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Friday, November 22, 2019

साथ अगर तुम हो तो फिर हम


 
साथ अगर तुम हो तो फिर हम
हँसते हँसते चलते चलते
दूर आकाश की हद तक जाएँ
काली काली सी दलदल से
तपता ताँबा फूट रहा हो

मकड़ी के जाले का फ़ीता
काट के हम उस बाग़ में जाएँ
जिस में कोई कभी न गया हो
कोकनार के फूल खिले हों
भँवरे उन को चूम रहे हों

पत्थर से पानी चलता हो
मैं पानी का चुल्लू भर कर
जब मारूँ चेहरे पे तुम्हारे
पहले तुम को साँस न आए
और फिर मेरे साथ लिपट कर
ऐसे छूटे धार हँसी की
जैसे चश्मा फूट रहा हो

~ ख़ुर्शीद रिज़वी

 Nov 23, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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