तिरे रुख़्सार से बे-तरह लिपटी जाए है ज़ालिम,
जो कुछ कहिए तो बल खा उलझती है ज़ुल्फ़ बे-ढंगी।
~ शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
Nov 28, 2019 | e-kavya.blogspot.comजो कुछ कहिए तो बल खा उलझती है ज़ुल्फ़ बे-ढंगी।
~ शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment