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Friday, October 13, 2023

वो तो ख़ुश्बू है

 

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
दिल को क्यूँ ज़िद है कि आग़ोश में भरना है उसे।
क्यूँ सदा पहने वो तेरा ही पसंदीदा लिबास
कुछ तो मौसम के मुताबिक़ भी सँवरना है उसे ।
उस को गुलचीं की निगाहों से बचाए मौला
वो तो ग़ुंचा है अभी और निखरना है उसे।
हर तरफ़ चाहने वालों की बिछी हैं पलकें
देखिए कौन से रस्ते से गुज़रना है उसे ।
दिल को समझा लें अभी से तो मुनासिब होगा
इक न इक रोज़ तो वादे से मुकरना है उसे।
हम ने तस्वीर है ख़्वाबों की मुकम्मल कर ली
एक रंग-ए-हिना बाक़ी है जो भरना है उसे ।
ख़्वाब में भी कभी छूना तो वज़ू कर के 'सदा'
कभी मैला कभी रुस्वा नहीं करना है उसे ।
 
#सदाअम्बालवी

Oct 13, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Sunday, May 21, 2023

बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता


बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता,
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता।

सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें,
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता।

वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में,
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता।

मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा,
जाते हैं जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता।

वो ख़्वाब जो बरसों से न चेहरा न बदन है,
वो ख़्वाब हवाओं में बिखर क्यूँ नहीं जाता।

~ निदा फ़ाज़ली 

May 21, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Tuesday, May 9, 2023

कभी कभी तो बहुत याद आने लगते हो

 

कभी कभी तो बहुत याद आने लगते हो,
कि रूठते हो कभी और मनाने लगते हो।
गिला तो ये है तुम आते नहीं कभी लेकिन,
जब आते भी हो तो फ़ौरन ही जाने लगते हो।
ये बात 'जौन' तुम्हारी मज़ाक़ है कि नहीं,
कि जो भी हो उसे तुम आज़माने लगते हो।
तुम्हारी शाइ'री क्या है बुरा भला क्या है,
तुम अपने दिल की उदासी को गाने लगते हो।
सुरूद-ए-आतिश-ए-ज़र्रीन-ए-सहन-ए-ख़ामोशी,
वो दाग़ है जिसे हर शब जलाने लगते हो।
सुना है काहकशानों में रोज़-ओ-शब ही नहीं,
तो फिर तुम अपनी ज़बाँ क्यूँ जलाने लगते हो
*काहकशानों=आकाश गंगा

~ जौन एलिया

May 09, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

 

Monday, May 8, 2023

इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर

 

 
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है
ज़मीं पे बैठ के क्या आसमान देखता है

मिला है हुस्न तो इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर
सँभल के चल तुझे सारा जहान देखता है

कनीज़ हो कोई या कोई शाहज़ादी हो
जो इश्क़ करता है कब ख़ानदान देखता है

घटाएँ उठती हैं बरसात होने लगती है
जब आँख भर के फ़लक को किसान देखता है

यही वो शहर जो मेरे लबों से बोलता था
यही वो शहर जो मेरी ज़बान देखता है

मैं जब मकान के बाहर क़दम निकालता हूँ
अजब निगाह से मुझ को मकान देखता है

~ शकील आज़मी

May 08, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

 

Friday, April 7, 2023

दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे

 

दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे,
उदासियों में भी चेहरा खिला खिला ही लगे।

वो सादगी न करे कुछ भी तो अदा ही लगे,
वो भोल-पन है कि बेबाकी भी हया ही लगे।

ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है,
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे ।

नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही,
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे ।

अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है,
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे।

हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा,
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे ।

हज़ारों भेस में फिरते हैं राम और रहीम,
कोई ज़रूरी नहीं है भला भला ही लगे ।

~ बशीर बद्र

 April 07, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

 

Thursday, April 6, 2023

बे-क़रारी सी बे-क़रारी है

 

बे-क़रारी सी बे-क़रारी है,
वस्ल है और फ़िराक़ तारी है।

जो गुज़ारी न जा सकी हम से,
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।

निघरे क्या हुए कि लोगों पर,
अपना साया भी अब तो भारी है।

बिन तुम्हारे कभी नहीं आई,
क्या मिरी नींद भी तुम्हारी
है।

आप में कैसे आऊँ मैं तुझ बिन,
साँस जो चल रही है आरी है।

उस से कहियो कि दिल की गलियों में,
रात दिन तेरी इंतिज़ारी है।

हिज्र हो या विसाल हो कुछ हो,
हम हैं और उस की यादगारी है।

इक महक सम्त-ए-दिल से आई थी,
मैं ये समझा तिरी सवारी है।

हादसों का हिसाब है अपना,
वर्ना हर आन सब की बारी है।

ख़ुश रहे तू कि ज़िंदगी अपनी,
उम्र भर की उमीद-वारी है।

~ जौन एलिया

April 06, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh 

Monday, April 3, 2023

शोला हूँ भड़कने की गुज़ारिश नहीं करता


शोला हूँ भड़कने की गुज़ारिश नहीं करता,
सच मुँह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता।

गिरती हुई दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन,
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता।
*परस्तिश=पूजा, आराधना

माथे के पसीने की महक आये न जिस से,
वो ख़ून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता।
*गर्दिश=घुमाव, चक्कर

हमदर्दी-ए-अहबाब से डरता हूँ 'मुज़फ़्फ़र',
मैं ज़ख़्म तो रखता हूँ नुमाइश नहीं करता।
*हमदर्दी-ए-अहबाब=दोस्तों की सहानुभूति

~ मुज़फ़्फ़र वारसी

April 03, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Thursday, March 30, 2023

शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है



तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है,
तलाश में है सहर बार बार गुज़री है।
*शब=रात्रि
जुनूँ में जितनी भी गुज़री ब-कार गुज़री है,
अगरचे दिल पे ख़राबी हज़ार गुज़री है।
*ब-कार=व्यस्त
हुई है हज़रत-ए-नासेह से गुफ़्तुगू जिस शब,
वो शब ज़रूर सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है।
*हज़रत-ए-नासेह=उपदेशक; सर-ए-कू-ए-यार=प्रेमिका की गली की ओर
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था,
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है।
न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है,
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है।
चमन पे ग़ारत-ए-गुल-चीं से जाने क्या गुज़री,
क़फ़स से आज सबा बे-क़रार गुज़री है।
*ग़ारत=लूटपाट; गुल-चीं=माली; क़फ़स=पिंजरा; सबा=प्रात: की हवा
~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

March 30, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है


रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है।
एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में,
वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है, चल पड़ता है।
अपनी ता'बीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब,
रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है।
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो,
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है।
~ राहत इंदौरी

March 30, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Tuesday, February 28, 2023

अहाहाहा अहाहाहा

 

मय-ओ-साक़ी हैं सब यकजा अहाहाहा अहाहाहा
अजब आलम है मस्ती का अहाहाहा अहाहाहा
*यकजा=एक साथ

बहार आई तुड़ाने फिर लगे ज़ंजीर दीवाने
हुआ शोर-ए-जुनूँ बरपा अहाहाहा अहाहाहा

जिन आँखों ने न देखा था कभी यक अश्क का क़तरा
चले हैं उस से अब दरिया अहाहाहा अहाहाहा

मिरे घर इस हवा में साक़ी-ओ-मुत्रिब अगर होते
तो कैसे मय-कशी करता अहाहाहा अहाहाहा
*साक़ी-ओ-मुत्रिब=शराब पिलानेवाला (ली) और संगीतज्ञ

किया 'बेदार' से आशिक़ को तू ने क़त्ल ऐ ज़ालिम
कोई करता है काम ऐसा अहाहाहा अहाहाहा  

~  मीर मोहम्मदी बेदार

Feb 28, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Friday, February 24, 2023

पहले तो उस की ज़ात ग़ज़ल में समेट लूँ

पहले तो उस की ज़ात ग़ज़ल में समेट लूँ
फिर सारी काएनात ग़ज़ल में समेट लूँ

होते हैं रूनुमा जो ज़माने में रोज़-ओ-शब
वो सारे हादसात ग़ज़ल में समेट लूँ

पहले तो मैं ग़ज़ल में कहूँ अपने दिल की बात
फिर सब के दिल की बात ग़ज़ल में समेट लूँ

कोई ख़याल ज़ेहन से बच कर न जा सके
सारे तसव्वुरात ग़ज़ल में समेट लूँ

'जौहर' वो बात जिस का तअ'ल्लुक़ हो ज़ीस्त से
ऐसी हर एक बात ग़ज़ल में समेट लूँ

~ चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी

Feb 24, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Tuesday, February 14, 2023

जिन ने देखा कहा अहा-हाहा

 

हुस्न उस शोख़ का अहा-हाहा
जिन ने देखा कहा अहा-हाहा

ज़ुल्फ़ डाले है गर्दन-ए-दिल में
दाम क्या क्या बढ़ा अहा-हाहा

आन पर आन वो अजी ओ हो
और अदा पर अदा अहा-हाहा

नाज़ से जो न हो वो करती है
चुपके चुपके हया अहा-हाहा

ताइर-ए-दिल पे उस का बाज़-ए-निगाह
जिस घड़ी आ पड़ा अहा-हाहा

उस की फुरती और उस की लप-छप का
क्या तमाशा हुआ अहा-हाहा

बज़्म-ए-ख़ूबाँ में जब गया वो शोख़
अपनी सज-धज बना अहा-हाहा

की ओ हो-हो किसी ने देख 'नज़ीर'
कोई कहने लगा अहा-हाहा

~  नज़ीर अकबराबादी 

Feb 14, 2023 | e-kavya.blogspot.com
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Wednesday, January 4, 2023

कौन आएगा यहाँ कोई न आया होगा

 


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

न आएगा यहाँ कोई न आया होगा,
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा।
 
दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क,
कोई ख़त ले के पड़ोसी के घर आया होगा।

इस गुलिस्ताँ की यही रीत है ऐ शाख़-ए-गुल,
तू ने जिस फूल को पाला वो पराया होगा।

दिल की क़िस्मत ही में लिक्खा था अंधेरा शायद,
वर्ना मस्जिद का दिया किस ने बुझाया होगा।

गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो,
आँधियो तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा।

खेलने के लिए बच्चे निकल आए होंगे,
चाँद अब उस की गली में उतर आया होगा।

'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ,
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा।

~  कैफ़ भोपाली

Jan 04, 2023 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh