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Wednesday, December 28, 2022

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो


जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने,
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने।
*जुस्तजू=तलाश

सब का अहवाल वही है जो हमारा है आज,
ये अलग बात कि शिकवा किया तन्हा हम ने।
*अहवाल=हालात

ख़ुद पशीमान हुए, ना उसे शर्मिंदा किया,
इश्क़ की वज़्अ को क्या ख़ूब निभाया हम ने।
*वज़्अ=तौर-तरीक़ा

कौन सा क़हर ये आँखों पे हुआ है नाज़िल,
एक मुद्दत से कोई ख़्वाब न देखा हम ने।
* नाज़िल=आया हुआ

उम्र भर सच ही कहा सच के सिवा कुछ न कहा,
अज्र क्या इस का मिलेगा ये न सोचा हम ने।
*अज्र=सिला

~  शहरयार

Dec 28, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

 

Tuesday, December 20, 2022

गो ज़रा सी बात पर

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए

गर्मी-ए-महफ़िल फ़क़त इक नारा-ए-मस्ताना है
और वो ख़ुश हैं कि इस महफ़िल से दीवाने गए
*नारा-ए-मस्ताना=मस्ती मे कही हुई बात

मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रुस्वाई कहूँ
मुझ से पहले उस गली में मेरे अफ़्साने गए

वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर बन गईं
हम जहाँ पहुँचे हमारे साथ वीराने गए
*वहशत=पागलपन

यूँ तो वो मेरी रग-ए-जाँ से भी थे नज़दीक-तर
आँसुओं की धुँद में लेकिन न पहचाने गए

अब भी उन यादों की ख़ुश्बू ज़ेहन में महफ़ूज़ है
बार-हा हम जिन से गुलज़ारों को महकाने गए
*महफ़ूज़=सुरक्षित

क्या क़यामत है कि 'ख़ातिर' कुश्ता-ए-शब थे भी हम
सुब्ह भी आई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए
*कुश्ता-ए-शब=जिसका रात मे वध करना तय हो

~  ख़ातिर ग़ज़नवी

Dec 20, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, December 14, 2022

एक मिनट

 

हज़ार कहता रहा मैं कि यार एक मिनट,
किया न उस ने मिरा इंतिज़ार एक मिनट।

मैं जानता हूँ कि है ये ख़ुमार एक मिनट,
इधर भी आई थी मौज-ए-बहार एक मिनट।

पता चले कि हमें कौन कौन छोड़ गया,
ज़रा छटे तो ये गर्द-ओ-ग़ुबार एक मिनट।

अबद तलक हुए हम उस के वसवसों के असीर,
किया था जिस पे कभी ए'तिबार एक मिनट।

अगरचे कुछ नहीं औक़ात एक हफ़्ते की,
जो सोचिए तो हैं ये दस हज़ार एक मिनट।

फिर आज काम से ताख़ीर हो गई 'बासिर',
किसी ने हम से कहा बार बार एक मिनट।

~ बासिर सुल्तान काज़मी

Dec 14, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

 

