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Saturday, November 29, 2014

फूल होता है पान होता है

फूल होता है पान होता है
चन्द्रमा के समान होता है
तन तो ढलता है किन्तु मन कवि का
जिन्दगी भर जवान होता है

~ रूपनारायण त्रिपाठी

   March 11, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

पिन्हाऊँ तुम्हें जुही के झुमके



ओ प्रिया
पिन्हाऊँ तुम्हें जुही के झुमके।

इस फूली संझा के तट पर,
आ बैठें बिल्कुल सट-सटकर,
दृष्टि कहे जो
उसे सुनें तो
अर्थ खिलेंगे नए आज गुमसुम के।

किरन बनाती तुझे सुहागिन,
आँखें खोल अरी बैरागिन,
इत-उत अहरह
अहरह इत-उत
लट ले तेरी मदिर हवा के ठुमके।

~ ओम प्रभाकर


   March 12, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

मैं चाहता हूं निज़ाम-ए-कुहन

मैं चाहता हूं निज़ाम-ए-कुहन बदल डालूं
मगर ये बात फक़त मेरे बस की बात नहीं
उठो बढ़ो मेरी दुनिया के आम इंसानों
ये सब की बात है दो-चार दस की बात नहीं

~ ताज 'भोपाली'

   March 13, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

खुल के मिलने का सलीक़ा



खुल के मिलने का सलीक़ा आपको आता नहीं
और मेरे पास कोई चोर दरवाज़ा नहीं

वो समझता था उसे पाकर ही मैं रह जाऊंगा
उसको मेरी प्यास की शिद्दत का अन्दाज़ा नहीं

जा दिखा दुनिया को मुझको क्या दिखाता है ग़रूर
तू समन्दर है तो हो मैं तो मगर प्यासा नहीं

कोई भी दस्तक करे आहट हो या आवाज़ दे
मेरे हाथों में मेरा घर तो है दरवाज़ा नहीं

अपनों को अपना कहा चाहे किसी दर्जे के हों
और अब ऐसा किया मैंने तो शरमाया नहीं

उसकी महफ़िल में उन्हीं की रौशनी जिनके चराग़
मैं भी कुछ होता तो मेरा भी दिया होता नहीं

तुझसे क्या बिछड़ा मेरी सारी हक़ीक़त खुल गयी
अब कोई मौसम मिले तो मुझसे शरमाता नहीं

~ वसीम बरेलवी


   March 14, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब



मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ
कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं
यहाँ तो दिल का ये आलम है क्या कहूँ
कमबख़्त !

भुला न पाया ये वो सिलसिला जो था ही नहीं
वो इक ख़याल
जो आवाज़ तक गया ही नहीं
वो एक बात
जो मैं कह नहीं सका तुमसे
वो एक रब्त
जो हममें कभी रहा ही नहीं
मुझे है याद वो सब
जो कभी हुआ ही नहीं

*रब्त=संबंध

~ जावेद अख़्तर


   March 15, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

गो चुकी उम्र है मेरी ढ़ल

 https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhtQaRRpNbZFmfUl9_V4hgSoWrSw5swi_lQg3JhtYnVnDGnrc394rds8FAQjlJRTVs3K3c2eghtSxrNhXw7AE65yIKVdsLJG9ufVRKkLn3Gwlq6iL5Tjqe0aMvFgQYsT9kZh69Dv129ffn/s1600/water_hand_.jpg

गो चुकी उम्र है मेरी ढ़ल
आज भी हूँ वही जो था कल

तुमने आँसू जिसे कह दिया
मन की गंगा का है, गंगा-
जल.

एक पल के लिये सौ जनम
सौ जनम का है फल एक
पल.

पी के अमृत-कलश तुम तृषित.
तृप्त मैं पान करके 

गरल.

हूँ मनुज आस्था मेरी डग
देव हो तुम किये जाओ
छल.


~ काशी नाथ, प्रयाग  

   March 15, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

ज़ख़्म जो आप की इनायत है



ज़ख़्म जो आप की इनायत है इस निशानी को नाम क्या दे हम
प्यार दीवार बन के रह गया है इस कहानी को नाम क्या दे हम

आप इल्ज़ाम धर गये हम पर एक एहसान कर गये हम पर
आप की ये मेहरबानी है मेहरबानी को नाम क्या दे हम

आपको यूँ ही ज़िन्दगी समझा धूप को हमने चाँदनी समझा
भूल ही भूल जिस की आदत है इस जवानी को नाम क्या दे हम

रात सपना बहार का देखा दिन हुआ तो ग़ुबार सा देखा
बेवफ़ा वक़्त बेज़ुबाँ निकला बेज़ुबानी को नाम क्या दे हम

~ सुदर्शन फ़ाकिर


   March 16, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

ये दिन ये रात ये लम्हे मुझे

ये दिन ये रात ये लम्हे मुझे अच्छे से लगते हैं
तुम्हें सोचूँ तो सारे सिलसिले अच्छे से लगते हैं
बहुत दूर तलक चलना, मगर फिर भी वहीं रहना
मुझे तुम से तुम तक के फासले अच्छे से लगते हैं

~ नामालूम

   March 16, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

चाँदनी चुप-चाप सारी रात



चाँदनी चुप-चाप सारी रात
सूने आँगन में
जाल रचती रही।

मेरी रूपहीन अभिलाषा
अधूरेपन की मद्धिम
आँच पर तँचती रही।

व्यथा मेरी अनकही
आनन्द की सम्भावना के
मनश्चित्रों से परचती रही।

मैं दम साधे रहा
मन में अलक्षित
आँधी मचती रही:

प्रातः बस इतना कि मेरी बात
सारी रात
उघड़कर वासना का
रूप लेने से बचती रही।

~ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय"


   March 17, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

बहुत आती है तेरी याद



बहुत आती है तेरी याद
जब भी आती है रुलाती है तेरी याद

रौनक तुझसे जहाँ में थी
जुज़ तेरे, सब है नाशाद
*जुज़=बगैर, नाशाद=नाखुश

सोगवार दिल है गुदाज़
उस पे ये बेजारी ये बेदाद
*सोगवार=उदास, गुदाज़=नरम, बेजारी=खिन्न या नाराज, बेदाद=नाइंसाफी

गुल-ए-इश्क खिलता एक बार
फिर न बसे दिल-ए-बर्बाद
*गुल-ए-इश्क=प्यार का परवान/फूल

आशिक सा सादा है कौन है
वो ताईर जिसका दिलबर है सय्याद
*ताईर=पंछी

सांस लेना भी है मुहाल
ज़ालिम है तेरी तरह ये बाद
*मुहाल=मुश्किल, बाद=हवा

सुकूत बनी मुज़्तरिब की जुबां
न बयां करनी उसे गम की रुदाद
*सुकूत=खामोशी, रुदाद=कहानी

~ 'मुज़्तरिब'


   March 18, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

एक सीध में दूर-दूर तक गड़े हुए



एक सीध में दूर-दूर तक गड़े हुए ये खंभे
किसी झाड़ से थोड़े नीचे, किसी झाड़ से लम्बे ।
कल ऐसे चुपचाप खड़े थे जैसे बोल न जानें
किन्तु सबेरे आज बताया मुझको मेरी माँ ने -
इन्हें बोलने की तमीज है, सो भी इतना ज्यादा
नहीं मानती इनकी बोली पास-दूर की बाधा !

अभी शाम को इन्हीं तार के खंभों ने बतलाया
कल मामीजी की गोदी में नन्हा मुन्ना आया ।
और रात को उठा, हुआ तब मुझको बड़ा अचंभा -
सिर्फ बोलता नहीं, गीत भी गाता है यह खंभा !

~ भवानीप्रसाद मिश्र


   March 19, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

इधर आ सितमगर

इधर आ सितमगर, हुनर आजमाएँ
तू तीर आजमा हम जिगर आजमाएँ !

~ नामालूम

   March 19, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

दोनों जहाँ तेरी मुहब्बत में हार के



दोनों जहाँ तेरी मुहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब्-ए-गम गुज़ार के
*शब्-ए-गम=उदासी की रात

वीरां है मैकदा, ख़म-ओ-सागर उदास है
तुम क्या गए के रूठ गए दिन बहार के
वीरां=खाली, मैकदा=शराब घर, ख़म-ओ-सागर= प्याला और शराब

दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिलफरेब है गम रोज़गार के
*दिलफरेब=दिल को धोखा देने वाले, रोज़गार=नौकरी वगैरह...

इक फुर्सत-ए-गुनाह मिली, वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौसले परवरदिगार के
*फुर्सत-ए-गुनाह=इश्क़/गुनाह करने का समय, हौसले=हिम्मत, परवरदिगार=सबका मालिक

भूले से मुस्कुरा तो दिए, थे वो आज 'फैज़'
मत पूछ वलवले दिल-ए-नाकर्दाकार के
*वलवले=जोश, दिल-ए-नाकर्दाकार=संवेदनाशून्य दिल

~  फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' 


   March 20, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

आते आते आप की

आते आते आप की आहट जो रुक सी जाती है
आप को तो खेल लगता जान अपनी जाती है

~ अशोक सिंह

   March 20, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

दो मेघ मिले बोले-डोले



दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।
भौंरों को देख उड़े भौंरे, कलियों को देख हँसीं कलियाँ,
कुंजों को देख निकुंज हिले, गलियों को देख बसीं गलियाँ,
गुदगुदा मधुप को, फूलों को, किरणों ने कहा जवानी लो,
झोंकों से बिछुड़े झोंकों को, झरनों ने कहा, रवानी लो,
दो फूल मिले, खेले-झेले, वन की डाली पर झूल चले
इस जीवन के चौराहे पर, दो हृदय मिले भोले-भाले,

ऊँची नजरों चुपचाप रहे, नीची नजरों दोनों बोले,
दुनिया ने मुँह बिचका-बिचका, कोसा आजाद जवानी को,
दुनिया ने नयनों को देखा, देखा न नयन के पानी को,
दो प्राण मिले झूमे-घूमे, दुनिया की दुनिया भूल चले,

तरुवर की ऊँची डाली पर, दो पंछी बैठे अनजाने,
दोनों का हृदय उछाल चले, जीवन के दर्द भरे गाने,
मधुरस तो भौरें पिए चले, मधु-गंध लिए चल दिया पवन,
पतझड़ आई ले गई उड़ा, वन-वन के सूखे पत्र-सुमन
दो पंछी मिले चमन में, पर चोंचों में लेकर शूल चले,

नदियों में नदियाँ घुली-मिलीं, फिर दूर सिंधु की ओर चलीं,
धारों में लेकर ज्वार चलीं, ज्वारों में लेकर भौंर चलीं,
अचरज से देख जवानी यह, दुनिया तीरों पर खड़ी रही,
चलने वाले चल दिए और, दुनिया बेचारी पड़ी रही,
दो ज्वार मिले मझधारों में, हिलमिल सागर के कूल चले,
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।

हम अमर जवानी लिए चले, दुनिया ने माँगा केवल तन,
हम दिल की दौलत लुटा चले, दुनिया ने माँगा केवल धन,
तन की रक्षा को गढ़े नियम, बन गई नियम दुनिया ज्ञानी,
धन की रक्षा में बेचारी, बह गई स्वयं बनकर पानी,
धूलों में खेले हम जवान, फिर उड़ा-उड़ा कर धूल चले,
दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले ।

~ गोपाल सिंह 'नेपाली'


   March 21, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

तेरे आंगन की कली



तेरे आंगन की कली
का काँटो से है गठबंधन
तभी जंगली फूलों से हैं,
ये नहीं महँकते.

तेरी पलकें तेरी चादर
और ये तेरे तकिये
आँख की तरह आसुओं
की राह नहीं तकते

~ काशी नाथ, प्रयाग

   April 2, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

ओ! बासंती पवन

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जब भी अरमानों ने
पलकें खोली हैं.
जबरन घुस आया
कोई डर अनजाना.
फाग में आग की लपट
दिख रही गली गली
ओ! बासंती पवन झुलस
तुम मत जाना ।।

जाने कैसी हवा चली
नन्दन-वन में.
शीतलता सुगन्ध ग़ायब
है चन्दन में.
सुधा-कलश की संग्या
जिसको मिली हुई.

विष ही विष है व्याप्त
उसी अंतर्मन में

सहमी सहमी कली-
कली अब गुलशन में
माली का है सैय्यादों
से य़ाराना.
ओ! बासंती पवन
झुलस तुम मत जाना.
 

~ काशीनाथ, प्रयाग
 
   March 22, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

तस्कीन न हो जिस से



तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो
*तस्कीन=तसल्ली

तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है
अंजाम का जो हो खतरा आगाज़ बदल डालो
*आगाज़=शुरुआत

पुर-सोज़ दिलों को जो मुस्कान न दे पाए
सुर ही न मिले जिस में वो साज़ बदल डालो
*पुरसोज़=दु:खी

दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना
तुम खेल वो ही खेलो, अंदाज़ बदल डालो

ऐ दोस्त! करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है
गर चाहते हो मंजिल तो परवाज़ बदल डालो
*परवाज़= उड़ान

~ मोहम्मद इक़बाल

 
   March 22, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

लमहे भर को यह दुनिया

लमहे भर को यह दुनिया ज़ुल्म छोड़ देती है !
लम्हे भर को सब पत्थर मुस्कराने लगते हैं !

~ कैफ़ी आज़मी

   March 23, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

माँ! यह वसंत ऋतुराज री !



आया लेकर नव साज री !
मह-मह-मह डाली महक रही
कुहु-कुहु-कुहु कोयल कुहुक रही
संदेश मधुर जगती को वह
देती वसंत का आज री !
माँ! यह वसंत ऋतुराज री !

गुन-गुन-गुन भौंरे गूंज रहे
सुमनों-सुमनों पर घूम रहे
अपने मधु गुंजन से कहते
छाया वसंत का राज री !
माँ! यह वसंत ऋतुराज री !

मृदु मंद समीरण सर-सर-सर
बहता रहता सुरभित होकर
करता शीतल जगती का तल
अपने स्पर्शों से आज री !
माँ! यह वसंत ऋतुराज री !

फूली सरसों पीली-पीली
रवि रश्मि स्वर्ण सी चमकीली
गिर कर उन पर खेतों में भी
भरती सुवर्ण का साज री !
मा! यह वसंत ऋतुराज री !

माँ ! प्रकृति वस्त्र पीले पहिने
आई इसका स्वागत करने
मैं पहिन वसंती वस्त्र फिरूं
कहती आई ऋतुराज री !
माँ! यह वसंत ऋतुराज री !

~ द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी


   March 24, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

बे-खबर, बे-वजह, बे-रूखी

बे-खबर, बे-वजह, बे-रूखी न किया कर,
कोई टूट सा जाता है, तेरा लहजा बदलने से

~ नामालूम
   March 24, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

मैं हूँ बिखरा हुआ दीवार



मैं हूँ बिखरा हुआ दीवार कहीं दर हूँ मैं
तू जो आ जाय मेरे दिल में तो इक घर हूँ मैं

कल मेरे साथ जो चलते हुए घबराता था
आज कहता है तिरे कद के बराबर हूँ मैं

इससे मैं बिछडू तो पल भर में फना हो जाऊं
मैं तो खुशबू हूँ इसी फूल के अंदर हूँ मैं

~ मेहर गेरा


   March 23, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

हम भी होली खेलते जो


हम भी होली खेलते जो होते अपने देश

हम भी होली खेलते जो होते अपने देश
विधि ने ऐसा वैर निकला भेज दिया परदेश

भेज दिया परदेश लेकिन भेजी न सोगातें
अपने हिस्से में बस आई भूली बिसरी बातें

यहाँ तो होली शनि रवि को शनि रवि दीवाली रातें
बासी रोटी बर्फ निवाले नाचें तब जब विदा बारातें

अनुमति लेकर रंग लगाना, ये भी कोई रंग लगाना
बांच के रंग की जन्मपत्री ,डरे डरे से हाथ बढ़ाना

फीसें दे दे नाच सीखना, नपा तुला सा पैर उठाना
जड़ों से हम भी जुड़े जुड़े हैं ,सोच के स्वंय को धीर बंधाना

होली की सौगात तुम्हे शुभ, रंग हमारा भी ले लेना
रहे बधाई दीवाली की, दीप भी तेरा तेरी रैना

राम वहां बनवास से आयें ,हम भी दीपक यहाँ जलायें
भेजो कुछ हुडदंग की पाती ,हम भी सुन सुन रंग में आयें

~ अमिता तिवारी

   March 26, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

अभी इस तरफ़ न निगाह कर



अभी इस तरफ़ न निगाह कर, मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ
मेरा लफ्ज़-लफ्ज़ हो आइना, तुझे आइने में उतार लूँ

मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब् का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर, तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ

कई अजनबी तेरी राह के, मेरे पास से यूँ गुज़र गए
जिन्हें देख कर ये तड़प हुई, तेरा नाम ले के पुकार लूँ

~ बशीर बद्र


   March 27, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

होली है तो आज अपरिचित से





आप सभी होली के पर्व पर हार्दिक बधाई!

यह मिट्टी की चतुराई है,
रूप अलग औ’ रंग अलग,
भाव, विचार, तरंग अलग हैं,
ढाल अलग है ढंग अलग,

आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।
होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को!

निकट हुए तो बनो निकटतर
और निकटतम भी जाओ,
रूढ़ि-रीति के और नीति के
शासन से मत घबराओ,

आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो!

प्रेम चिरंतन मूल जगत का,
वैर-घृणा भूलें क्षण की,
भूल-चूक लेनी-देनी में
सदा सफलता जीवन की,

जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!

होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,
होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,
भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,
होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!

~ हरिवंशराय बच्चन

 
   March 28, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

मेरी रातों की राहत, दिन के



मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना
तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना

तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई ?
तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना
*अना=स्वाभिमान

शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो
अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना

तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते
पुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जाना

इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का
तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना

अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी
तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना

~ एतबार साजिद


   March 29, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

अजीब तर्ज-ए-मुलाकात



अजीब तर्ज-ए-मुलाकात अब के बार रही
तुम्हीं थे बदले हुए या मेरी निगाहें थीं
तुम्हारी नजरों से लगता था जैसे मेरे बजाए
तुम्हारे ओहदे की देनें तुम्हें मुबारक थीं

सो तुमने मेरा स्वागत उसी तरह से किया
जो अफ्सरान-ए-हुकूमत के ऐतक़ाद में है
तकल्लुफ़ान मेरे नजदीक आ के बैठ गए
फिर एहतराम से मौसम का जिक्र छेड़ दिया
*एहतराम=आदर

कुछ उस के बाद सियासत की बात भी निकली
अदब पर भी दो चार तबसरे फ़रमाए
मगर तुमने ना हमेशा कि तरह ये पूछा
कि वक्त कैसा गुजरता है तेरा जान-ए-हयात ?

पहर दिन की अज़ीयत में कितनी शिद्दत है
उजाड़ रात की तन्हाई क्या क़यामत है
शबों की सुस्त रावी का तुझे भी शिकवा है
गम-ए-फिराक के किस्से निशात-ए-वस्ल का जिक्र
रवायतें ही सही कोई बात तो करते.....
*अज़ीयत=अत्याचार, शिद्दत=उग्रता, रावी=रावी नदी,
निशात-ए-वस्ल=मिलन की खुशी

~ परवीन शाकिर


   March 30, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

शाम-ए-फिराक अब ना पूछ

शाम-ए-फिराक अब ना पूछ, आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया , जां थी कि फिर संभल गई

~ 'फ़ैज़

   March 31, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

मेरे युवा-आम में नया बौर



मेरे युवा-आम में नया बौर आया है
खुशबू बहुत है क्‍योंकि तुमने लगाया है

आएगी फूल-हवा अलबेली मानिनी
छाएगी कसी-कसी अँबियों की चाँदनी
चमकीले, मँजे अंग
चेहरा हँसता मयंक
खनकदार स्‍वर में तेज गमक-ताल फागुनी

मेरा जिस्‍म फिर से नया रूप धर आया है
ताजगी बहुत है क्‍योंकि तुमने सजाया है

अन्‍धी थी दुनिया या मिट्टी भर अन्‍धकार
उम्र हो गई थी एक लगातार इन्‍तजार
जीना आसान हुआ तुमने जब दिया प्‍यार
हो गया उजेला-सा रोओं के आर-पार

एक दीप ने दूसरे को चमकाया है
रौशनी के लिए दीप तुमने जलाया है

कम न हुई, मरती रही केसर हर साँस से
हार गया वक्त मन की सतरंगी आँच से
कामनाएँ जीतीं जरा-मरण-विनाश से
मिल गया हरेक सत्‍य प्‍यार की तलाश से

थोड़े ही में मैंने सब कुछ भर पाया है
तुम पर वसन्‍त क्‍योंकि वैसा ही छाया है

~ गिरिजा कुमार माथुर

 
   March 31, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

आईने से कब तलक तुम



आईने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे
छाएंगे जब-जब अंधेरे, ख़ुद को तनहा पाओगे

हर हसीं मंज़र से यारो फ़ासले क़ायम रखो
चांद गर धरती पे उतरा, देख कर डर जाओगे

आरज़ू, अरमान, ख़्वाहिश, जुस्तजू, वादे, वफ़ा
दिल लगा कर तुम ज़माने भर के धोख़े खाओगे

आजकल फूलों के बदले संग की सौग़ात है
घर से निकलोगे सलामत, जख्म़ लेकर आओगे।

ज़िन्दगी के चन्द लमहे ख़ुद की ख़ातिर भी रखो
भीड़ में ज़्यादा रहे तो खु़द भी गुम हो जाओगे

~ दिनेश ठाकुर


   April 1, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

मनहर तारों की रात में

मनहर तारों की रात में
लख तारों की बारात में
पूछा चंदा से, बता-
जवानी किसको कहते हैं?

~ गोपालदास 'नीरज'

   April 2, 2013

हो कोई तेरे साथ में,
हाथ हो उसका हाथ में 
गर्मी तो हो जज़बात में 
पर शीतलता हो गात में 
अक्षय  हो कभी न मिट पाये 
कहानी उसको कहते हैं 
जवानी उसको कहते हैं

~ काशीनाथ, प्रयाग  

   April 2, 2013 at 8:04am  | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो



ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से
देखो बादल कहाँ आज बरसे।

फिर हुईं धड़कनें तेज़ दिल की
फिर वो गुज़रे हैं शायद इधर से।

मैं हर एक हाल में आपका हूँ
आप देखें मुझे जिस नज़र से।

ज़िन्दग़ी वो सम्भल ना सकेगी
गिर गई जो तुम्हारी नज़र से।

बिजलियों की तवाजों में ‘बेकल’
आशियाना बनाओ शहर से।
*तवाजों=मेहमानदारी

~ बेकल उत्साही


   April 3 2013  | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

इतना पास आके फिर ये



इतना पास आके फिर ये झिझकना कैसा
साथ निकले हैं तो फिर राह में थकना कैसा?

मेरे आंगन को भी खुशबू का कोई झोंका दे
सूने जंगल में ये फूलों का महकना कैसा?

रौशनी दी है तो सूरज की तरह दे मुझको
जुगनुओं की तरह थोड़ा सा चमकना कैसा?

मेरी पलकें मेरा आंचल मेरा तकिया छू लो
आंसुओं इस तरह आंखो में खटकना कैसा?

~ नसीम निकहत


   April 4, 2013  | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

बहुत कुछ याद आता है

कभी यादें, कभी बातें, कभी पिछली मुलाकातें
बहुत कुछ याद आता है तेरे इक याद आने से ।

~  नामालूम

   April 4, 2013  | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

नशीला चाँद आता है।


नशीला चाँद आता है।
नयापन रूप पाता है।

सवेरे को छिपाती रात अंचल में,
झलकती ज्‍योति निशि के नैन के जल में
मगर फिर भी उजेला छिप ना पाता है -
बिखर कर फैल जाता है।

तुम्‍हारे साथ हम भी लूट लें ये रूप के गजरे
किरण के फूल से गूँथे यहाँ पर आज जो बिखरे।
इन्‍हीं में आज धरती का सरल मन खिलखिलाता है।

छिपे क्‍यों हो इधर आओ।
भला क्‍या बात छिपने की,
नहीं फिर मिल सकेगी यह
नशीली रात मिलने की।

सुनो कोई हमारी बात को गर सुनाता है।
मिला कर गीत की कड़ियाँ हमारे मन मिलाता है।
नशीला चाँद आता है।

~ हरिनारायण व्यास


   April 5, 2013  | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

पैशानियों पे लिखे मुकद्दर



पैशानियों पे लिखे मुकद्दर नहीं मिले
दसतार क्या मिलेंगे जहां सर नहीं मिले
*दसतार=पगड़ी

आवारगी को डूबते सूरज से रब्त है
मग़रिब के बाद हम भी तो, घर नहीं मिले

कल आइनों का जश्न हुआ था तमाम रात
अंधे तमाशबीनों को पत्थर नहीं मिले

मैं चाहता था खुद से मुलाकात हो मगर
आईने मेरे क़द के बराबर नहीं मिले

परदेस जा रहे हो तो सब देखते चलो
मुमकिन है वापस आओ तो ये घर नहीं मिले

~ राहत 'इंदोरी'


   April 7, 2013  | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

किसने बाँसुरी बजाई


जनम-जनम की पहचानी वह तान कहाँ से आई !
किसने बाँसुरी बजाई

अंग-अंग फूले कदंब साँस झकोरे झूले
सूखी आँखों में यमुना की लोल लहर लहराई !
किसने बाँसुरी बजाई

जटिल कर्म-पथ पर थर-थर काँप लगे रुकने पग
कूक सुना सोए-सोए हिय मे हूक जगाई !
किसने बाँसुरी बजाई

मसक-मसक रहता मर्मस्‍थल मरमर करते प्राण
कैसे इतनी कठिन रागिनी कोमल सुर में गाई !
किसने बाँसुरी बजाई

उतर गगन से एक बार फिर पी कर विष का प्‍याला
निर्मोही मोहन से रूठी मीरा मृदु मुस्‍काई !
किसने बाँसुरी बजाई

~ जानकीवल्लभ शास्त्री


   April 7, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

किस्तों में मिले यार-दोस्त

किस्तों में मिले यार-दोस्त, प्यार औ रहबर
चलते जो सारी उम्र, हम-सफर नहीं मिले ।

~ अशोक सिंह 

   April 7, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

कभी मुझ को साथ लेकर





कभी मुझ को साथ लेकर, कभी मेरे साथ चल के
वो बदल गये अचानक, मेरी ज़िन्दगी बदल के

हुए जिस पे तुम मेहरबाँ, कोई ख़ुशनसीब होगा
मेरी हसरतें तो निकलीं, मेरे आँसूओं में ढल के

तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के क़ुर्बाँ, दिल-ए-ज़ार ढूँढता है
वही चम्पई उजाले, वही सुरमई धुंधलके

कोई फूल बन गया है, कोई चाँद कोई तारा
जो चिराग़ बुझ गये हैं, तेरी अंजुमन में जल के

मेरे दोस्तो ख़ुदारा, मेरे साथ तुम भी ढूँढो
वो यहीं कहीं छुपे हैं, मेरे ग़म का रुख़ बदल के

तेरी बेझिझक हँसी से, न किसी का दिल हो मैला
ये नगर है आईनों का, यहाँ साँस ले सम्भल के

~ अहसान बिन दानिश

 
   Apr 8, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

फूलों का अपना कोई परिवार



फूलों का अपना कोई परिवार नहीं होता
खुशबू का अपना कोई घर द्वार नहीं होता

इस दुनिया में अच्छे लोगों का ही बहुमत है
ऐसा अगर न होता ये संसार नहीं होता

कितने ही अच्छे हों कागज़ पानी के रिश्ते
कागज़ की नावों से दरिया पार नहीं होता


हिम्मत हारे तो सबकुछ ना-मुमकिन लगता है,
हिम्मत कर लें तो कुछ भी दुश्वार नहीं होता..

वो दीवारें घर जैसा सम्मान नहीं पातीं,
जिनमें कोई खिड़की कोई द्वार नहीं होता

~ अशोक रावत

   Apr 9, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

क्षण-भंगुरता के इस क्षण में



क्षण-भंगुरता के इस क्षण में, जीवन की गति जीवन का स्वर
दो सौ वर्षों की आयु में, क्या अधिक सुखी हो जाता नर ?
इस अमर धारा के आगे, बहने के हित ये सब नश्वर,
सृजनशील जीवन के स्वर में गाओ मरण-गीत तुम सुंदर
तुम कवि हो, यह फैल चले मृदु गीत निबल मानव के घर-घर
ज्योतित हों मुख नव आशा से, जीवन की गति, जीवन का स्वर ।

~ गजानन माधव 'मुक्तिबोध'


   Apr 10, 2013 | e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

तुम्हारा दिल मेरे दिल के



तुम्हारा दिल मेरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वह शीशा हो नहीं सकता यह पत्थर हो नहीं सकता

कभी नासेह की सुन लेता हु फिर बरसो तडपता हु
कभी होता है मुझसे सब्र अकसर हो नहीं सकता

यह मुमकिन है कि तुझ पर हो भी जाये अख्तियार अपना
मगर काबू हमारा अपने दिल पे हो नहीं सकता

जफ़ाए झेल कर आशिक करे माशूक को जालिम
वगरना बेसबब कोई सितमगर हो नहीं सकता

जफ़ाए दाग पर करते है वह यह भी समझते है
की ऐसा आदमी मुझको मय्यसर हो नहीं सकता

~ दाग देहलवी


   Apr 11, 2013|e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

जब जब हमने प्रश्न उठाये



जब -जब हमने प्रश्न उठाये

जब जब हमने प्रश्न उठाये
लगातार पत्थर ही पाए
क्यों घबराना प्रश्नों से
बिलकुल ही यह समझ न आये

न बना न देते उत्तर कोई
वार कटारी पर क्यों आये
प्रतिद्वंदिता रवि -कवी की
कौन किसे लघु -दीर्घ बताये

प्रश्नकर्ता की पत्री बांचे
क्या–क्या कारोबार चलाये
अवसर के औचित्य जांचें
कैसे पांडित्य दिखलाये

हर प्रश्न का उत्तर ही हो
हर कोई उसको दे भी पाए
यह तो बन गई मृग- तृष्णा
अब कैसे पथिक प्यास बुझाये


~ अमिता तिवारी  


   Apr 11, 2013|e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

बदरिया थम-थमकर झर री !



बदरिया थम-थमकर झर री !
सागर पर मत भरे अभागन
गागर को भर री !

बदरिया थम-थमकर झर री !
एक-एक, दो-दो बूँदों में
बंधा सिन्धु का मेला,
सहस-सहस बन विहंस उठा है
यह बूँदों का रेला।
तू खोने से नहीं बावरी,
पाने से डर री !

बदरिया थम-थमकर झर री!
जग आये घनश्याम देख तो,
देख गगन पर आगी,
तूने बूंद, नींद खितिहर ने
साथ-साथ ही त्यागी।
रही कजलियों की कोमलता
झंझा को बर री !

बदरिया थम-थमकर झर री !

~ माखनलाल चतुर्वेदी


   Apr 12, 2013 |e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh

कहने को इस कायनात में

एक, मेरी तरफ से भी ..,

कहने को कायनात में क्या कुछ भी है नहीं,
क्या देखने को रहता तुझे देखने के बाद ♥

ऐ हुस्न कैसी है ये अजब परदे की भी ज़िद,
रख पाये होश कौन तुझे देखने के बाद ♥


~ अशोक सिंह 

   Apr 12, 2013 |e-kavya.blogspot.com
   Submitted by: Ashok Singh