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Thursday, November 28, 2019

तिरे रुख़्सार से बे-तरह

तिरे रुख़्सार से बे-तरह लिपटी जाए है ज़ालिम,
जो कुछ कहिए तो बल खा उलझती है ज़ुल्फ़ बे-ढंगी।

~ शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

 Nov 28, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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