Wednesday, December 7, 2022

सब कुछ अच्छा हो जाएगा


रफ़्ता रफ़्ता सब कुछ अच्छा हो जाएगा
इन-शाआल्लाह सब कुछ अच्छा हो जाएगा

आड़े-तिरछे मंज़र सीधे हो जाएँगे
उल्टा सीधा सब कुछ अच्छा हो जाएगा

दुख से सुख का रिश्ता जिस दिन जान गए हम
रोना हँसना सब कुछ अच्छा हो जाएगा

मिल जाएगा जब रस्तों से अपना रस्ता
आना जाना सब कुछ अच्छा हो जाएगा

जब रस्ते में उस की ख़ुशबू मिल जाएगी
रुकना, चलना सब कुछ अच्छा हो जाएगा

धुल जाएँगे सारे मंज़र धुल जाएँगे
हो जाएगा सब कुछ अच्छा हो जाएगा

लम्बे ठिगने एक बराबर हो जाएँगे
ऊँचा नीचा सब कुछ अच्छा हो जाएगा

माज़ी हाल और मुस्तक़िल के सब लम्हों में
नया पुराना सब कुछ अच्छा हो जाएगा

इक इक कर के सारी गिर्हें खुल जाएँगी
मेरी गुड़िया सब कुछ अच्छा हो जाएगा

प्यारा प्यारा निखरा निखरा उजला उजला
अच्छे बाबा सब कुछ अच्छा हो जाएगा

अच्छा अच्छा हो जाएगा सब कुछ अच्छा
अच्छा अच्छा सब कुछ अच्छा हो जाएगा

इमरान शमशाद नरमी

Dec 07, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Saturday, November 26, 2022

कोरे घड़े का पानी

 


हर-चंद बे-नवा है कोरे घड़े का पानी 
दीवान 'मीर' का है कोरे घड़े का पानी 
 
उपलों की आग अब तक हाथों से झाँकती है 
आँखों में जागता है कोरे घड़े का पानी 
 
जब माँगते हैं सारे अंगूर के शरारे 
अपनी यही सदा है कोरे घड़े का पानी 
 
काग़ज़ पे कैसे ठहरें मिसरे मिरी ग़ज़ल के 
लफ़्ज़ों में बह रहा है कोरे घड़े का पानी 
 
ख़ाना-ब-दोश छोरी तकती है चोरी चोरी 
उस का तो आइना है कोरे घड़े का पानी 
 
चिड़ियों सी चहचहाएँ पनघट पे जब भी सखियाँ 
चुप-चाप रो दिया है कोरे घड़े का पानी 
 
उस के लहू में शायद तासीर हो वफ़ा की 
जिस ने कभी पिया है कोरे घड़े का पानी 
 
इज़्ज़त ज़मीर मेहनत दानिश हुनर मोहब्बत 
लेकिन कभी बिका है कोरे घड़े का पानी 
 
देखूँ जो चाँदनी में लगता है मुझ को 'असलम
पिघली हुई दुआ है कोरे घड़े का पानी 
 
~  असलम कोलसरी

Nov 26, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, September 13, 2022

हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया


हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया

रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया 

 

कैसे जीते हैं ये किस तरह जिए जाते हैं

अहल-ए-दिल की बसर-औक़ात पे रोना आया 

 

जी नहीं आप से क्या मुझ को शिकायत होगी

हाँ मुझे तल्ख़ी-ए-हालात पे रोना आया 

 

हुस्न-ए-मग़रूर का ये रंग भी देखा आख़िर

आख़िर उन को भी किसी बात पे रोना आया 

 

कैसे मर मर के गुज़ारी है तुम्हें क्या मालूम

रात भर तारों भरी रात पे रोना आया 

 

कितने बेताब थे रिम-झिम में पिएँगे लेकिन

आई बरसात तो बरसात पे रोना आया 

 

हुस्न ने अपनी जफ़ाओं पे बहाए आँसू

इश्क़ को अपनी शिकायात पे रोना आया 

 

कितने अंजान हैं क्या सादगी से पूछते हैं

कहिए क्या मेरी किसी बात पे रोना आया 

 

अव्वल अव्वल तो बस एक आह निकल जाती थी

आख़िर आख़िर तो मुलाक़ात पे रोना आया 

 

'सैफ़' ये दिन तो क़यामत की तरह गुज़रा है

जाने क्या बात थी हर बात पे रोना आया

सैफ़ुद्दीन सैफ़

Nov 13, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

 

Thursday, August 25, 2022

तबीअ'त उदास है


साक़ी शराब ला कि तबीअ'त उदास है 

मुतरिब रुबाब उठा कि तबीअ'त उदास है 

 

रुक रुक के साज़ छेड़ कि दिल मुतमइन नहीं 

थम थम के मय पिला कि तबीअ'त उदास है 

 

चुभती है क़ल्ब ओ जाँ में सितारों की रौशनी 

ऐ चाँद डूब जा कि तबीअ'त उदास है 

 

मुझ से नज़र न फेर कि बरहम है ज़िंदगी 

मुझ से नज़र मिला कि तबीअ'त उदास है 

 

शायद तिरे लबों की चटक से हो जी बहाल 

ऐ दोस्त मुस्कुरा कि तबीअ'त उदास है 

 

मैं ने कभी ये ज़िद तो नहीं की पर आज शब 

ऐ मह-जबीं न जा कि तबीअ'त उदास है 

 

कैफ़िय्यत-ए-सुकूत से बढ़ता है और ग़म 

क़िस्सा कोई सुना कि तबीअ'त उदास है 

 

यूँही दुरुस्त होगी तबीअ'त तिरी 'अदम

कम-बख़्त भूल जा कि तबीअ'त उदास है 

अब्दुल हमीद अदम


Aug 25, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

 

Thursday, April 28, 2022

मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए


मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए,
मिरे आज़माने वाले मुझे आज़मा के रोए।

कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो कि फ़साना-ए-मोहब्बत,
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोए।

मिरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-ना-तवाँ की हसरत,
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोए।

तिरी बेवफ़ाइयों पर तिरी कज-अदाइयों पर,
कभी सर झुका के रोए कभी मुँह छुपा के रोए।

जो सुनाई अंजुमन में शब-ए-ग़म की आप-बीती,
कई रो के मुस्कुराए कई मुस्कुरा के रोए।

सैफ़ुद्दीन सैफ़


Apr 29, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Friday, April 22, 2022

रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया

 

हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया 

रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया 

 

कैसे जीते हैं ये किस तरह जिए जाते हैं 

अहल-ए-दिल की बसर-औक़ात पे रोना आया 

 

जी नहीं आप से क्या मुझ को शिकायत होगी 

हाँ मुझे तल्ख़ी-ए-हालात पे रोना आया 

 

हुस्न-ए-मग़रूर का ये रंग भी देखा आख़िर 

आख़िर उन को भी किसी बात पे रोना आया 

 

कैसे मर मर के गुज़ारी है तुम्हें क्या मालूम 

रात भर तारों भरी रात पे रोना आया 

 

कितने बेताब थे रिम-झिम में पिएँगे लेकिन 

आई बरसात तो बरसात पे रोना आया 

 

हुस्न ने अपनी जफ़ाओं पे बहाए आँसू 

इश्क़ को अपनी शिकायात पे रोना आया 

 

कितने अंजान हैं क्या सादगी से पूछते हैं 

कहिए क्या मेरी किसी बात पे रोना आया 

 

अव्वल अव्वल तो बस एक आह निकल जाती थी 

आख़िर आख़िर तो मुलाक़ात पे रोना आया 

 

'सैफ़ये दिन तो क़यामत की तरह गुज़रा है 

जाने क्या बात थी हर बात पे रोना आया 

 

सैफ़ुद्दीन सैफ़


Apr 22, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, April 6, 2022

राह आसान हो गई होगी

 

राह आसान हो गई होगी,
जान पहचान हो गई होगी।

मौत से तेरे दर्द-मंदों की,
मुश्किल आसान हो गई होगी।

फिर पलट कर निगह नहीं आई,
तुझ पे क़ुर्बान हो गई होगी।

तेरी ज़ुल्फ़ों को छेड़ती थी सबा,
ख़ुद परेशान हो गई होगी।
*सबा=सुबह की हवा

उन से भी छीन लोगे याद अपनी,
जिन का ईमान हो गई होगी।

दिल की तस्कीन पूछते हैं आप,
हाँ मिरी जान हो गई होगी।
*तसकीन=सांत्वना

मरने वालों पे 'सैफ़' हैरत क्यूँ,
मौत आसान हो गई होगी।

~ सैफ़ुद्दीन सैफ़

Apr 06, 2022 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh