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Thursday, April 2, 2015

मिलने के बहाने ढूंढे है



दिल तेरी नजर की शह पाकर मिलने के बहाने ढूंढे है
गीतों की फजाएं मांगे है गजलों के जमाने ढूंढे है

आंखों में लिए शबनम की चमक सीने में लिए दूरी की कसक
वो आज हमारे पास आकर कुछ जख्म पुराने ढूंढे है

क्या बात है तेरी बातों की लहजा है कि है जादू कोई
हर आन फिजा में दिल उड़कर तारों के खजाने ढूंढे है

पहले तो छुटे ये दैरो-हरम, फिर घर छूटा, फिर मयखाना
अब ताज तुम्हारी गलियों में रोने के ठिकाने ढूंढे है

~ ताज भोपाली


  Sep 24, 2012| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Saturday, November 29, 2014

मैं चाहता हूं निज़ाम-ए-कुहन

मैं चाहता हूं निज़ाम-ए-कुहन बदल डालूं
मगर ये बात फक़त मेरे बस की बात नहीं
उठो बढ़ो मेरी दुनिया के आम इंसानों
ये सब की बात है दो-चार दस की बात नहीं

~ ताज 'भोपाली'

   March 13, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh