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Monday, July 27, 2020

तुझ को पाने के लिए ख़ुद से


तुझ को पाने के लिए ख़ुद से गुज़र तक जाऊँ
ऐसी जीने की तमन्ना है कि मर तक जाऊँ

अब न शीशों पे गिरूँ और न शजर तक जाऊँ
मैं हूँ पत्थर तो किसी दस्त-ए-हुनर तक जाऊँ

इक धुँदलका हूँ ज़रा देर में छट जाऊँगा
मैं कोई रात नहीं हूँ जो सहर तक जाऊँ

जिस के क़दमों के क़सीदों से ही फ़ुर्सत न मिले
कैसे उस शख़्स की ताज़ीम-ए-नज़र तक जाऊँ

घर ने सहरा में मुझे छोड़ दिया था ला कर
अब हो सहरा की इजाज़त तो मैं घर तक जाऊँ

अपने मज़लूम लबों पर जो वो रख ले मुझ को
आह बन कर मैं दुआओं के असर तक जाऊँ

ऐ मिरी राह कोई राह दिखा दे मुझ को
धूप ओढूँ कि तह-ए-शाख़-ए-शजर तक जाऊँ

~ सलीम सिद्दीक़ी

Jul 28, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Sunday, July 26, 2020

मैं ख़याल हूँ किसी और का


मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
*दर्पण में; आईने के पीछे

मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ
मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे माँगता कोई और है
*दस्त-ए-तलब=माँगते हुए हाथ; हर्फ़-ए-दुआ=प्रार्थना के शब्द

अजब ए'तिबार ओ बे-ए'तिबारी के दरमियान है ज़िंदगी
मैं क़रीब हूँ किसी और के मुझे जानता कोई और है
*ए’तिबार=विश्वास; बे-ए’तिबारी=अविश्वास

मिरी रौशनी तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल से मुख़्तलिफ़ तो नहीं मगर
तू क़रीब आ तुझे देख लूँ तू वही है या कोई और है
*ख़द्द-ओ-ख़ाल=रूप; मुख़्तलिफ़=अलग

तुझे दुश्मनों की ख़बर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं
तिरी दास्ताँ कोई और थी मिरा वाक़िआ कोई और है
*वाक़िआ=प्रसंग

वही मुंसिफ़ों की रिवायतें वही फ़ैसलों की इबारतें
मिरा जुर्म तो कोई और था प मिरी सज़ा कोई और है

कभी लौट आएँ तो पूछना नहीं देखना उन्हें ग़ौर से
जिन्हें रास्ते में ख़बर हुई कि ये रास्ता कोई और है

जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह न मिल सकी
तो फिर इस के मअ'नी तो ये हुए कि यहाँ ख़ुदा कोई और है
*रियाज़त-ए-नीम-शब=आधी रात को की हुई प्रार्थना

~ सलीम कौसर

Jul 26, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Friday, July 24, 2020

मरहले ज़ीस्त के दुश्वार


मरहले ज़ीस्त के दुश्वार अभी हो जाएँ
ताकि हम जीने को तय्यार अभी हो जाएँ
*मरहले=पड़ाव

ये जो कुछ लोग मिरे चार-तरफ़ हैं हर-वक़्त
यार हो जाएँ कि अग़्यार अभी हो जाएँ
*अग़्यार= अजनबी

जिस की ता'बीर है इक ख़्वाब में चलते रहना
क्यूँ न उस ख़्वाब से बेदार अभी हो जाएँ
*ता’बीर=अर्थ; बेदार=जागना

जाने फिर कोई ज़रूरत भी रहे या न रहे
जिन को होना है वो ग़म-ख़्वार अभी हो जाएँ
*ग़म-ख़्वार=दिलासा देने वाला

कोई तस्वीर सजा लेगा तो कोई तहरीर
क्यूँ न हम नक़्श-ब-दीवार अभी हो जाएँ
*तहरीर=लिखाई; नक़्श-ब-दीवार=दीवार पर लगी तस्वीर जैसे (स्थिर)

ज़िंदगी ख़ुद को बचाना है कि जाँ देना है
फ़ैसले ये भी हैं कि वार अभी हो जाएँ

एक लम्हे में बदल सकते हैं हालात 'सहर'
आप अगर शामिल-ए-दरबार अभी हो जाएँ

~ सहर अंसारी

Jul 24, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Thursday, July 23, 2020

जान जाने को है और रक़्स में परवाना


जान जाने को है और रक़्स में परवाना है
कितना रंगीन मोहब्बत तिरा अफ़्साना है
*रक़्स=नृत्य

ये तो देखा कि मिरे हाथ में पैमाना है
ये न देखा कि ग़म-ए-इश्क़ को समझाना है
*प्रे सम्बंधी दुख

इतना नज़दीक हुए तर्क-ए-तअल्लुक़ की क़सम
जो कहानी है मिरी आप का अफ़्साना है
*तर्क-ए-तअल्लुक़=सम्बंध विच्छेद

हम नहीं वो कि भुला दें तिरे एहसान-ओ-करम
इक इनायत तिरा ख़्वाबों में चला आना है
*इनायत=कृपा

एक महशर से नहीं कम तिरा आना लेकिन
इक क़यामत तिरा पहलू से चला जाना है
*महशर=महाप्रलय

ख़ुम ओ मीना मय ओ मस्ती ये गुलाबी आँखें
कितना पुर-कैफ़ मिरे हिज्र का अफ़्साना है
*ख़ुम=शराब रखने का बड़ा मटका; लपुर-कैफ़=नशीला; हिज्र-जुदाई

~ साग़र ख़य्यामी

Jul 23, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, July 22, 2020

पनघट की रानी


आई वो पनघट की देवी, वो पनघट की रानी
दुनिया है मतवाली जिस की और फ़ितरत दीवानी
माथे पर सिंदूरी टीका रंगीन ओ नूरानी
सूरज है आकाश में जिस की ज़ौ से पानी-पानी
छम-छम उस के बछवे बोलें जैसे गाए पानी
आई वो पनघट की देवी वो पनघट की रानी

*नूरानी=प्रकाशमान

कानों में बेले के झुमके आँखें मय के कटोरे
गोरे रुख़ पर तिल हैं या हैं फागुन के दो भँवरे
कोमल कोमल उस की कलाई जैसे कमल के डंठल
नूर-ए-सहर मस्ती में उठाए जिस का भीगा आँचल
फ़ितरत के मय-ख़ाने की वो चलती-फिरती बोतल
आई वो पनघट की देवी वो पनघट की रानी

*नूर-ए-सहर=सुबह की रौशनी

रग-रग जिस की है इक बाजा और नस-नस ज़ंजीर
कृष्ण मुरारी की बंसी है या अर्जुन का तीर
सर से पा तक शोख़ी की वो इक रंगीं तस्वीर
पनघट बेकुल जिस की ख़ातिर चंचल जमुना नीर
जिस का रस्ता टिक-टिक देखे सूरज सा रहगीर
आई पनघट की देवी वो पनघट की रानी

*पा=पैर; बेकुल=व्याकुल

सर पर इक पीतल की गागर ज़ोहरा को शरमाए
शौक़-ए-पा-बोसी में जिस से पानी छलका जाए
प्रेम का सागर बूँदें बन कर झूमा उमडा आए
सर से बरसे और सीने के दर्पन को चमकाए
उस दर्पन को जिस से जवानी झाँके और शरमाए
आई पनघट की देवी वो पनघट की रानी

*ज़ोहरा=सौंदर्य की देवी; शौक़-ए-पा-बोसी=पैर चूमने की उत्कंठा

~ साग़र निज़ामी

Jul 22, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, July 21, 2020

जब दर्द के नाते टूट गए


जब दर्द के नाते टूट गए
जब मंज़र मंज़र फैले हुए
अन-देखे लम्बे हाथों ने
सब अहद पुराने लूट लिए
माज़ी के ख़ज़ाने लूट लिए
सब इश्क़ के दा'वे रूठ गए
जाँ गुंग हुई दिल छूट गए
हर ज़ख़्म-ए-तमन्ना राख हुआ
जो शो'ला-ए-जाँ थर्राता हुआ
शफ़्फ़ाफ़ अँधेरी रातों में
रक़्साँ था फ़लक के ज़ीने पर
थक-हार के आख़िर बैठ रहा

*अहद=प्रतिज्ञा; माज़ी=गुज़रा कल; गुंग=गूंगी; श्फ़्फ़ाफ़=निर्मल; रक़्साँ=नृत्य करता हुआ

मटियाले बेहिस रेतीले
इन रस्तों पर
वो रस्ते
जिन पर रिश्तों के
रौशन चेहरे रू-पोश हुए
वो जिन के शोर-शराबे में
मन की आवाज़ें डूब गईं
दिल के हंगामे सर्द हुए
आईने नज़र के गर्द हुए
वो रस्ते भी क्या रस्ते थे
हर चार-तरफ़
इक धुँद की ख़ाकी चादर थी
और उस के आगे हद्द-ए-नज़र तक
फैली हुई
बे-जाँ लफ़्ज़ों
बे-मेहर युगों की
दलदल थी

*रू-पोश=छुपाए हुए; हद्द-ए-नज़र=दृष्टि की सीमा; बे-जाँ=बेजान; बे-मेहर=प्रेम रहित

वो शोला-ए-रक़्साँ हैराँ था
वो दीदा-ए-हैराँ गिर्यां था
वो ज़ेहन-ए-परेशाँ लर्ज़ां था
इक दिल का नगर सो वीराँ था
इक राही था जो उन बे-मेहर फ़ज़ाओं में
शौक़-ए-परवाज़ से
ख़ू-ए-सफ़र की बेताबी से हिरासाँ था
कुछ चाँद की मद्धम किरनें थीं
जो दर्द के सारे राज़ों से
वाक़िफ़ थीं मगर
इन मटियाले बेहिस गदले
रस्तों से
वो भी गुरेज़ाँ थीं

*शोला-ए-रक़्साँ=नृत्य रत शोला; दीदा-ए-हैराँ=आश्चर्यचकित; गिर्याँ=रोता हुआ; ज़ेहन-ए-परेशाँ=मन से दुखी; लर्ज़ाँ=काँपता; शौक़-ए-परवाज़=उड़ने का शौक़ीन; ख़ू-ए-सफ़र=यत्रा करने का आदी; हिरासाँ=सताया हुआ; बेहिस=संवेदन शून्य; गुरेज़ाँ=भागता हुआ

~ साजिदा ज़ैदी

Jul 20, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

किस कारन इतने रंगों से यारी

किस कारन इतने रंगों से यारी किस कारन ये ढंग
जितने रंग भी चाहो ज़ीस्त में भर लो मौत का एक ही रंग
*ज़ीस्त=जीवन

नाम-ओ-नुमूद से इतनी दूरी ठीक है लेकिन आख़िर क्यूँ
सारे जहाँ से क़ौस-ए-क़ुज़ह का रिश्ता अपने आप से जंग
*नाम-ओ-नुमूद=नाम और यश; क़ौस-ए-क़ुज़ह=इंद्रधनुष

पल में धज्जी धज्जी बिखरने वाली ऐसी है ये ज़ीस्त
इक से ज़ियादा बच्चों के हाथों में जैसे कटी पतंग

उम्र बिता दी अपनों और ग़ैरों के नक़्श बनाने में
'जब अपनी तस्वीर बनाना चाही फीके पड़ गए रंग'

मैं इक लिखने वाला मुझ को बताना यार अहमद-'परवेज़'
लौह-ओ-क़लम से आगे भी है क्या ये दुनिया इतनी तंग
लौह-ओ-क़लम=भाग्य का लिखा

~ साबिर ज़फ़र

Jul 19, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Thursday, July 16, 2020

ये चमन-ज़ार ये ख़ुश-रंग बहार



ये चमन-ज़ार ये ख़ुश-रंग बहारों का जहाँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

*चमन-ज़ार=बाग़ीचा; दिल-आवेज़=आकर्षक; दिल-आरा=जिससे प्रेम हो

चम्पई धूप में हर ज़र्रा है सूरज की किरन
चाँदनी रात में हर फूल है रौशन रौशन
नूर ही नूर ज़मीं से है फ़लक तक रक़्साँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

*नूर=प्रकाश; रक़्साँ=नृत्य करता हुआ

वादी-ए-गंग-ओ-जमन जन्नत-ए-नज़ारा है
सर-ज़मीं अपनी ज़र-ओ-सीम का गहवारा है
अपने दरियाओं की हर मौज में बिजली है रवाँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

*ज़र-ओ-सीम=सोने चाँदी सा

वलवले दिल में तो आँखों में उमंगें रौशन
हैं सभी चेहरे यहाँ हुस्न-ए-अमल के दर्पन
अज़्मत मेहनत-ओ-ईसार जबीनों से अयाँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

*वलवले=जोश; हुस्न-ए-अमल=काम की सुंदरता; अज़्मत=प्रतिष्ठा; ईसार=बलिदान; जबीनों=सुंदरियाँ

आश्ती अम्न मोहब्बत के परस्तार सभी
जज़्बा-ए-मेहर-ओ-मुरव्वत से हैं सरशार सभी
साझे त्यौहार हैं होली हो कि ईद-ए-क़ुर्बां
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

*आश्ती=मित्रता; परस्तार=उपासक; जज़्बा-ए-मेहर-ओ-मुरव्वत=प्यार और इंसानियत का भाव
सरशार=मस्त

तर्जुमान-ए-दिल-ए-जम्हूर अदीब-ओ-फ़नकार
इन के अफ़्कार तवाना हैं तख़य्युल बेदार
निखरा निखरा नई सज-धज का है अंदाज़-ए-बयाँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

*तर्जुमान-ए-दिल-ए-जम्हूर=दिल और जनता की प्रतिनिधि; अदीब-ओ-फ़नकार=लेखक और कलाकार; अफ़्कार=ख़याल; तवाना=बलवान; तख़य्युल=कल्पना

~ साहिर होशियारपुरी

Jul 16, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Wednesday, July 15, 2020

एक लम्हा


ये एक लम्हा
जो अपने हाथों में
चाँद सूरज लिए खड़ा है
मुझे इशारों से कह रहा है
वो मेरे हम-ज़ाद मेरे भाई
जो पत्तियों की तरह से कुम्हला के ज़र्द हो के
तुम्हारे क़दमों में आ गिरे हैं
दुरीदा यादों के क़ाफ़िले हैं

*हम-ज़ाद=स्वयं का दूसरा रूप; ज़र्द=पीले; दुरीदा=फ़टेहाल

वो मेरे हमनाम मेरे साथी
जो कोंपलों की तरह से फूटेंगे
ख़ुशबुओं की तरह चलेंगे
नए सराबों के सिलसिले हैं
जो बीत जाता है वो फ़ना है
जो होने वाला है वो फ़ना है
ये क्या कि तुम आँसुओं में डूबे हुए खड़े हो
हज़ार बेदार लज़्ज़तों को ख़िराज देने से डर रहे हो

*सराबों=भ्रांति; फ़ना=नाशवान; बेदार=जागृत; लज़्ज़त=स्वाद; ख़िराज=सम्मान

ये मेरी आँखों हैं मेरी आँखों में
अपनी आँखों के रंग भर दो
चलो मुझे ला-ज़वाल कर दो
ये एक क़तरा जो ज़िंदगी के समुंदरों से छलक रहा है
मिरी शिकस्तों की इब्तिदा है

*ला-जवाल=शाश्वत; शिकस्त=हार; इब्तिदा-=शुरुआत

~ साक़ी फ़ारुक़ी

Jul 15, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Tuesday, July 14, 2020

मल्बूस जब हवा ने बदन से चुरा लिए


मल्बूस जब हवा ने बदन से चुरा लिए
दोशी-ज़गान-सुब्ह ने चेहरे छुपा लिए
*मल्बूस=कपड़े; दोशीज़गान-सुब्ह=प्रात: की नव यौवनाएं

हम ने तो अपने जिस्म पे ज़ख़्मों के आईने
हर हादसे की याद समझ के सजा लिए

मीज़ान-ए-अदल तेरा झुकाओ है जिस तरफ़
उस सम्त से दिलों ने बड़े ज़ख़्म खा लिए
*मीज़ान-ए-अदल=न्याय की तुला; सम्त=तरफ

दीवार क्या गिरी मिरे ख़स्ता मकान की
लोगों ने मेरे सेहन में रस्ते बना लिए

लोगों की चादरों पे बनाती रही वो फूल
पैवंद उस ने अपनी क़बा में सजा लिए
क़बा=परिधान

हर मरहले के दोश पे तरकश को देख कर
माओं ने अपनी गोद में बच्चे छुपा लिए
*मरहले=रंगमंच; दोश=कंधे

~ सिब्त अली सबा

Jul 14, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Monday, July 13, 2020

शायद जगह नसीब हो


शायद जगह नसीब हो उस गुल के हार में
मैं फूल बन के आऊँगा अब की बहार में

गुंधवा के दिल को लाए हैं फूलों के हार में
ये हार उन को नज़्र करेंगे बहार में

मैं दिल की क़द्र क्यूँ न करूँ हिज्र-ए-यार में
उन की सी शोख़ियाँ हैं इसी बे-क़रार में
*हिज्र-ए-यार=जुदाई

तन्हा मिरे सताने को रह जाए क्यूँ ज़मीं
ऐ आसमान तू भी उतर आ मज़ार में

ऐ दर्द दिल को छेड़ के फिर बार बार छेड़
है छेड़ का मज़ा ख़लिश-ए-बार-बार में
*ख़लिश=चुभन

क्या जाने रहमतों ने लिया किस तरह हिसाब
दो चार भी गुनाह न निकले शुमार में
*रहमत=ईश्वर की कृपा

'सीमाब' बे-तड़प सी तड़प हिज्र-ए-यार में
क्या बिजलियाँ भरी हैं दिल-ए-बे-क़रार में

~ सीमाब अकबराबादी

Jul 13, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, July 12, 2020

अल्लाह दे सके तो दे


अल्लाह दे सके तो दे ऐसी ज़बाँ मुझे
अपना समझ के दिल से लगा ले जहाँ मुझे

सेहन-ए-चमन से जब भी उठा है धुआँ कभी
याद आ के रह गया है मिरा आशियाँ मुझे
*सेहन-ए-चमन=बगीचे का आँगन

ख़ार-ए-नफ़स ने मुझ को न सोने दिया कभी
इक उम्र मौत देती रही लोरियाँ मुझे
*ख़ार-ए-नफ़स=साँसों की चुभन

मैं इक चराग़ लाख चराग़ों में बट गया
रक्खा जो आइनों ने कभी दरमियाँ मुझे

मैं आने वाले क़ाफ़िले का मीर बन गया
छोड़ा था साथियों ने पस-ए-कारवाँ मुझे
*मीर=सरदार; पस-ए-कारवाँ=करवाँ के पीछे

हर मौज से उलझती हुई खेलती हुई
साहिल पे लाई कश्ती-ए-उम्र-ए-रवाँ मुझे
*कश्ती-ए-उम्र-ए-रवाँ= गुज़रती हुई ज़िंदगी की नाव

'सीमाब' दश्त-ए-ज़ीस्त से मैं क्या करूँ गिला
बख़्शी हैं बस्तियों ने भी वीरानियाँ मुझे
*दश्त-ए-ज़ीस्त=जीवन का रेगिस्तान

~ सीमाब सुल्तानपुरी

Jul 12, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Wednesday, July 8, 2020

मैं इक हसीं ख़्वाब देखता हूँ


मैं इक हसीं ख़्वाब देखता हूँ
मैं देखता हूँ
वो किश्त-ए-वीराँ
कि सालहा-साल से
जो अब्र को भी तरस रही थी
वो किश्त-ए-वीराँ
कि जिस के लब ख़ुश्क हो चुके थे
जो अब्र-ए-नैसाँ की मुंतज़र थी
जो कितनी सदियों से
बाद-ओ-बाराँ की मुंतज़िर थी

*किश्त-ए-वीराँ=वीरान खेत; अब्र-ए-नैसाँ=वसंत में बरसात के बादल; बाद-ओ-बाराँ=हवा और बारिश

मैं देखता हूँ
उस अपनी मग़्मूम किश्त-ए-वीराँ पे
कुछ घटा नहीं
जो आज लहरा के छा गई हैं
ये सर्द हवा के झोंके
न रुक सके जो किसी के रोके
ज़रा तमाज़त जो कम हुई है
हयात कुछ मोहतरम हुई है
मैं इक हसीं ख़्वाब देखता हूँ
मैं देखता हूँ
कि जैसे शब की सियाह चादर
सिमट रही है
वो तीरगी
हम जिसे मुक़द्दर समझ चुके थे
वो छट रही है

*मग़्मूम=दुःखित; तमाज़त= धूप की गर्मी; हयात=जीवन; मोहतरम=मान्य

मैं देखता हूँ
कि सुब्ह-ए-फ़र्दा
हज़ार रानाइयाँ जिलौ में
लिए मुस्कुरा रही है
मैं देखता हूँ
जबीं उफ़ुक़ की जो नूर-ए-फ़र्दा से है मुनव्वर
सहर का पैग़ाम दे रही है
जो रौशनी का
जो ज़िंदगी का
हर इक को इनआ'म दे रही है

मैं इक हसीं ख़्वाब देखता हूँ

*सुब्ह-ए-फ़र्दा=कल की सुबह; रानाइयों=सुंदरता; जिलौ=साथ; ज़बीं=माथा; उफ़ुक़=क्षितिज; नूर-ए-फ़र्दा=कल की रौशनी

~ सुरूर बाराबंकवी

Jul 08, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh