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Sunday, December 29, 2019

मेरे जीवन के पतझड़ में

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मेरे जीवन के पतझड़ में
ऋतुपति अब आए भी तो क्या?

ऋतुराज स्वयं है पीत-वर्ण
मेरी आहों को छू-छू कर,
मेरे अंतर में चाहों की
है चिता धधकती धू-धू कर,
मेरे अतीत पर वर्तमान
अब यदि पछताए भी तो क्या?

मधुमास न देखा जिस तस्र ने
फिर उसको ग्रीष्म जलाती क्यों ?
मधु-मिलन न जाना हो जिसने
विरहाग्नि उसे झुलसाती क्यों ?
निर्झर ने चाहा बलि होना
सरिता की विगलित ममता पर,
हँस दी तब सरिता की लहरें
निर्झर की उस भावुकता पर,
यदि सरिता को उस निर्झर की
अब याद सताए भी तो क्या?

जिसकी निश्च्छलता पर मेरे
अरमान निछावर होते थे,
जिसकी अलसाई पलकों पर
मेरे सुख सपने सोते थे,
मेरे जीवन के पृष्ठ किसी
निष्ठुर की आँखों से ओझल,
शैशव की कारा में बंदी
मेरे नव-यौवन की हलचल।
अब कोई यदि मेरे पथ पर
दृग-सुमन बिछाए भी तो क्या?

दु:ख झंझानिल में भी मैंने
था अपना पथ निर्माण किया,
पथ के शूलों को भी मैंने
था फूलों सा सम्मान किया,
प्यासों की प्यास बुझाना ही
निर्झर ने जाना जीवन भर,
सागर के खारे पानी में
घुल गया उधर सरिता का उर।
जिसके अपनाने में मैंने
अपनेपन की परवाह न की,
उसने मेरे अपनेपन का
क्रंदन सुनकर भी आह न की।

अब दुनिया मेरे गीतों में
अपनापन पाए भी तो क्या?

~ बलबीर सिंह 'रंग'


 Dec 29, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, December 25, 2019

आया है त्यौहार क्रिसमस

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आया है त्यौहार क्रिसमस
बाँटे सब को प्यार क्रिसमस

मैं लाया हूँ प्यारे तोहफ़े
देखो कितने सारे तोहफ़े
गुड़िया कैसी आली लाया
गुड्डा दाढ़ी वाला लाया
जिस के पास हों पैसे ले लो
जी चाहे तो वैसे ले लो

तोहफ़े पा कर सब बोलेंगे
आए यूँ हर बार क्रिसमस
बाँटे सब को प्यार क्रिसमस

रंगीले ग़ुब्बारे ले लो
गोया चाँद सितारे ले लो
चलती फिरती मोटर ले लो
ढोल बजाता बंदर ले लो
देखो आ कर ख़ूब तमाशा
आओ जाने आओ 'पाशा'
अगले साल मैं फिर आउँगा

जब आएगा यार क्रिसमस
बाँटे सब को प्यार क्रिसमस

~ हैदर बयाबानी

 Dec 25, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Sunday, December 22, 2019

हम बंजारे दिल वाले हैं

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हम बंजारे दिल वाले हैं
और पैंठ में डेरे डाले हैं
तुम धोका देने वाली हो?
हम धोका खाने वाले हैं

इस में तो नहीं शर्माओगी?
क्या धोका देने आओगी?
सब माल निकालो, ले आओ
ऐ बस्ती वालो ले आओ
ये तन का झूटा जादू भी
ये मन की झूटी ख़ुश्बू भी
ये ताल बनाते आँसू भी
ये जाल बिछाते गेसू भी
ये लर्ज़िश डोलते सीने की
पर सच नहीं बोलते सीने की
ये होंट भी, हम से क्या चोरी
क्या सच-मुच झूटे हैं गोरी?

*लर्ज़िश=कम्पन

इन रम्ज़ों में इन घातों में
इन वादों में इन बातों में
कुछ खोट हक़ीक़त का तो नहीं?
कुछ मैल सदाक़त का तो नहीं?
ये सारे धोके ले आओ
ये प्यारे धोके ले आओ
क्यूँ रक्खो ख़ुद से दूर हमें
जो दाम कहो मंज़ूर हमें

*रम्ज़ों=रहस्य; सदाकत=यथार्थ

इन काँच के मनकों के बदले
हाँ बोलो गोरी क्या लोगी?
तुम एक जहान की अशरफ़ियाँ?
या दिल और जान की अशरफ़ियाँ?

~ इब्न-ए-इंशा


 Dec 22, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Saturday, December 14, 2019

तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत से

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तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत से अगर नफ़रत है
तू ने होंटों को लरज़ने से तो रोका होता
बे-नियाज़ी से मगर काँपती आवाज़ के साथ
तू ने घबरा के मिरा नाम न पूछा होता

*इज़हार-ए-मोहब्बत=प्रेम की अभिव्यक्ति; लरज़ना=कंपकपी; बे-नियाज़ी=उपेक्षा

तेरे बस में थी अगर मशअ'ल-ए-जज़्बात की लौ
तेरे रुख़्सार में गुलज़ार न भड़का होता
यूँ तो मुझ से हुईं सिर्फ़ आब-ओ-हवा की बातें
अपने टूटे हुए फ़िक़्रों को तो परखा होता

*मशअ'ल=मसाल; आब-ओ-हवा=मौसम; फ़िक़्रों=तानों

यूँही बे-वज्ह ठिठकने की ज़रूरत क्या थी
दम-ए-रुख़्सत मैं अगर याद न आया होता
तेरा ग़म्माज़ बना ख़ुद तिरा अंदाज़-ए-ख़िराम
दिल न सँभला था तो क़दमों को सँभाला होता

*दम-ए-रुख़्सत=विदाई के क्षण; ग़म्माज़=चुगली करने वाला; अंदाज़-ए-ख़िराम=धीरे धीरे चलने का अंदाज़

अपने बदले मिरी तस्वीर नज़र आ जाती
तू ने उस वक़्त अगर आइना देखा होता
हौसला तुझ को न था मुझ से जुदा होने का
वर्ना काजल तिरी आँखों में न फैला होता

~ अहमद नदीम क़ासमी

 Dec 14, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Friday, December 13, 2019

तग़ाफ़ुल और करम दोनों

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तग़ाफ़ुल और करम दोनों बराबर काम करते थे
जिगर के ज़ख़्म भरते थे तो दिल के दाग़ उभरते थे
*तग़ाफ़ुल=उपेक्षा; करम=कृपा

ख़ुदा जाने हमें क्या था कि फिर भी उन पे मरते थे
जो दिन भर में हज़ारों वा'दे करते थे मुकरते थे

न पूछो उन की तस्वीर-ए-ख़याली की सजावट को
उधर दिल रंग देता था इधर हम रंग भरते थे
*तस्वीर-ए-ख़याली=काल्पनिक छवि

मोहब्बत का समुंदर उस की मौजें ऐ मआ'ज़-अल्लाह
दिल इतना डूबता जाता था जितना हम उभरते थे
*मआ'ज़-अल्लाह=ईश्वर रक्षा करे

अजब कुछ ज़िंदगानी हो गई थी हिज्र में अपनी
न हँसते थे न रोते थे न जीते थे न मरते थे
*हिज्र=वियोग

शहीदान-ए-वफ़ा की मंज़िलें तो ये अरे तो ये
वो राहें बंद हो जातीं थीं जिन पर से गुज़रते थे
*शहीदान-ए-वफ़ा=शहीदों की वफ़ा

न पूछो उस की बज़्म-ए-नाज़ की कैफ़िय्यतें 'मंज़र'
हज़ारों बार जीते थे हज़ारों बार मरते थे
*बज़्म-ए-नाज़=शोख़ लोगों की महफ़िल; कैफ़िय्यत=अवस्था

~ मंज़र लखनवी

 Dec 13, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

चलने का हौसला नहीं

चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया।

~ परवीन शाकिर


 Dec 11, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

Sunday, December 1, 2019

अंजाम-ए-मोहब्बत से बेगाना

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अंजाम-ए-मोहब्बत से मैं बेगाना नहीं हूँ
दीवाना बना फिरता हूँ दीवाना नहीं हूँ

दम भर में जो हो ख़त्म वो अफ़्साना नहीं हूँ
इंसान हूँ इंसान मैं परवाना नहीं हूँ

साक़ी तिरी आँखों को सलामत रक्खे अल्लाह
अब तक तो मैं शर्मिंदा-ए-पैमाना नहीं हूँ

हो बार न ख़ातिर पे तो नासेह कहूँ इक बात
समझा लें जिसे आप वो दीवाना नहीं हूँ

बर्बादियों का ग़म नहीं ग़म है तो ये ग़म है
मिट कर भी मैं ख़ाक-ए-दर-ए-जानाना नहीं हूँ

*ख़ाक-ए-दर-ए-जानाना=प्रेमिका के घर की धूल

तौबा तिरे दामन पे जुनूँ-ख़ेज़ निगाहें
हूँ तो मगर अब इतना भी दीवाना नहीं हूँ

*जुनूँ-ख़ेज़=उन्माद से भरी

सब कुछ मिरे साक़ी ने दिया है मुझे 'मंज़र'
मोहताज-ए-मय-ओ-शीशा-ओ-पैमाना नहीं हूँ

~ मंज़र लखनवी


 Dec 1, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh