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Tuesday, June 30, 2015

दिलों में कितनी चाहत थी

दिलों में कितनी चाहत थी हमें कहना नहीं आया
सितम तो खूबसूरत था हमें सहना नहीं आया
वो बीते कल की बातें आज दोहराने से क्या हासिल
सनम दरिया थे हम दोनों, मगर बहना नहीं आया।

~ दिनेश रघुवंशी

   Jun 30, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर



नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया

कैसे दिन थे कैसी रातें,कैसी बातें-घातें थी
मन बालक है पहले प्यार का सुन्दर सपना भूल गया

सूझ-बुझ की बात नहीं है मनमोहन है मस्ताना
लहर लहर से जा सर पटका सागर गहरा भूल गया

अपनी बीती जग बीती है जब से दिल ने जान लिया
हँसते हँसते जीवन बीता रोना धोना भूल गया

अँधिआरे से एक किरन ने झाँक के देखा, शर्माई
धुँध सी छब तो याद रही कैसा था चेहरा भूल गया

हँसी हँसी में खेल खेल में बात की बात में रंग गया
दिल भी होते होते आख़िर घाव का रिसना भूल गया

एक नज़र की एक ही पल की बात है डोरी साँसों की
एक नज़र का नूर मिटा जब एक पल बीता भूल गया

जिस को देखो उस के दिल में शिकवा है तो इतना है
हमें तो सब कुछ याद रहा पर हम को ज़माना भूल गया

कोई कहे ये किस ने कहा था कह दो जो कुछ जी में है
'मीराजी' कह कर पछताया और फिर कहना भूल गया

~ 'मीराजी'


   Jun 29, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

अल्लाह ने नवाज़ दिया है

अल्लाह ने नवाज़ दिया है तो ख़ुश रहो,
तुम क्या समझ रहे हो ये शोहरत ग़ज़ल से ह

~ बशीर बद्र

   Jun 28, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

इतने बदनाम हुए हम तो

इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में
तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने में
न तो पीने का सलीका, न पिलाने का शऊर
अब तो ऐसे लोग चले आते हैं मैखाने में

~ गोपाल दास 'नीरज'

   Jun 26, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

Thursday, June 25, 2015

अब न वो दर्द, न वो दिल,

अब न वो दर्द, न वो दिल, न वो दीवाने हैं
अब न वो साज, न वो सोज, न वो गाने हैं
साकी! अब भी यहां तू किसके लिए बैठा है
अब न वो जाम, न वो मय, न वो पैमाने हैं

~ गोपाल दास 'नीरज'

   Jun 25, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, June 23, 2015

नवाज़िश, करम, शुक्रिया मेहरबानी



नवाज़िश, करम, शुक्रिया मेहरबानी
मुझे बख़्श दी आपने ज़िन्दगानी !

*नवाज़िश=अनुकंपा; करम= कृपा

जवानी की जलती हुई दोपहर में
ये ज़ुल्फ़ों के साये घनेरे-घनेरे,
अजब धूप छाँव का आलम है तारी
महकता उजाला चमकते अँधेरे,
ज़मीं का फ़ज़ा हो गई आसमानी !

*तारी= संयोग

लबों की ये कलियाँ खिली-अधखिली सी
ये मख़मूर आँखें गुलाबी-गुलाबी,
बदन का ये कुंदन सुनहरा-सुनहरा
ये कद है कि छूटी हुई माहताबी,
हमेशा सलामत रहे या जवानी !

*मख़मूर=मादक

~ हिमायत अली शाएर


   Jun 23, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

इक अजब चीज़ है शराफ़त भी

इक अजब चीज़ है शराफ़त भी
इस में शर भी है और आफ़त भी...

*शर=बुराई; आफ़त=विपत्ति

~ साग़र ख़य्यामी

  Jun 22, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

उनका कहीं जहाँ में ठिकाना

उनका कहीं जहाँ में ठिकाना नहीं रहा
हमको तो मिल गया है अदब में मुकाम और

*अदब- साहित्य और उससे संबंध रखनेवाला शास्त्र

~ दुष्यंत कुमार


  Jun 21, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Saturday, June 20, 2015

कब तक करूँ मैं इंतजार ?



रात के पहरेदार की सीटी
साथ हवा के सैर को निकली
जागते रहना, जागते रहना
रास्तों से आवाजें गुजरीं
और हँस के मैं खुद से बोली
जन्मों से मैं जाग रही हूँ
इंतजार को साध रही हूँ
कोई तो आए, कोई तो बोले तू सो जा इक बार
इंतजार, इंतजार, बोलो कब तक करूँ मैं इंतजार ?

सुबह सुबह आँगन में अपने गीले ख़्वाब सुखाती हूँ
कानों में खुद डाल के उँगली ऊँचे सुर में गाती हूँ
शाख गुलमोहर की हसरत से कितनी बार हिलाती हूँ
कभी तो खुशबू से भर जाए ये दामन इक बार
इंतजार, इंतजार, बोलो कब तक करूँ मैं इंतजार ?

पहले थोड़ा जिया जलाया
फिर आँगन में दिया जलाया
नर्म घास पर चल कर देखा
इक बुलबुल को पास बुलाया
और उसने कानों में गाया
आएगा वो धूप का टुकड़ा, इक दिन मेरे द्वार
इंतजार, इंतजार, जिसका मुझे इंतजार…..

~ प्रसून जोशी

  Jun 20, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Thursday, June 18, 2015

मैं तो बर्बाद हो गया हूँ

मैं तो बर्बाद हो गया हूँ मगर
अब किसी को न आसरा देना

~ 'नामालूम'

  Jun 18, 2015 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, June 17, 2015

जानवर आदमी फ़रिश्ता ख़ुदा

जानवर आदमी फ़रिश्ता ख़ुदा
आदमी की हैं सैकड़ों किस्में ।

~ अल्ताफ़ हुसैन हाली

  Jun 17, 2015 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, June 16, 2015

हम दोस्ती ऐहसान वफ़ा भूल गए हैं



हम दोस्ती ऐहसान वफ़ा भूल गए हैं
ज़िंदा तो हैं जीने की अदा भूल गए हैं

खुशबू जो लुटाते हैं मसलते हैं उसी को
ऐहसान का बदला ये मिलता है कली को
ऐहसान तो लेते हैं सिला भूल गए हैं

करते हैं मुहब्बत का और ऐहसान का सौदा
मतलब के लिए करते हैं ईमान का सौदा
डर मौत का और खौफ-ऐ-खुदा भूल गए हैं

अब मोम में ढलकर कोई पत्थर नहीं होता
अब कोई भी कुर्बान किसी पर नहीं होता
यूँ भटके हैं मंजिल का पता भूल गए हैं

~ पयाम सईदी


  Jun 16, 2015 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Monday, June 15, 2015

हम सनम दम तिरे

हम सनम दम तिरे इश्क़ का भर गए
जल गए, भुन गए, कट गए, मर गए।

~ मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

  Jun 15, 2015 | e-kavya.blogspot.com
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सामने ग़म की रहगुज़र आई


सामने ग़म की रहगुज़र आई
दूर तक रोशनी नज़र आई

परबतों पर रुके रहे बादल
वादियों में नदी उतर आई

दूरियों की कसक बढ़ाने को
साअते-क़ुर्ब मख़्तसर आई
*साअते-क़ुर्ब=सामीप्य की घड़ी; मुख़्तसर=संक्षिप्त

दिन मुझे क़त्ल करके लौट गया
शाम मेरे लहू में तर आई

मुझ को कब शौक़े-शहरगर्दी थी
ख़ुद गली चल के मेरे घर आई
*शौक़े-शहरगर्दी=नगर में घूमने का शौक़

आज क्यूँ आईने में शक्ल अपनी
अजनबी-अजनबी नज़र आई

हम की 'मख़्मूर' सुबह तक जागे
एक आहट की रात भर आई

~ मख़्मूर सईदी


  Jun 15, 2015 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Friday, June 12, 2015

तोहमतें चन्द अपने ज़िम्मे

तोहमतें चन्द अपने ज़िम्मे धर चले
जिस लिए आये थे सो हम कर चले

दोस्तों देखा तमाशा याँ का बस
तुम रहो अब हम तो अपने घर चले

~ ख़्वाजा मीर दर्द

   Jun 12, 2015| e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh 

Wednesday, June 10, 2015

ये बता दे मुझे ज़िन्दगी




ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
प्यार की राह के हमसफ़र
किस तरह बन गये अजनबी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
फूल क्यूँ सारे मुरझा गये
किस लिये बुझ गई चाँदनी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

कल जो बाहों में थी
और निगाहों में थी
अब वो गर्मी कहाँ खो गई
न वो अंदाज़ है
न वो आवाज़ है
अब वो नर्मी कहाँ खो गई
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

बेवफ़ा तुम नहीं
बेवफ़ा हम नहीं
फिर वो जज़्बात क्यों सो गये
प्यार तुम को भी है
प्यार हम को भी है
फ़ासले फिर ये क्यों हो गये
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी

~ जावेद अख़्तर

  Jun 10, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh


Nicely rendered by Chitra and Jagjit:
Saath Saath - 1982
https://www.youtube.com/watch?v=tl2yyeel9_c

Tuesday, June 9, 2015

आरज़ूओं के ख़्वाब क्या देंगे

आरज़ूओं के ख़्वाब क्या देंगे
ख़ूबसूरत सराब क्या देंगे
कुछ किया ही नहीं जवानी में
हश्र के दिन हिसाब क्या देंगे?
जीने वाले तो ख़ैर बेबस हैं,
मरने वाले हिसाब क्या देंगे?


* सराब=मरीचिका;
  हश्र=ईसाइयों, मुसलमानों आदि के मत से सृष्टि का वह अंतिम दिन, जब सभी
  मृत व्यक्ति कब्रों से निकलकर ईश्वर के सामने उपस्थित होंगे और वहाँ उनके
  जीवन-काल के कर्मों का विचार तथा निर्णय होगा।

~ अदम

  Jun 09, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Monday, June 8, 2015

दो पीढ़ियाँ


मुंशी जी तन्नाए,
पर जब उनसे कहा गया,
ऐसा ज़ुल्म और भी सह चुके हैं
तो चले गए दम दबाए । 


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मुंशी जी के लड़के तन्नाए,
पर जब उनसे कहा गया,
ऐसा ज़ुल्म औरों पर भी हुआ है
तो वे और भी तन्नाए । 


~ हरिवंश राय बच्चन

  Jun 08, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे



कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे,
तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे
तब तुम मेरे पास आना प्रिये,
मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा -
तुम्हारे लिये!

अभी तुमको मेरी ज़रूरत नहीं,
बहुत चाहने वाले मिल जाएंगे
अभी रूप का एक सागर हो तुम,
कंवल जितने चाहोगी खिल जाएंगे
दर्पण तुम्हें जब डराने लगे,
जवानी भी दामन छुड़ाने लगे
तब तुम मेरे पास आना प्रिये,
मेरा सर झुका है झुका ही रहेगा -
तुम्हारे लिये!

कोई शर्त होती नहीं प्यार में,
मगर प्यार शर्तों पे तुमने किया
नज़र में सितारे जो चमके ज़रा,
बुझाने लगीं आरती का दिया
जब अपनी नज़र में ही गिरने लगो,
अंधेरों में अपने ही घिरने लगो
तब तुम मेरे पास आना प्रिये,
ये दीपक जला है जला ही रहेगा -
तुम्हारे लिये!


~ इंदीवर
 
  Jun 06, 2015| e-kavya.blogspot.com
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Friday, June 5, 2015

रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र

रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे
होना है अभी मुझ को ख़राब और ज़ियादा

*अहल-ए-नज़र=नज़र रखने वाले

~ मजाज़ लखनवी

  Jun 05, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Thursday, June 4, 2015

कभी किसी बाग़ के किनारे



कभी किसी बाग़ के किनारे
उगे हुये पेड़ के सहारे
मुझे मिली हैं वो मस्त आँखें
जो दिल के पाताल में उतर कर
गये दिनों की गुफ़ा में झाँकें

कभी किसी अजनबी नगर में
किसी अकेले उदास घर में
परीरुख़ों की हसीं सभायें
कोई बहार-ए-गुरेज़ पायें

*परीरुख़ों=बहुत ख़ूबसूरत; गुरेज़=पलायन

कभी सर-ए-रह सर-ए-कू
कभी पस-ए-दर कभी लब-ए-जू
मुझे मिली हैं वही निगाहें
जो एक लम्हे की दोस्ती में
हज़ार बातों को कहना चाहें

*सर-ए-रह=राह, पथ; सर-ए-कू=आम गली
पस-ए-दर=दरवाज़े के पीछे; लब-ए-जू=पानी के किनारे

~ मुनीर नियाज़ी


  Jun 04, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, June 3, 2015

कुछ दोस्तों को हमने निभाया

कुछ दोस्तों को हमने निभाया बहुत दिनों
घाटे का कारोबार चलाया बहुत दिनों

~ नवाज़ देवबंदी

  June 03, 2015 | e-kavya.blogspot.com
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Monday, June 1, 2015

मैं तुम्हे अधिकार दूँगा



मैं तुम्हे अधिकार दूँगा
एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा
मैं अपरिमित प्यार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा

सत्य मेरे जानने का
गीत अपने मानने का
कुछ सजल भ्रम पालने का
मैं सबल आधार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा

ईश को देती चुनौती,
वारती शत-स्वर्ण मोती
अर्चना की शुभ्र ज्योति
मैं तुम्ही पर वार दूँगा
मैं तुम्हे अधिकार दूँगा

तुम कि ज्यों भागीरथी जल
सार जीवन का कोई पल
क्षीर सागर का कमल दल
क्या अनघ उपहार दूँगा
मै तुम्हे अधिकार दूँगा

~

  Jun 01, 2013 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh