साथ अगर तुम हो तो फिर हम
हँसते हँसते चलते चलते
दूर आकाश की हद तक जाएँ
काली काली सी दलदल से
तपता ताँबा फूट रहा हो
मकड़ी के जाले का फ़ीता
काट के हम उस बाग़ में जाएँ
जिस में कोई कभी न गया हो
कोकनार के फूल खिले हों
भँवरे उन को चूम रहे हों
पत्थर से पानी चलता हो
मैं पानी का चुल्लू भर कर
जब मारूँ चेहरे पे तुम्हारे
पहले तुम को साँस न आए
और फिर मेरे साथ लिपट कर
ऐसे छूटे धार हँसी की
जैसे चश्मा फूट रहा हो
~ ख़ुर्शीद रिज़वी
हँसते हँसते चलते चलते
दूर आकाश की हद तक जाएँ
काली काली सी दलदल से
तपता ताँबा फूट रहा हो
मकड़ी के जाले का फ़ीता
काट के हम उस बाग़ में जाएँ
जिस में कोई कभी न गया हो
कोकनार के फूल खिले हों
भँवरे उन को चूम रहे हों
पत्थर से पानी चलता हो
मैं पानी का चुल्लू भर कर
जब मारूँ चेहरे पे तुम्हारे
पहले तुम को साँस न आए
और फिर मेरे साथ लिपट कर
ऐसे छूटे धार हँसी की
जैसे चश्मा फूट रहा हो
~ ख़ुर्शीद रिज़वी
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment