पता नहीं वो कौन था
जो मेरे हाथ
मोगरे की डाल पँख मोर का थमा के चल दिया
पता नहीं वो कौन था
हवा के झोंके की तरह जो आया और गुज़र गया
नज़र को रंग दिल को निकहतों के दुख से भर गया
मैं कौन हूँ
गुज़रने वाला कौन था
ये फूल पँख क्या हैं क्यूँ मिले
ये सोचते ही सोचते तमाम रंग एक रंग में उतरते गए
......स्याह रंग
तमाम निकहतें इधर उधर बिखर गईं
.........ख़लाओं में
यक़ीन है..... नहीं नहीं गुमान है
वो कोई मेरा दुश्मन-ए-क़दीम था
दिखा के जो सराब मेरी प्यास और बढ़ा गया
मैं बे-हिसाब आरज़ूओं का शिकार
इंतिहा-ए-शौक़ में फ़रेब उस का खा गया
गुमान.... नहीं नहीं यक़ीन है
वो कोई मेरा दोस्त था
जो दो घड़ी के वास्ते ही क्यूँ न हो
नज़र को रंग दिल को निकहतों से भर गया
पता नहीं किधर गया
मैं इस को ढूँढता हुआ
तमाम काएनात में
उधर उधर बिखर गया
*निकहत=ख़ुशबू; ख़ला=शून्य; क़दीम=पुराना; सराब=मृग-तृष्णा
~ बशर नवाज़
Apr 22, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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