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Saturday, February 27, 2016

जान हम तुझ पे दिया करते हैं




जान हम तुझ पे दिया करते हैं
नाम तेरा ही लिया करते हैं

चाक करने क लिए ऐ नासेह
हम गरेबान सिया करते हैं
*नासेह=सलाहकार

साग़र-ए-चश्म से हम बादा-परस्त
मय-ए-दीदार पिया करते हैं
*साग़र-ए-चश्म=आंखों के सागर; बादा-परस्त=मय की लत

ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं

कल न देगा कोई मिट्टी भी उन्हें
आज ज़र जो कि दिया करते हैं
*ज़र==धन

दफ़्न महबूब जहाँ हैं 'नासिख़'
क़ब्रें हम चूम लिया करते हैं

~ इमाम बख़्श 'नासिख'


  Feb 26, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

जब हमदम-ओ-हमराज़ था

जब हमदम-ओ-हमराज़ था
तब और ही अंदाज़ था
अब सोज़ है तब साज़ था
अब शर्म है तब नाज़ था

अब मुझ से हो तो हो भी क्या
है साथ वो तो वो भी क्या
इक बे-हुनर इक बे-समर
मैं और मिरी आवारगी
~ जावेद अख़्तर


~ जावेद अख़्तर


  Feb 26, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

इस एक बूँद आँसू में



इस एक बूँद आँसू में
चाहे साम्राज्य बहा दो
वरदानों की वर्षा से
यह सूनापन बिखरा दो

इच्छा‌ओं की कम्पन से
सोता एकान्त जगा दो,
आशा की मुस्कानो पर
मेरा नैराश्य लुटा दो ।

चाहे जर्जर तारों में
अपना मानस उलझा दो,
इन पलकों के प्यालो में
सुख का आसव छलका दो

मेरे बिखरे प्राणों में
सारी करुणा ढुलका दो,
मेरी छोटी सीमा में
अपना अस्तित्व मिटा दो !

पर शेष नहीं होगी यह
मेरे प्राणों की क्रीड़ा,
तुमको पीड़ा में ढूँढा
तुम में ढूँढूँगी पीड़ा !

~ महादेवी वर्मा


  Feb 26, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

हमसे रौशन हैं चाँद और तारे

हमसे रौशन हैं चाँद और तारे
हम को दामन समझिये न ग़ैरत का
उठ गये हम गर ज़माने से
नाम मिट जायेगा मुहब्बत का

दिल है नाज़ुक, कली से फूलों से
यह न टूटे, ख़याल रखियेगा
और अगर आप से ये टूट गया
जान-ए-जाँ इतना ही समझियेगा

फिर कोई बावरी मुहब्बत की
अपनी ज़ुल्फ़ें नहीं सँवारेगी
आरती फिर किसी कन्हैया की
कोई राधा नहीं उतारेगी.

~ नूर देवासी


  Feb 25, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

आओ हुज़ूर तुमको, सितारों में ले चलूँ



आओ हुज़ूर तुमको, सितारों में ले चलूँ
दिल झूम जाए ऐसी, बहारों में ले चलूँ

हमराज़ हमख़याल तो हो, हमनज़र बनो
तय होगा ज़िंदगी का सफ़र, हमसफ़र बनो
चाहत के उजले उजले, नज़ारों में ले चलूँ
दिल झूम जाए ऐसी, बहारों में ले चलूँ

लिख दो किताब-ए-दिल पे कोई ऐसी दास्ताँ
जिसकी मिसाल दे न सके सातों आसमाँ
बाहों में बाहें डाले, हज़ारों में ले चलूँ
दिल झूम जाये ऐसी, बहारों में ले चलूँ

~ नूर देवासी


  Feb 25, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

हुस्न की हर इक अदा पे

हुस्न की हर इक अदा पे जानो-दिल सदके मगर
लुत्फ कुछ दामन बचाकर ही गुजर जाने में है

~ जिगर मुरादाबादी

  Feb 23, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

तेरी महफ़िल, तेरा जल्वा




तेरी महफ़िल, तेरा जल्वा, तेरी सूरत देख ली
मेरी आँखों ने इसी, दुनिया में जन्नत देख ली।

ऐ मेरी जान-ए-तमन्ना, ऐ मेरी जान-ए-वफ़ा
प्यार की मंज़िल दिखा दी तूने, तेरा शुक्रिया
तेरे दर पे मुस्कुराती, मैंने क़िस्मत देख ली।

एक दिल औ उस पे लाखों गिरने वाली बिजलियाँ
ये जवानी, ये अदायें, ये तड़प, ये शोखियाँँ
सर से लेकर पाँव तक मैंने क़यामत देख ली।

उम्र भर ज़िंदा रहूँगा मैं सहारे पर तेरे
ज़िंदगी अपनी लुटा दुँगा इशारे पर तेरे
मैंने तेरी मस्त नज़रों में मुहब्बत देख ली।

~ शकील बदायूँनी


  Feb 23, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

कभी बे-दाम ठहरावें

कभी बे-दाम ठहरावें कभी ज़ंजीर करते हैं
ये ना-शाएर तिरी ज़ुल्फ़ाँ कूँ क्या क्या नाम धरते हैं

~ आबरू शाह मुबारक

  Feb 21, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

आज मानव का सुनहला प्रात है



आज मानव का सुनहला प्रात है,
आज विस्मृत का मृदुल आघात है;
आज अलसित और मादकता-भरे,
सुखद सपनों से शिथिल यह गात है;

मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो,
आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो ।

आज सौरभ में भरा उच्छ्‌वास है,
आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है;
आज शतदल पर मुदित सा झूलता,
कर रहा अठखेलियाँ हिमहास है;

लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड दो
आज मिल लो, मान करना छोड दो ।

आज मधुकर कर रहा मधुपान है,
आज कलिका दे रही रसदान है;
आज बौरों पर विकल बौरी हुई,
कोकिला करती प्रणय का गान है;

यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो
आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो ।

आज नयनों में भरा उत्साह है,
आज उर में एक पुलकित चाह है;
आज श्चासों में उमड़कर बह रहा,
प्रेम का स्वच्छन्द मुक्त प्रवाह है;

डूब जायें देवि, हम-तुम एक हो
आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो ।

~ भगवतीचरण वर्मा


  Feb 21, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

हो गुल बलबल तभी बुलबुल

हो गुल बलबल तभी बुलबुल
पे बुलबुल फूल कर गुल हो
तिरे गर गुल-बदन बर में
क़बा-ए-चश्म-ए-बुलबुल हो


*बलबल= बेक़रार होना
  बर=जिस्म
  क़बा=लबादा
  क़बा-ए-चश्म-ए-बुलबुल=रेशमी कपड़े से बना हुआ लबादा जिसमें चौकोर खाने होते हैं और हर खाने में आंख    होती है

~ इश्क़ औरंगाबादी


  Feb 20, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

तुम तूफान समझ पाओगे



तुम तूफान समझ पाओगे ?

गीले बादल, पीले रजकण,
सूखे पत्ते, रूखे तृण घन
लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे ?

गंध-भरा यह मंद पवन था,
लहराता इससे मधुवन था,
सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?
तुम तूफान समझ पाओगे ?

तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,
नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,
जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम, उड़ जाओगे !
तुम तूफान समझ पाओगे ?

~ हरिवंशराय बच्चन


  Feb 20, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

वस्ल में ख़ाली हुई ग़ैर से महफ़िल

वस्ल में ख़ाली हुई ग़ैर से महफ़िल तो क्या
शर्म भी जाए तो मैं जानूँ कि तन्हाई हुई

*वस्ल=मिलन

~ अमीर मीनाई

  Feb 19, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

बरसों से तिरा ज़िक्र तिरा नाम

बरसों से तिरा ज़िक्र तिरा नाम नहीं है
लेकिन ये हक़ीक़त है कि आराम नहीं है

~ निसार इटावी


  Feb 19, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

कोई तारा फलक से जब टूटा

कोई तारा फलक से जब टूटा
एक चश्मा ज़मीन से फूटा

मैने फेंका था जिसको दुश्मन पर
उसी पत्थर से मेरा सर फूटा

अपनी नज़रों से यूँ गिरा हूँ सबा
जैसे हाथों से आसमाँ छूटा

~ सबा सीकरी


  Feb 18, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

जलने वाले तो जल बुझे आख़िर

आख़िरी टीस आज़माने को
जी तो चाहा था मुस्कुराने को

जलने वाले तो जल बुझे आख़िर
कौन देता ख़बर ज़माने को

कितने मजबूर हो गये होंगे
अनकही बात मुँह पे लाने को

खुल के हँसना तो सब को आता है
लोग तरसते रहे इक बहाने को

रेज़ा रेज़ा बिखर गया इन्साँ
दिल की वीरानियाँ जताने को

हाथ काँटों से कर लिये ज़ख़्मी
फूल बालों में इक सजाने को

~ अदा ज़ाफ़री


  Feb 17, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

ये दिल ही था जो सह गया


ये दिल ही था जो सह गया
वो बात ऐसी कह गया
कहने को फिर क्या रह गया
अश्कों का दरिया बह गया

जब कह के वो दिलबर गया
तेरे लिए मैं मर गया
रोते हैं उस को रात भर
मैं और मिरी आवारगी

~ जावेद अख़्तर


  Feb 16, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

बुझ गई तपते हुए दिन की अगन




बुझ गई तपते हुए दिन की अगन
साँझ ने चुपचाप ही पी ली जलन
रात झुक आई पहन उजला वसन
प्राण तुम क्यों मौन हो कुछ गुनगुनाओ
चांदनी के फूल चुन मुस्कुराओ।

एक नीली झील सा फैला अचल
आज ये आकाश है कितना सजल
चाँद जैसे रूप का उभरा कमल
रात भर इस रूप का जादू जगाओ
प्राण तुम क्यों मौन हो कुछ गुनगुनाओ।

चल रहा है चैत का चंचल पवन
बाँध लो बिखरे हुए उंदल सघन
आज लो कजरा उदास है नयन
मांग भर लो भाल पर बिंदिया सजाओ
प्राण तुम क्यों मौन हो कुछ गुनगुनाओ।

~ प. विनोद शर्मा


  Feb 16, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

एक अन्धेरा लाख सितारे




 
एक अन्धेरा लाख सितारे, एक निराशा लाख सहारे
सबसे बड़ी सौगात है जीवन नादाँ जो जीवन से हारे

दुनिया की ये बगिया ऐसी जितने काँटे फूल भी उतने
दामन में खुद आ जायेंगे, जिनकी तरफ तू हाथ पसारे

बीते हुए कल की खातिर तू, आने वाला कल मत खोना
जाने कौन कहा से आकर, राहें तेरी फिर से सवारे

दुःख से अगर पहचान न हो तो कैसा सुख और कैसी खुशियाँ
तूफानो से लड़कर ही तो लगते हैं साहिल इतने प्यारे

~ इंदीवर


  Feb 15, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Monday, February 15, 2016

आए महंत वसंत।



मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला
बैठे किंशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला
चंवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत
आए महंत वसंत।
*किंशुक=पलाश फूल; चंवर

श्रद्धानत तरुओं की अंजलि से झरे पात
कोंपल के मुँदे नयन थर-थर-थर पुलक गात
अगरु धूम लिए घूम रहे सुमन दिग-दिगंत
आए महंत वसंत।
*अगरु=सुगन्धित वृक्ष

खड़ खड़ खड़ताल बजा नाच रही बिसुध हवा
डाल डाल अलि पिक के गायन का बँधा समा
तरु तरु की ध्वजा उठी जय जय का है न अंत
आए महंत वसंत।

~ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना


  Feb 15, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

आप से गिला आप की क़सम

आप से गिला आप की क़सम
सोचते रहे कर सके न हम

उस की क्या ख़ता, ला-दवा है गम़
क्यूं गिला करें चारागर से हम
*ला-दवा=लाइलाज़; चारागर=वैद्य 


ये नवाज़िशें और ये करम
फ़र्त-ए-शौक़ से मर न जाएँ हम
*नवाज़िश=मेहरबानी; फ़र्त-ए-शौक़=प्रिय वस्तु का लालच

खींचते रहे उम्र भर मुझे
इक तरफ़ ख़ुदा इक तरफ़ सनम

ये अगर नहीं यार की गली
चलते चलते क्यूँ रुक गए क़दम

~ सबा सीकरी

  Feb 11, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, February 10, 2016

याद है इक दिन.....!


याद है इक दिन
मेरी मेज़ पे बैठे-बैठे
सिगरेट की डिबिया पर तुमने
छोटे से एक पौधे स्केच बनाया था,
आकर देखो
उस पौधे पर फूल आया है !


~ गुलज़ार
  Feb 10, 2015|e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

ये खेल होगा नहीं दुबारा



ये ज़िन्दगी
आज जो तुम्हारे
बदन की छोटी-बड़ी नसों में
मचल रही है
तुम्हारे पैरों से चल रही है
तुम्हारी आवाज़ में ग़ले से निकल रही है
तुम्हारे लफ़्ज़ों में ढल रही है

ये ज़िन्दगी
जाने कितनी सदियों से
यूँ ही शक्लें
बदल रही है

बदलती शक्लों
बदलते जिस्मों में
चलता-फिरता ये इक शरारा
जो इस घड़ी
नाम है तुम्हारा
इसी से सारी चहल-पहल है
इसी से रोशन है हर नज़ारा

सितारे तोड़ो या घर बसाओ
अलम उठाओ या सर झुकाओ

तुम्हारी आँखों की रोशनी तक
है खेल सारा

ये खेल होगा नहीं दुबारा
ये खेल होगा नहीं दुबारा

~ निदा फ़ाज़ली


  Feb 10, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

यही है ज़िन्दगी - कुछ ख़्वाब

यही है ज़िन्दगी - कुछ ख़्वाब, चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको, तो चलो

~ निदा फ़ाज़ली

  Feb 09, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

वह एक तुम, तुम्हें फूलों पै भी

वह एक तुम, तुम्हें फूलों पै भी न आई नींद,
वह एक मैं, मुझे कांटों पै भी इज्तिराब न था।

*इज्तिराब=व्याकुलता, बेचैनी

~ नैयर अकबराबाजदी


  Feb 08, 2016| e-kavya.blogspot.com
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बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास

बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास,
पिला यों, बढ़ती जाए प्यास
सुनेगा तू ही यदि न पुकार
मिलेगा कैसे मुझको पार!
स्वप्न मादक प्याली में आज
डुबा दे लोक-लाज, जग काज,
हुआ जीवन से सखे निराश
बाँध ले, मादक निज भुज पाश!

~ सुमित्रानंदन पंत

  Feb 09, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Friday, February 5, 2016

सो न सकूँगा और न तुझको सोने दूँगा



सो न सकूँगा और न तुझको सोने दूँगा, हे मन बीने।

इसीलिए क्या मैंने तुझसे
साँसों के संबंध बनाए,
मैं रह-रहकर करवट लूँ तू
मुख पर डाल केश सो जाए,
रैन अँधेरी, जग जा गोरी,
माफ़ आज की हो बरजोरी
सो न सकूँगा और न तुझको सोने दूँगा, हे मन बीने।

सेज सजा सब दुनिया सोई
यह तो कोई तर्क नहीं है,
क्या मुझमें-तुझमें, दुनिया में
सच कह दे, कुछ फर्क नहीं है,
स्वार्थ-प्रपंचों के दुःस्वप्नों
में वह खोई, लेकिन मैं तो
खो न सकूँगा और न तुझको खोने दूँगा, हे मन बीने।
सो न सकूँगा और न तुझको सोने दूँगा, हे मन बीने।

~ हरिवंशराय बच्चन


  Feb 06, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

उमर दो दिन का यह संसार

उमर दो दिन का यह संसार
लबालब भर ले उर भृंगार!
क्षणिक जीवन यौवन का मेल
सुरा प्याली का फेनिल खेल!
देख, वन के फूलों की डाल
ललक खिलती, झरती तत्काल!
व्यर्थ मत चिन्ता कर, नादान
पान कर मदिराधर कर पान!


~ सुमित्रानंदन पंत

  Feb 05, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

Wednesday, February 3, 2016

रम्य मधुवन हो स्वर्ग समान,

रम्य मधुवन हो स्वर्ग समान,
सुरा हो, सुरबाला का गान!
तरुण बुलबुल की विह्वल तान
प्रणय ज्वाला से भर दे प्राण!
न विधि का भय, जगत का ज्ञान
स्वर्ग का लोभ, नरक का ध्यान
मदिर चितवन पर दूँ जग वार
चूम अधरों की मदिरा-धार!


~ सुमित्रानंदन पंत

  Feb 03, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

सरिता से बहते जाते

सरिता से बहते जाते
चंचल जीवन पल,
आदि अंत अज्ञात
ज्ञात बस फेनिल कल-कल!
हार गए सब खोज
मिली पर थाह न निस्तल,
डूब गया जो, पाया
उसने भेद, वह सफल!


~ सुमित्रानंदन पंत

  Feb 02, 2016| e-kavya.blogspot.com
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आओ .... कबड्डी खेलते हैं ..



लकीरें हैं तो रहने दो
किसी ने रूठ के गुस्से में शायद खींच दी थी
इन्हीं को अब बनाओ पाला
और आओ
कबड्डी खेलते हैं
मेरे पाले में तुम आओ
मुझे ललकारो
मेरे हाथ पर तुम हाथ मारो और भागो
तुम्हें पकडूं , लपेटूँ , टांग खींचूँ
और तुम्हें वापिस न जाने दूँ
तुम्हारे पाले में जब कौडी कौडी करता जाऊँ मैं
मुझे तुम भी पकड़ लेना
मुझे छूने न देना वो सरहद की लकीरें
किसी ने गुस्से में जो खींच दी थी
उन्हीं को अब बनाओ पाला
और आओ .... कबड्डी खेलते हैं ....!

~ गुलज़ार


  Feb 02, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

कहो तो क्यूँ है ये बनना

कहो तो क्यूँ है ये बनना - सँवरना
मिरी जाँ जान लोगे क्या किसी की।

~ नामालूम

  Feb 01, 2016| e-kavya.blogspot.com
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Monday, February 1, 2016

सवेरे उठा तो धूप खिल कर




सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गयी थी
और एक चिड़िया अभी-अभी गा गयी थी ।

मैने धूप से कहा: मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार
चिड़िया से कहा: थोड़ी मिठास उधार दोगी?
मैने घास की पत्ती से पूछा: तनिक हरियाली दोगी तिनके की नोक-भर?
शंखपुष्पी से पूछा: उजास दोगी-किरण की ओक-भर?
मैने हवा से माँगा: थोड़ा खुलापन-बस एक प्रश्वास;
लहर से: एक रोम की सिरहन-भर उल्लास ।
मैने आकाश से माँगी
आँख की झपकी-भर असीमता - उधार ।

सब से उधार माँगा, सब ने दिया ।
यों मैं जिया और जीता हूँ
क्योंकि यही सब तो है जीवन
गरमाई, मिठास, हरियाली, उजाला,
गन्धवाही मुक्त खुलापन, लोच, उल्लास, लहरिल प्रवाह,
और बोध भव्य निर्व्यास निस्सीम का:
ये सब उधार पाये हुए द्रव्य ।

रात के अकेले अन्धकार में
सामने से जागा जिस में
एक अनदेखे अरूप ने पुकार कर मुझ से पूछा था: क्यों जी,
तुम्हारे इस जीवन के
इतने विविध अनुभव हैं
इतने तुम धनी हो,
तो मुझे थोड़ा प्यार दोगे उधार, जिसे मैं
सौगुने सूद के साथ लौटाऊँगा
और वह भी सौ-सौ बार गिन के
जब-जब आऊँगा?
मैने कहा: प्यार? उधार?
स्वर अचकचाया था, क्योंकि मेरे
अनुभव से परे था ऐसा व्यवहार ।

उस अनदेखे अरूप ने कहा: हाँ,
क्योंकि ये ही सब चीज़ें तो प्यार हैं
यह अकेलापन, यह अकुलाहट, यह असमंजस, अचकचाहट,
आर्त, अनुभव,यह खोज, यह द्वैत, यह असहाय विरह व्यथा,
यह अन्धकार में जाग कर सहसा पहचानना कि
जो मेरा है वही ममेतर है
यह सब तुम्हारे पास है
तो थोड़ा मुझे दे दो-उधार-इस एक बार
मुझे जो चरम आवश्यकता है ।

उस ने यह कहा,
पर रात के घुप अंधेरे में
मैं सहमा हुआ चुप रहा; अभी तक मौन हूँ:
अनदेखे अरूप को
उधार देते मैं डरता हूँ:
क्या जाने यह याचक कौन है ?

- अज्ञेय


  Jan 31, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

कागा काको धन हरै

कागा काको धन हरै कोयल काको देत
मीठे शब्द सुनाय के, सबका मन हर लेत।

~ संत कबीर

  Jan 31, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

जो डूबना है तो इतने सुकून से डुबो

जो डूबना है तो इतने सुकून से डुबो
के आस पास की लहरों को भी पता न लगे
तुम्हारे बस में अगर हो तो भूल जाओ हमें
तुम्हे भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे

~ क़ैसर-उल जाफ़री

  Jan 30, 2016| e-kavya.blogspot.com
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चल पड़े जिधर दो डग, मग में


चल पड़े जिधर दो डग, मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर ;
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर,

जिसके शिर पर निज हाथ धरा
उसके शिर- रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया
झुक गए उसी पर कोटि माथ ;

हे कोटि चरण, हे कोटि बाहु
हे कोटि रूप, हे कोटि नाम !
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि
हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम !

~ सोहनलाल द्विवेदी



  Jan 30, 2016| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

बाग़ सारा अगर न दे मौला

बाग़ सारा अगर न दे मौला
कम से कम एक दो गुलाब तो दे
आस्माँ रख तू अपने पास मगर
मेरे हिस्से का आफ़ताब तो दे

~ गुलशन राय कँवल

  Jan 29, 2016| e-kavya.blogspot.com
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