मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए,
मिरे आज़माने वाले मुझे आज़मा के रोए।
कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो कि फ़साना-ए-मोहब्बत,
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोए।
मिरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-ना-तवाँ की हसरत,
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोए।
तिरी बेवफ़ाइयों पर तिरी कज-अदाइयों पर,
कभी सर झुका के रोए कभी मुँह छुपा के रोए।
जो सुनाई अंजुमन में शब-ए-ग़म की आप-बीती,
कई रो के मुस्कुराए कई मुस्कुरा के रोए।
~ सैफ़ुद्दीन सैफ़
Submitted by: Ashok Singh