दिल तेरी नजर की शह पाकर मिलने के बहाने ढूंढे है
गीतों की फजाएं मांगे है गजलों के जमाने ढूंढे है
आंखों में लिए शबनम की चमक सीने में लिए दूरी की कसक
वो आज हमारे पास आकर कुछ जख्म पुराने ढूंढे है
क्या बात है तेरी बातों की लहजा है कि है जादू कोई
हर आन फिजा में दिल उड़कर तारों के खजाने ढूंढे है
पहले तो छुटे ये दैरो-हरम, फिर घर छूटा, फिर मयखाना
अब ताज तुम्हारी गलियों में रोने के ठिकाने ढूंढे है
~ ताज भोपाली
Sep 24, 2012| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh