को बाँधो 'आतिश'
ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ सी रसा तुम को तबीअत दी है
*ख़ूबाँ=खूबसूरत लड़की; रसा=पहुँच

~ हैदर अली आतिश

  Feb 9, 2018 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, February 4, 2018

क्या वह भी प्रिय गान तुम्हारा

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क्या वह भी अरमान तुम्हारा?

जो मेरे नयनों के सपने,
जो मेरे प्राणों के अपने ,
दे-दे कर अभिशाप चले सब,
क्या यह भी वरदान तुम्हारा?



खुली हवा में पर फैलाता,
मुक्त विहग नभ चढ़ कर गाता
पर जो जकड़ा द्वंद्व-बन्ध में,
क्या वह भी निर्माण तुम्हारा?

बादल देख हृदय भर आया
'दो दो-बूँद' कहा, दुलराया ;
पर पपीहरे ने जो पाया,
क्या वह भी पाषाण तुम्हारा?

नीरव तम, निशीथ की बेला,
मरु पथ पर मैं खड़ा अकेला
सिसक-सिसक कर रोता है जो,
क्या वह भी प्रिय गान तुम्हारा?

~ जानकीवल्लभ शास्त्री

  Feb 3, 2018 | e-kavya.blogspot.com
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Saturday, February 3, 2018

मशरिक़ और मग़रिब

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'किपलिंग' ने कहा था
''मशरिक़ (पूरब) मशरिक़ है
और मग़रिब (पश्चिम) मग़रिब है
और दोनों का मिलना ना-मुम्किन है''
लेकिन मग़रिब मशरिक़ के घर-आँगन में आ पहुँचा है
मेरा नौकर बीबीसी से ख़बरें सुनता है
मैं 'बे-दिल' और 'हाफ़िज़' के बजाए
'शेक्सपियर' और 'रिल्के' की बातें करता हूँ

अख़बारों में
मग़रिब के चकलों की ख़बरें और तस्वीरें छपती हैं
मुझ को चुग्गी दाढ़ी वाले 'अकबर' की खिसियानी हँसी पर
.....रहम आता है
इक़बाल की बातें (गुस्ताख़ी होती है)
मज्ज़ूब (आकर्षण) की बड़ (बरगद) हैं
'वारिस-शाह' और 'बुलहे-शाह' और 'बाबा-फ़रीद'?
चलिए जाने दीजे इन बातों में क्या रक्खा है
मशरिक़ हार गया है!
ये 'बक्सर' और 'पलासी' की हार नहीं है
'टीपू' और झांसी-की-रानी की हार नहीं है
सन-सत्तावन की जंग-ए-आज़ादी की हार नहीं है
ऐसी हार तो जीती जा सकती है (शायद हम ने जीत भी ली है)
लेकिन मशरिक़ अपनी रूह के अंदर हार गया है
क़ुब्ला-ख़ान तुम हार गए हो!
और तुम्हारे टुकड़ों पर पलने वाला लालची मारको-पोलो
.....जीत गया है
अकबर-ए-आज़म! तुम को मग़रिब की जिस अय्यारा (चालू स्त्री) ने तोहफ़े भेजे थे
और बड़ा भाई लिक्खा था
उस के कुत्ते भी इन लोगों से अफ़ज़ल हैं
जो तुम्हें महा-बली और ज़िलुल्लाह (ईश्वर की छाया) कहा करते थे
मशरिक़ कया था?
जिस्म से ऊपर उठने की इक ख़्वाहिश थी
शहवत (शारीरिक लगाव) और जिबिल्लत (फितरत) की तारीकी (अंधेरे) में
इक दिया जलाने की कोशिश थी!
मैं सोच रहा हूँ, सूरज मशरिक़ से निकला था
(मशरिक़ से जाने कितने सूरज निकले थे)
लेकिन मग़रिब हर सूरज को निगल गया है
''मैं हार गया हूँ''
मैं ने अपने घर की दीवारों पर लिक्खा है
''मैं हार गया हूँ''
मैं ने अपने आईने पर कालक मल दी है
और तस्वीरों पर थूका है
हारने वाले चेहरे ऐसे होते हैं
मेरी रूह के अंदर इक ऐसा गहरा ज़ख़्म लगा है
जिस के भरने के लिए सदियाँ भी ना-काफ़ी हैं
मैं अपने बच्चे और कुत्ते दोनों को 'टीपू' कहता हूँ
मुझ से मेरा सब कुछ ले लो
और मुझे इक नफ़रत दे दो
मुझ से मेरा सब कुछ ले लो
और मुझे इक ग़ुस्सा दे दो
ऐसी नफ़रत ऐसा ग़ुस्सा
जिस की आग में सब जल जाएँ
.....मैं भी!!

~ सलीम अहमद

  Feb 2, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Friday, February 2, 2018

जैसे सौदाई को बेवजह सुकूँ मिलता

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जैसे सौदाई को बेवजह सुकूँ मिलता है
मैं भटकता था बियाबान में साये की तरह
अपनी नाकामी-ए-ख़्वाहिश पे पशेमाँ होकर
फ़र्ज़ के गाँव में जज़्बात का मकाँ होकर
पर अचानक मुझे तुमने जो पुकारा तो लगा
कौन ईसा है जिसे मेरी दवा याद रही।
*सौदाई=पागल, सनकी

वो मुझे छू ले, समझ ले वो मेरे पास आए
काँपते होंठों पे बस एक ही फरियाद रही
दिल की उधड़ी हुई सीवन को छूआ यूँ तुमने
कुछ भी ताज़ा न था पर फिर भी कहा यूं तुमने
रूह की आँख ने कई लम्हात ख़ुशी रोई है
तुमने अपनाई से छूकर जो टटोला है मुझे
बर्फ़ के शहर में कुछ आस के सूरज की तरह
बरस रहा हूँ मुसलसल मैं ख़ुद पे बादल सा
दिख रहा है तू फरिश्ता- सा एक हँसता हुआ।

मैंने आँखों में तेरी होने का सामाँ देखा
और चेहरे से तेरे होने की ख़ुशबू पाई
मैंने जज़्बात में देखी है तेरी लौ जिसमें
मुझ-सी वीराँ कोई वादी भी जगमगाई है
और मैं ज़ेह्न की तारीकियों को यूँ डपटूँ।

काहिली दूर हो अब मैं भी ज़रा-सा हँस लूँ
हटो उदासियों आँगन में बहार आई है
आज जज़्बात पे हावी है ये लम्हात का दर्द
ग़म के संदेशों का दुख, दिल के हालात का दर्द
अब तेरी याद भी आती है तो याद आने पे
दिल भड़क जाता है कुछ और भी समझाने पे
अब तेरी राह से रिश्ता नहीं कोई बाकी
नमी न कोई इसे कर सके कभी ठंडा
अब तेरी याद को आँखो में छुपा रखा है
हम नहीं ज़ख्म जो हर रोज दर्द सह जाएँ।

सोचता मैं भी हूँ दफना दूँ ये बोझल चेहरा
सिर उठाँ जो कि सजदे में झुका रहता है
लड़ें, लड़ें तो लड़ें पर ये ख़्याल आता है
तू है ख़ुद अपने मुकाबिल लड़ें तो किससे लड़ें
मेरे निशाने पे मैं हूँ भिड़ूँ तो किससे भिड़ूँ
हर तरफ तू है मैं बचता भी हूँ तो किससे बचूँ।

बुझा-बुझा सा ये दिल सुबह शाम करता है
सुस्त क़दमों से कोई सूरज को दफ़्न करता है
कोई हवा जो बहुत रहमदिल हो ये सुन ले
पहाड़ अब भी समंदर को याद करता है
इस जनम में तो है रिश्ता यही तेरा मेरा।

इंतजार और करें अगले जनम तक आओ।

~ नवनीत शर्मा


  Feb 2, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh