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Tuesday, November 19, 2019

दिल सोया हुआ था मुद्दत से

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दिल सोया हुआ था मुद्दत से ये कैसी बशारत जागी है
इस बार लहू में ख़्वाब नहीं ताबीर की लज़्ज़त जाती है
*बशारत=ख़ुशख़बरी; ताबीर=(ख़्वाब)सम्भावित अर्थ

इस बार नज़र के आँगन में जो फूल खिला ख़ुश-रंग लगा
इस बार बसारत के दिल में नादीदा बसीरत जागी है
*बसारत=दृष्टि; नादीदा=जो दिखा नहीं हो; बसीरत=दिल की नज़र

इक बाम-ए-सुख़न पर हम ने भी कुछ कहने की ख़्वाहिश की थी
इक उम्र के ब'अद हमारे लिए अब जा के समाअत जागी है
*बाम=छत; समाअत=सुनने की क्षमता

इक दस्त-ए-दुआ की नर्मी से इक चश्म-ए-तलब की सुर्ख़ी तक
अहवाल बराबर होने में इक नस्ल की वहशत जागी है
*दस्त-ए-दुआ=प्रार्थना के लिए उठे हाथ; चश्म-ए-तलब=जिसको नज़रें देखना चाहें; अहवाल=हालात;

ऐ त'अना-ज़नो दो चार बरस तुम बोल लिए अब देखते जाओ
शमशीर-ए-सुख़न किस हाथ में है किस ख़ून में हिद्दत जागी है
*हिद्दत=तीव्रता

~ अज़्म बहज़ाद


 Nov 19, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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