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Sunday, May 21, 2023

बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता


बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता,
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता।

सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें,
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता।

वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में,
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता।

मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा,
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता।

वो ख़्वाब जो बरसों से न चेहरा न बदन है,
वो ख़्वाब हवाओं में बिखर क्यूँ नहीं जाता।

~ निदा फ़ाज़ली 

May 21, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, May 9, 2023

कभी कभी तो बहुत याद आने लगते हो

 

कभी कभी तो बहुत याद आने लगते हो,
कि रूठते हो कभी और मनाने लगते हो।
गिला तो ये है तुम आते नहीं कभी लेकिन,
जब आते भी हो तो फ़ौरन ही जाने लगते हो।
ये बात 'जौन' तुम्हारी मज़ाक़ है कि नहीं,
कि जो भी हो उसे तुम आज़माने लगते हो।
तुम्हारी शाइ'री क्या है बुरा भला क्या है,
तुम अपने दिल की उदासी को गाने लगते हो।
सुरूद-ए-आतिश-ए-ज़र्रीन-ए-सहन-ए-ख़ामोशी,
वो दाग़ है जिसे हर शब जलाने लगते हो।
सुना है काहकशानों में रोज़-ओ-शब ही नहीं,
तो फिर तुम अपनी ज़बाँ क्यूँ जलाने लगते हो
*काहकशानों=आकाश गंगा

~ जौन एलिया

May 09, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

 

Monday, May 8, 2023

इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर

 

 
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है
ज़मीं पे बैठ के क्या आसमान देखता है

मिला है हुस्न तो इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर
सँभल के चल तुझे सारा जहान देखता है

कनीज़ हो कोई या कोई शाहज़ादी हो
जो इश्क़ करता है कब ख़ानदान देखता है

घटाएँ उठती हैं बरसात होने लगती है
जब आँख भर के फ़लक को किसान देखता है

यही वो शहर जो मेरे लबों से बोलता था
यही वो शहर जो मेरी ज़बान देखता है

मैं जब मकान के बाहर क़दम निकालता हूँ
अजब निगाह से मुझ को मकान देखता है

~ शकील आज़मी

May 08, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh