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Saturday, February 29, 2020

इश्क़ से पैदा नवा-ए-ज़िंदगी

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इश्क़ से पैदा नवा-ए-ज़िंदगी में ज़ेर-ओ-बम 
इश्क़ से मिट्टी की तस्वीरों में सोज़-ए-दम-ब-दम

* नवा-ए-ज़िंदगी=ज़िंदगी की आवाज़; ज़ेर-ओ-बम;उतार-चढ़ाव; सोज़-ए-दम-ब-दम= हलचल

आदमी के रेशे रेशे में समा जाता है इश्क़
शाख़-ए-गुल में जिस तरह बाद-ए-सहर-गाही का नम

* बाद-ए-सहर-गाही=सुबह के बाद

अपने राज़िक़ को न पहचाने तो मुहताज-ए-मुलूक
और पहचाने तो हैं तेरे गदा दारा ओ जम

*राज़िक=अन्नदाता; मुहताज-ए-मुलूक=राजपद से वंचित; गदा=भिखारी; दारा=राजा,ईश्वर; जम=रजा जमशेद

दिल की आज़ादी शहंशाही शिकम सामान-ए-मौत
फ़ैसला तेरा तिरे हाथों में है दिल या शिकम

*शिकम=पेट

ऐ मुसलमाँ अपने दिल से पूछ मुल्ला से न पूछ
हो गया अल्लाह के बंदों से क्यूँ ख़ाली हरम

~ अल्लामा इक़बाल

Feb 29, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Saturday, February 22, 2020

चाँद हवा और मैं

 
घूम रहे हैं आँगन आँगन चाँद हवा और मैं
ढूँड रहे हैं बिछड़ा बचपन चाँद हवा और मैं

भूला-बिसरा अफ़्साना हैं आज उस के नज़दीक
कल तक थे जिस दिल की धड़कन चाँद हवा और मैं

ख़्वाबों से बे-नाम जज़ीरों में घूमे सौ बार
यादों का थामे हुए दामन चाँद हवा और मैं
*जज़ीरों=द्वीपों

अपने ही घर में हैं या सहरा में गर्म-ए-सफ़र
क्यूँकर सुलझाएँ ये उलझन चाँद हवा और मैं

आज के दौर में अपनी ही पहचान हुई दुश्वार
देख रहे हैं वक़्त का दर्पन चाँद हवा और मैं

रंग का हाला ख़ुशबू का इक झोंका कुछ तो मिले
कब से हैं आवारा-ए-गुलशन चाँद हवा और मैं

परछाईं के पीछे भागे खोए ख़लाओं में
निकले आप ही अपने दुश्मन चाँद हवा और मैं
*ख़लाओं=शून्य, अंतराल

जाने किस की कौन है मंज़िल फिर भी हैं इक साथ
घूम रहे हैं तीनों बन बन चाँद हवा और मैं

उर्यानी का दोश किसे दें अपनी है तक़दीर
ख़ुद ही जला बैठे पैराहन चाँद हवा और मैं
*उर्यानी=वस्त्रहीन होने की अवस्था; पैराहन=वस्त्र

~ हामिद यज़दानी

Feb 22, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh


Friday, February 21, 2020

जय शिवशंकर, जय गंगाधर

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जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि, सुख-सार हरे
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

जय रामेश्वर, जय नागेश्वर वैद्यनाथ, केदार हरे,
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,
त्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर जगतार हरे,
काशी-पति, श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नील-कण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युंजय अविकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुरातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भवकार, तारक, हारक पातक-दारक शिव शम्भो,
दीन दुःख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाधर दया करो,
पार लगा दो भव सागर से, बनकर कर्णाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

जय मन भावन, जय अति पावन, शोक नशावन,
विपद विदारन, अधम उबारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन, धन शिव शम्भो,
विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव योगी, सरल हृदय,
अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी शिव योगी, निमिष में देते हैं,
नवनिधि मन मानी शिव योगी, भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी
शिव योगी, स्वयम्‌ अकिंचन,जनमनरंजन पर शिव परम उदार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

आशुतोष! इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना,
विषम-वेदना, से विषयों की मायाधीश छड़ा देना,
रूप सुधा की एक बूँद से जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य-ज्ञान- भंडार-युगल-चरणों को लगन लगा देना,
एक बार इस मन मंदिर में कीजे पद-संचार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनि भक्ति प्रभो,
शक्तिमान हो, दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो,
त्यागी हो, दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो,
परमपिता हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
स्वामी हो निज सेवक की सुन लेना करुणा पुकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

तुम बिन व्याकुल हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे,
चरण शरण की बाँह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे,
विरह व्यथित हूँ दीन दुःखी हूँ दीन दयालु अनन्त हरे,
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमंत हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर कुछ तो करो विचार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे॥

~ अज्ञात


Feb 22, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Sunday, February 16, 2020

घास भी मुझ जैसी है

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घास भी मुझ जैसी है
पाँव-तले बिछ कर ही ज़िंदगी की मुराद पाती है
मगर ये भीग कर किस बात गवाही बनती है
शर्मसारी की आँच की
कि जज़्बे की हिद्दत की
घास भी मुझ जैसी है

*मुराद=इच्छा; शर्मसारी=लज्जित; हिद्दत= तीव्रता

ज़रा सर उठाने के क़ाबिल हो
तो काटने वाली मशीन
उसे मख़मल बनाने का सौदा लिए
हमवार करती रहती है
औरत को भी हमवार करने के लिए
तुम कैसे कैसे जतन करते हो

*हमवार=समतल, सपाट

न ज़मीं की नुमू की ख़्वाहिश मरती है
न औरत की
मेरी मानो तो वही पगडंडी बनाने का ख़याल दुरुस्त था
जो हौसलों की शिकस्तों की आँच न सह सकें
वो पैवंद-ए-ज़मीं हो कर
यूँ ही ज़ोर-आवरों के लिए रास्ता बनाते हैं
मगर वो पर-ए-काह हैं
घास नहीं
घास तो मुझ जैसी है!

*नुमू=पैदावार; शिकस्त=पराजय; ज़ोर-आवरों=ज़बर्दस्त, ताक़तवर; पर-ए-काह=सूखी घास का बंडल

~ किश्वर नाहीद


Feb 16, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Saturday, February 8, 2020

जमाल-ए-बदन का ए'तिराफ़

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मुझे जमाल-ए-बदन का है ए'तिराफ़ मगर
मैं क्या करूँ कि वरा-ए-बदन भी देखता हूँ
ये काएनात फ़क़त एक रुख़ नहीं रखती
चमन भी देखता हूँ और बन भी देखता हूँ

*जमाल-ए-बदन=शरीर की सुंदरता; ए'तिराफ़=स्वीकार; वरा-ए-बदन=शरीर से परे; काएनात=सृष्टि

मिरी नज़र में हैं जब हुस्न के तमाम अंदाज़
मैं फ़न भी देखता हूँ फ़िक्र-ओ-फ़न भी देखता हूँ
निकल गया हूँ फ़रेब-ए-निगाह से आगे
मैं आसमाँ को शिकन-दर-शिकन भी देखता हूँ
वो आदमी कि सभी रोए जिन की मय्यत पर
मैं उस को ज़ेर-ए-कफ़न ख़ंदा-ज़न भी देखता हूँ

*शिकन=सिकुड़न; ज़ेर-ए-कफ़न=क़फ़न के नीचे[; ख़ंदा-ज़न=हँसने वाले

मैं जानता हूँ कि ख़ुर्शीद है जलाल-मआब
मगर ग़ुरूब से ख़ुद को रिहाई देता नहीं
मैं सोचता हूँ कि चाँद इक जमाल-पारा है
मगर वो रुख़ जो किसी को दिखाई देता नहीं

*ख़ुर्शीद=सूरज; जलाल-मआब=तेजस्वी; ग़ुरूब=अस्त; जमाल-पारा=सुंदरता की सीमा

मैं सोचता हूँ हक़ीक़त का ये तज़ाद है क्या
ख़ुदा जो देता है सब कुछ ख़ुदाई देता नहीं
वो लोग ज़ौक़ से आरी हैं जो ये कहते हैं
कि अश्क टूटता है और सुनाई देता नहीं
बदन भी आग है और रूह भी जहन्नम है
मिरा क़ुसूर ये है में दुहाई देता नहीं

*तजाद=विरोधाभास; ज़ौक़=आनंद; आरी=वंचित

~ अहमद नदीम क़ासमी


Feb 8, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

Friday, February 7, 2020

एक उम्मीद

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दूर आँखों से बहुत दूर, कहीं
इक तसव्वुर है, जो बे-ज़ार किए रखता है
वो कोई ख़्वाब है या ख़्वाब का अंदेशा है
जो मिरे सोच को मिस्मार किए रखता है

*तसव्वुर=कल्पना; बे-ज़ार=उचाट; मिस्मार=तबाह

दूर, क़िस्मत की लकीरों से बहुत दूर, कहीं
एक चेहरा है, तिरे चेहरे से मिलता-जुलता
जो मुझे नींद में बेदार किए रखता है
दूर से, और बहुत दौर की आवाज़ों से
एक आवाज़ बुलाती है सर-ए-शाम मुझे
जानता हूँ मैं मोहब्बत की हक़ीक़त लेकिन
फिर भी आग़ोश-ए-तमन्ना में, तड़प उठता हूँ

*बेदार=जगाना; आग़ोश-ए-तमन्ना=आलिंगन की इच्छा

चेहरे चेहरे पे बिखरती हुई, आवाज़ों में
तेरी आवाज़ से आवाज़ कहाँ मिलती है
एक क़िंदील ख़यालों की मगर जलती है
तू मिरे पास, बहुत पास, कहीं रहती है
दूर है दूर बहुत दूर, मगर फिर भी, मुझे
एक उम्मीद सर-ए-शाम सजा रखती है
एक उलझन मुझे रातों को जगा रखती है

*किंदील=लैम्प

~ ख़ालिद मलिक साहि


 Feb 7, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Sunday, February 2, 2020

वक़्त की खेती हैं हम

 
वक़्त की खेती हैं हम
वक़्त बोता है उगाता पालता है
और बढ़ने के मवाक़े भी हमें देता है वक़्त

*मवाक़े=मौके

सब्ज़ को ज़र्रीं बताने की इजाज़त मर्हमत करता है और
नाचने देता है बाद-ए-शोख़ की मौजों के साथ
झूमने देता है सूरज की किरन की हम-दमी में
चाँदनी पी कर हमें ब-दस्त पाता है तो ख़ुश होता है वक़्त

*सब्ज़=हरा; ज़री=सुनहरा; मर्हमत=प्रदान; बाद-ए-शोख़=नटखट हवा; ब-दस्त=हाथ में

फूलने फलने की तदबीरें बताता है हमें
हाँ मगर अंजाम कार
काट लेना है हमें
हम बिल-आख़िर उस के नग़्मे
हम बिल-आख़िर उस की फ़स्ल

*तदबीरें=उपाय; बिल-आख़िर-अंत में

‍~ अमीक़ हनफ़ी


 Feb 2, 2020 | e-kavya.blogspot.com
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Saturday, February 1, 2020

वही जो कुछ सुन रहा हूँ

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वही जो कुछ सुन रहा हूँ कोकिलों में,
वही जो कुछ हो रहा तय कोपलों में,
वही जो कुछ ढूँढ़ते हम सब दिलों में,
वही जो कुछ बीत जाता है पलों में,
बोल दो यदि...

कीच से तन-मन सरोवर के ढँके हैं,
प्यार पर कुछ बेतुके पहरे लगे हैं,
गाँठ जो प्रत्यक्ष दिखलाई न देती-
किन्तु हम को चाह भर खुलने न देती,
खोल दो यदि...

बहुत सम्भव, चुप इन्हीं
अमराइयों में गान आ जाये,
अवांछित, डरी-सी
परछाइयों में जान आ जाये,
बहुत सम्भव है इसी
उन्माद में बह दीख जाये
जिसे हम-तुम चाह कर भी
कह न पाये

वायु के रंगीन आँचल में भरी
अँगड़ाइयाँ बेचैन फूलों की सतातीं
तुम्हीं बढ़ कर एक प्याला
धूप छलका दो अँधेरे हृदय में
कि नाचे बेझिझक हर दृश्य
इन मदहोश आँखों में
तुम्हारा स्पर्श मन में सिमट आये
इस तरह ज्यों एक मीठी धूप में
कोई बहुत ही शोख़ चेहरा
खिलखिला कर सैकड़ों सूरजमुखी-सा
दृष्टि की हर वासना से
लिपट जाये

~ कुँवर नारायण


 Feb 1, 2020 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh