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Sunday, May 31, 2020

किस सम्त ले गईं मुझे इस दिल की धड़कनें


किस सम्त ले गईं मुझे इस दिल की धड़कनें
पीछे पुकारती रहीं मंज़िल की धड़कनें

गो तेरे इल्तिफ़ात के क़ाबिल नहीं मगर
मिलती हैं तेरे दिल से मिरे दिल की धड़कनें
*इल्तिफ़ात=तवज्जो

मख़मूर कर गया मुझे तेरा ख़िराम-ए-नाज़
नग़्मे जगा गईं तिरी पायल की धड़कनें
*मख़मूर=नशे में; ख़िराम-ए-नाज़=मोहक अदा में धीरे धीरे चलना

लहरों की धड़कनें भी न उन को जगा सकीं
किस दर्जा बे-नियाज़ हैं साहिल की धड़कनें
*बे-नियाज़=लापरवाह; साहिल=किनारा

वहशत में ढूँडता ही रहा क़ैस उम्र भर
गुम हो गईं बगूलों में महमिल की धड़कनें
*वहशत=उन्माद; बगूलों=चक्रवात; महमिल=काठी(ऊँट की)

लहरा रहा है तेरी निगाहों में इक पयाम
कुछ कह रही हैं साफ़ तिरे दिल की धड़कनें
*पयाम=संदेश

ये कौन चुपके चुपके उठा और चल दिया
'ख़ातिर' ये किस ने लूट लीं महफ़िल की धड़कनें

~ ख़ातिर ग़ज़नवी

May 31, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Thursday, May 28, 2020

मेरी इक छोटी सी कोशिश


मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझ को पाने के लिए
बन गई है मसअला सारे ज़माने के लिए

रेत मेरी उम्र मैं बच्चा निराले मेरे खेल
मैं ने दीवारें उठाई हैं गिराने के लिए

वक़्त होंटों से मिरे वो भी खुरच कर ले गया
इक तबस्सुम जो था दुनिया को दिखाने के लिए

आसमाँ ऐसा भी क्या ख़तरा था दिल की आग से
इतनी बारिश एक शोले को बुझाने के लिए

छत टपकती थी अगरचे फिर भी आ जाती थी नींद
मैं नए घर में बहुत रोया पुराने के लिए

देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपना
तजरबे आए थे संजीदा बनाने के लिए

मैं 'ज़फ़र' ता-ज़िंदगी बिकता रहा परदेस में
अपनी घर-वाली को इक कंगन दिलाने के लिए

~ ज़फ़र गोरखपुरी

May 28, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, May 27, 2020

इक शाख़ से पत्ता टूट गिरा

























इक शाख़ से पत्ता टूट गिरा

और तू ने ठंडी आह भरी

इक शाख़ पे खिलता शगूफ़ा था
तू उस से भी बेज़ार सी थी
तू अपने ख़याल के कोहरे में
लिपटी हुई गुम-सुम बैठी थी

तू पास थी और मैं तन्हा था
मेरे दिल में तेरा ग़म था
तेरे दिल में जाने किस का
हम दोनों पास थे और इतने
अंजान हवा का हर झोंका
इक साथ ही हम से कहता था,
ऐ राह-ए-इश्क़ के गुमराहो
तुम दोनों कितने तन्हा हो

लेकिन ये उसे मालूम न था
हम एक थे एक थे हम दोनों
हम एक ही दुख के मारे थे
दोनों के धड़कते सीनों में
सिर्फ़ एक ही दर्द सुलगता था
लेकिन ये उसे मालूम न था
कहता रहा वो तो यही हम से,
ऐ राह-ए-इश्क़ के गुमराहो
तुम दोनों कितने तन्हा हो


~ ज़िया जालंधरी

May 27, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Monday, May 25, 2020

अब तो घबरा के ये कहते हैं

































अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे

तुम ने ठहराई अगर ग़ैर के घर जाने की
तो इरादे यहाँ कुछ और ठहर जाएँगे

ख़ाली ऐ चारागरो होंगे बहुत मरहम-दाँ
पर मिरे ज़ख़्म नहीं ऐसे कि भर जाएँगे
*चारागरों=उपचारक; मरहम-दाँ=मरहम की शीशी

पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक क्यूँ कर हम
पहले जब तक न दो आलम से गुज़र जाएँगे
*रहगुज़र-ए-यार=प्रेमिका की गली; आलम=संसार, हाल

शोला-ए-आह को बिजली की तरह चमकाऊँ
पर मुझे डर है कि वो देख के डर जाएँगे
*शोला-ए-आह=आह की आग

हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे

आग दोज़ख़ की भी हो जाएगी पानी पानी
जब ये आसी अरक़-ए-शर्म से तर जाएँगे
*दोज़ख़=नर्क; अरक़-ए-शर्म=शर्म के पसीने

नहीं पाएगा निशाँ कोई हमारा हरगिज़
हम जहाँ से रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
*रविश-ए-तीर-ए-नज़र=नज़र के तीर की राह

सामने चश्म-ए-गुहर-बार के कह दो दरिया
चढ़ के गर आए तो नज़रों से उतर जाएँगे
*चश्म-ए-गुहर-बार=आँसी से भरी आँखें

लाए जो मस्त हैं तुर्बत पे गुलाबी आँखें
और अगर कुछ नहीं दो फूल तो धर जाएँगे
*तुर्बत=क़ब्र

रुख़-ए-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहर-ओ-माह नज़रों से यारों की उतर जाएँगे
मेहर-ओ-माह=सूरज और चाँद

हम भी देखेंगे कोई अहल-ए-नज़र है कि नहीं
याँ से जब हम रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे
*अहल-ए-नज़र=लोगों की निग़ाह

'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे
*मदरसे=मुस्लिम धर्म स्कूल

~ शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

May 25, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, May 24, 2020

चाँद सा चेहरा, नूर की चितवन


चाँद सा चेहरा, नूर की चितवन, माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
तुर्फ़ा निकाला आप ने जोबन, माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
*तुर्फ़ा=अनूठा; जोबन=यौवन

गुल रुख़-ए-नाज़ुक, ज़ुल्फ़ है सुम्बुल, आँख है नर्गिस, सेब-ए-ज़नख़दाँ
हुस्न से तुम हो ग़ैरत-ए-गुलशन, माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
*गुल=फूल; रुख़-ए-नाज़ुक=नाज़ुक चेहरा; सुम्बुल=षुशबूदार घास; सेब-ए-ज़नख़दाँ=डिम्पल; ग़ैरत=गौरव

साक़ी-ए-बज़्म-ए-रोज़-ए-अज़ल ने, बादा-ए-हुस्न भरा है इस में
आँखें हैं साग़र, शीशा है गर्दन, माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
*रोज़-ए-अज़ल=आदि-काल; बादा-ए-हुस्न=ख़ूबसूरती का जाम

क़हर ग़ज़ब, ज़ाहिर की रुकावट, आफ़त-ए-जाँ दर-पर्दा लगावट
चाह की तेवर, प्यार की चितवन, माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
*क़हर=प्रकोप; आफ़त-ए-जाँ=जान की आफ़त(प्रेमी); दर-पर्दा=राज़ की बात

ग़म्ज़ा उचक्का, इश्वा है डाकू, क़हर अदाएँ, सेहर हैं बातें
चोर निगाहें नाज़ है रहज़न, माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
*ग़म्ज़ा=रसिक निगाह; इश्वा=अंदाज़; सेहर=जादू; रहज़न=(रास्ते का) लुटेरा

नूर का तन है, नूर के कपड़े, उस पर क्या ज़ेवर की चमक है
छल्ले, कंगन, इक्के जोशन, माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
*जोशन=बाजू-बंद

जम्अ' किया ज़िद्दैन को तुम ने, सख़्ती ऐसी नर्मी ऐसी
मोम बदन है, दिल है आहन, माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह
*ज़िद्दैन=एक दूसरे के विरोधी; आहन=लोहे के समान

वाह 'अमीर' ऐसा हो कहना, शे'र हैं या मा'शूक़ का गहना
साफ़ है बंदिश, मज़मूँ रौशन, माशा-अल्लाह माशा-अल्लाह

~ अमीर मीनाई

May 24, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Monday, May 18, 2020

कलम अपनी साध...!



कलम अपनी साध
और मन की बात बिल्कुल ठीक कह एकाध।

यह कि तेरी भर न हो तो कह
और बहते बने सादे ढंग से तो बह
जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख
और इसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख
चीज ऐसी दे कि जिसका स्वाद सिर चढ़ जाए
बीज ऐसा बो कि जिसकी बेल बन बढ़ जाए
फल लगें ऐसे कि सुख-रस सार और समर्थ
प्राण संचारी की शोभा भर न जिनका अर्थ।

टेढ़ मत पैदा कर गति तीर की अपना
पाप को कर लक्ष्य कर दे झूठ को सपना
विंध्य रेवा फूल फल बरसात और गरमी
प्यार प्रिय का कष्ट कारा क्रोध या नरमी
देश हो या विदेश मेरा हो कि तेरा हो
हो विशद विस्तार चाहे एक घेरा हो
तू जिसे छू दे दिशा कल्याण हो उसकी
तू जिसे गा दे सदा वरदान हो उसकी।

~ भवानी प्रसाद मिश्र

May 18, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, May 17, 2020

कारवाँ गुज़रा किया


कारवाँ गुज़रा किया हम रहगुज़र देखा किये,
हर क़दम पर नक़्श-ए-पा-ए- राहबर देखा किये।
*रहगुज़र=रास्ता; नक़्श-ए-पा-ए- राहबर=राह दिखाने वाले के पदचिन्ह

यास जब छाई उम्मीदें हाथ मल कर रह गईं,
दिल की नब्ज़ें छुट गयीं और चारागर देखा किये।
*चारागर=वैद्य

रुख़ मेरी जानिब निगाह-ए-लुत्फ़ दुश्मन की तरफ़,
यूँ उधर देखा किये गोया इधर देखा किये।

दर्द-मंदाने-वफ़ा की हाये रे मजबूरियाँ,
दर्दे-दिल देखा न जाता था मगर देखा किये।
*
दर्द-मंदाने-वफ़ा=वफ़ा करने वाले से सहानुभूति
 
तू कहाँ थी ऐ अज़ल ऐ नामुरादों की मुराद,
मरने वाले राह तेरी उम्र भर देखा किये।
*अजल=मृत्यु

~ फ़ानी बदायूँनी

May 17, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Thursday, May 14, 2020

ज़रा सी चोट लगी थी कि


ज़रा सी चोट लगी थी कि चलना भूल गए
शरीफ़ लोग थे घर से निकलना भूल गए

तिरी उमीद पे शायद न अब खरे उतरें
हम इतनी बार बुझे हैं कि जलना भूल गए

तुम्हें तो इल्म था बस्ती के लोग कैसे हैं
तुम इस के बा'द भी कपड़े बदलना भूल गए

हमें तो चाँद सितारों को रुस्वा करना था
सो जान-बूझ के इक रोज़ ढलना भूल गए

'हसीब'-सोज़ जो रस्सी के पुल पे चलते थे
पड़ा वो वक़्त कि सड़कों पे चलना भूल गए

~ हसीब सोज़

May 14, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Tuesday, May 12, 2020

सुनो हम दरख़्तों से

 
सुनो हम दरख़्तों से फल तोड़ते वक़्त
उन के लिए मातमी धुन बजाते नहीं
सुनो प्यार के क़हक़हों
और बोसों के मासूम लम्हों में हम
आँसुओं के दियों को जलाते नहीं
और तुम लम्स बोसों
सुलगती हुई गर्म साँसों में
आँसू मिलाने पे क्यूँ तुल गई हो

सुनो आँसुओं का मुक़द्दर
तुम्हारा मुक़द्दर नहीं
तुम अभी मौसमों से परे
अपनी रूदाद के सिलसिलों से परे
दूर तक जाओगी
कामराँ जाओगी
तुम न जाने कहाँ मेरी पर्वाज़ से
मेरी रफ़्तार से मेरी हर बात से
और भी दूर तक जाओगी
मैं कहीं राह में ख़ाक हो जाऊँगा
आँसुओं को बचा कर रखो
उन का भी एक समय आएगा

*लम्स=स्पर्श; रूदाद=कहानी; पर्वाज़=उड़ान; कामराँ=कामयाब

~ फ़ज़्ल ताबिश


May 12, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, May 10, 2020

माँ

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माँ को समर्पित, जिनके लिये हर दिन माँ का दिन है:

कभी मस्जिद,कभी गिरजा कभी मन्दिर शिवाले से,
दुआ की बरकतें पाता हूँ माँ के हर निवाले से।
कम अज़ कम एहतियातन, मैं वज़ू तो कर ही लेता हूँ,
कभी जो शेर पढ़ना हो, मुझे माँ के हवाले से।
*
शब के दामन से सहर, कोई उजाली जाये,
ज़िन्दगी जीने की अब, राह निकाली जाय।
हमको दौलत मिली,इज्ज़त मिली शोहरत भी मिली,
अब ज़रूरी है बहुत माँ की दुआ ली जाये।
*
छाँव मिले जो उसके,रेशमी आँचल की,
ख़ाक जुनून-ए -इश्क,न छाने जंगल की।
अल्ला अल्ला सिलवट,माँ के आँचल की,
हर इक मौज लगे,मुझको गंगा जल की।
*
अपनी साँसों में मेरी, धड़कनें समाये हुए,
वजूद अपना ही खुद, दाँव पे लगाये हुए।
सँभल सँभल के क़दम,वो ज़मीं पे रखती थी,
मुझ को नौ माह तक,माँ कोख में छुपाये हुए।
*
दुआयें साथ रोज-ओ-शब हैं, माँ के आस्ताने की,
मसर्रत और शोहरत है, जिन्हें हासिल ज़माने की।
बहुत बेख़ौफ़ होकर उम्र भर बेटों" ने लूटा है,
मगर बरकत कभी घटती, नहीं माँ के ख़ज़ाने की।
*
नज़र आता है लाफ़ानी,असर माँ की बदौलत ही,
दवा से कुछ नहीं होता,दुआयें काम आती हैं।
*
दुआयें दे के मेरी, आक़िबत सँवारती है,
बलायें ले के माँ, मेरी नज़र उतारती है
वो मेरी फ़िक्र में, दिन रात जागकर `सागर',
मेरे वजूद की हर, शय को माँ निखारती है।

~ सागर त्रिपाठी


May 10, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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मिरे बच्चे ये कहते हैं

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मिरे बच्चे ये कहते हैं -
'तुम आती हो तो घर में रौनक़ें ख़ुशबुएँ आती हैं
ये जन्नत जो मिली है सब उन्हीं क़दमों की बरकत है
हमारे वास्ते रखना तुम्हारा इक सआदत है'

बड़ी मुश्किल से मैं दामन छुड़ा कर लौट आई हूँ
वो आँसू और वो ग़मगीन चेहरे याद आते हैं
अभी मत जाओ रुक जाओ ये जुमले सताते हैं

मैं ये सारी कहानी आने वालों को सुनाती हूँ
मिरे लहजे से लिपटा झूट सब पहचान जाते हैं
बहुत तहज़ीब वाले लोग हैं सब मान जाते हैं

~ ज़ेहरा निगाह

May 10, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Saturday, May 9, 2020

रणबीच चौकड़ी भर-भर कर


रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था

जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था

गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था

था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं

निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में

बढ़ते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
विकराल वज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया।

भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग

~ श्यामनारायण पाण्डेय


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Friday, May 8, 2020

जिन के होंटों पे हँसी


जिन के होंटों पे हँसी पाँव में छाले होंगे
हाँ वही लोग तुम्हें चाहने वाले होंगे

मय बरसती है फ़ज़ाओं पे नशा तारी है
मेरे साक़ी ने कहीं जाम उछाले होंगे
*तारी=छाया हुआ

शम्अ वो लाए हैं हम जल्वा-गाह-ए-जानाँ से
अब दो-आलम में उजाले ही उजाले होंगे
*जल्वा-गाह-ए-जानाँ=जहाँ प्रेयसी के दर्शन हुए हों; दो-आलम=जगत

उन से मफ़्हूम-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त अदा हो शायद
अश्क जो दामन-ए-मिज़्गाँ ने सँभाले होंगे
*मफ़्हूम=अर्थ; ग़म-ए-ज़ीस्त=जीवन के दुख; दामन-ए-मिज़्गाँ= आँख की पुतलियों का नुकीला किनारा

हम बड़े नाज़ से आए थे तिरी महफ़िल में
क्या ख़बर थी लब-ए-इज़हार पे ताले होंगे
*लब-ए-इज़हार=बोलने वाले होंठ

‍~ परवाज़ जालंधरी


May 8, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, May 3, 2020

इतनी क़ुर्बत भी नहीं ठीक है



इतनी क़ुर्बत भी नहीं ठीक है अब यार के साथ 
ज़ख़्म खा जाओगे खेलोगे जो तलवार के साथ
*क़ुर्बत=नज़दीकी

एक आहट भी मिरे घर से उभरती है अगर 
लोग कान अपने लगा लेते हैं दीवार के साथ

पाँव साकित हैं मगर घूम रही है दुनिया
ज़िंदगी ठहरी हुई लगती है रफ़्तार के साथ
*साकित=स्थिर

एक जलता हुआ आँसू मिरी आँखों से गिरा
बेड़ियाँ टूट गईं ज़ुल्म की झंकार के साथ

कल भी अनमोल था मैं आज भी अनमोल हूँ मैं
घटती बढ़ती नहीं क़ीमत मिरी बाज़ार के साथ

कज-कुलाही पे न मग़रूर हुआ कर इतना
सर उतर आते हैं शाहों के भी दस्तार के साथ
*कज-कुलाही=एक तरह की टोपी

कौन सा जुर्म ख़ुदा जाने हुआ है साबित
मशवरे करता है मुंसिफ़ जो गुनहगार के साथ

शहर भर को मैं मयस्सर हूँ सिवाए उस के
जिस की दीवार लगी है मिरी दीवार के साथ

~ सलीम सिद्दीक़ी

May 3, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Saturday, May 2, 2020

जब तक ये मोहब्बत में बदनाम नहीं


जब तक ये मोहब्बत में बदनाम नहीं होता
इस दिल के तईं हरगिज़ आराम नहीं होता

आलम से हमारा कुछ मज़हब ही निराला है
यानी हैं जहाँ हम वाँ इस्लाम नहीं होता

कब वादा नहीं करतीं मिलने का तिरी आँखें
किस रोज़ निगाहों में पैग़ाम नहीं होता

बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने
क्या शहर-ए-मोहब्बत में हज्जाम नहीं होता

मिलता है कभी बोसा ने गाली ही पाते हैं
मुद्दत हुई कुछ हम को इनआम नहीं होता

साक़ी के तलत्तुफ़ ने आलम को छकाया है
लबरेज़ हमारा ही इक जाम नहीं होता
*तलत्तुफ़=मेहरबानी; लबरेज़=लबालब

क्यूँ तीरगी-ए-ताले कुछ तू भी नहीं करती
ये रोज़-ए-मुसीबत का क्यूँ शाम नहीं होता
*तीरगी=अंधेरा

फिर मेरी कमंद उस ने डाले ही तुड़ाई है
वो आहु-ए-रम-ख़ुर्दा फिर राम नहीं होता
*कमंद=फ़ंदा; आहु-ए-रम-ख़ुर्दा=दूर हुई जाती (प्रेयसी); राम=वशीभूत

ने इश्क़ के क़ाबिल हैं ने ज़ोहद के दर्खुर हैं
ऐ 'मुसहफ़ी' अब हम से कुछ काम नहीं होता
*ज़ोहद=धर्म-पालन, दर्खुर=लायक

~ मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

May 2, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh