उसे हर ख़ार-ओ-गुल प्यारा लगे है,
ये दिल कम्बख़्त आवारा लगे है।
सुख़न 'आजिज़' का क्यों प्यारा लगे है,
ये कोई दर्द का मारा लगे है।
खिलाए हैं वो गुल ज़ख़्मों ने उस के,
हसीं जिन से चमन सारा लगे है।
लगे है फूल सुनने में हर इक शे'र,
समझ लेने पे अंगारा लगे है।
ये है लूटा हुआ इस संग-दिल का,
जो देखे में बहुत प्यारा लगे है।
तुम आख़िर बद-गुमाँ 'आजिज़' से क्यों हो,
वो बेचारा तो बेचारा लगे है।
~ कलीम आजिज़
Apr 08, 2021 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh